किसी भी देश की शिक्षा प्रणाली के अध्ययन में उस देश के प्राकृतिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक घटकों का अध्ययन अत्यन्त आवश्यक होता है। इसका कारण यह है कि किसी भी देश की समस्त शिक्षा प्रणाली, इन घटकों से ही प्रभावित होती है। राष्ट्र की शिक्षा नीति के निर्धारण में इन घटकों का ध्यान रखा जाना आवश्यक होता है। देश, काल एवं परिस्थितियों के अनुसार इन घटकों के अनुपात एवं महत्त्व में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है। इसी कारण राष्ट्रों की शिक्षा प्रणालियाँ एवं शैक्षिक नीतियाँ भी निरन्तर परिवर्तित होती रहती हैं। अत: यह नितान्त आवश्यक है कि किसी भी देश की शिक्षा प्रणाली का अध्ययन करने, शैक्षिक प्रणाली की व्यवस्था करने अथवा शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्धारण करने से पूर्व, राष्ट्र के भौगोलिक, सांस्कृतिक अथवा आध्यात्मिक घटकों को ध्यानान्तर्गत रखा जाए।
तुलनात्मक शिक्षा के घटक (तत्त्व अथवा कारक) एवं उनका महत्त्व
किसी भी देश की शिक्षा-व्यवस्था का विकास उसके विभिन्न घटकों पर आधारित होता है। हैन्स द्वारा विभिन्न घटकों को तीन भागों में विभक्त किया गया है
I. प्रथम भाग - प्राकृतिक घटक,
II. द्वितीय भाग - आध्यात्मिक घटक तथा
III. तृतीय भाग - धर्मनिरपेक्ष घटक।
इन घटकों का वर्णन उपर्युक्त क्रम में संक्षेप में निम्नवत् किया जा सकता
I. प्राकृतिक घटक
प्राकृतिक घटकों के अन्तर्गत भौगोलिक, भाषायी, जातीय एवं आर्थिक घटक सम्मिलित होते हैं, जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नवत् है
1. भौगोलिक -
किसी भी देश की भौगोलिक स्थिति का उस देश की शिक्षा प्रणाली पर विशेष प्रभाव पड़ता है। विश्व के विभिन्न देशों की भौगोलिक स्थिति पृथक्-पृथक् प्रकार की होती है तथा वहाँ के व्यक्तियों का रहन-सहन, सभ्यता एवं संस्कृति भी भिन्न-भिन्न होती है। इन सब बातों का वहाँ की शिक्षा प्रणाली पर अत्यन्त व्यापक प्रभाव पड़ता है। शिक्षा प्रणाली; सामाजिक व्यवस्था एवं रहन-सहन से प्रभावित होती है; उदाहरणार्थ-कृषि-प्रधान देश की शिक्षा प्रणाली में कृषि को विशेष महत्त्व प्रदान किया जाता है। ठण्डे देशों में विद्यालयों का अवकाश भी सर्दी में होता है तथा गर्म देशों में गर्मी में। इस आधार पर यह स्पष्ट होता है कि देश की भौगोलिक संरचना का शिक्षा प्रणाली पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। हैन्स ने भौगोलिक घटक को स्पष्ट करते हुए लिखा है, “शिक्षालय प्रणाली, संरचना विद्यालय भवन एवं सामग्री, विद्यार्थियों को शिक्षालय तक ले जाने के साधन तथा तरीके, अन्त में विद्यालय की अनिवार्य उपस्थिति की आयु सीमा; प्राय: जलवायु तथा देश की बनावट पर निर्भर करती है।"
2. भाषायी-
बालक अपने जन्म से ही किसी भाषा-विशेष को धरोहर के रूप में प्राप्त करता है तथा अपने वर्ग की ही भाषा सीखता है एवं उसका ज्ञान प्राप्त करता है। प्रत्येक देश की सभ्यता एवं संस्कृति; अनेक दृष्टियों से देश की भाषा से सम्बन्धित होती है। किसी भी देश की शिक्षा प्रणाली में भाषा का अपना पृथक् स्थान होता है। ऐसा माना जाता है कि जिस देश की शिक्षा प्रणाली का माध्यम मातृभाषा होती है, उस देश का राष्ट्रीय चरित्र प्रबल होता है, लेकिन जिस देश की शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा , होती है, उस देश का राष्ट्रीय चरित्र भी निर्बल होता है। भाषा के साथ अन्य घटकों का भी राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण में सक्रिय होना आवश्यक है। इनमें शिक्षा प्रणाली का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसलिए तुलनात्मक शिक्षा के अध्ययन में भाषायी घटक को दृष्टिगत रखना आवश्यक होता है।
3. जातीय–
विश्व के विभिन्न देशों में अनेक प्रकार की जातियाँ निवास करती हैं। इन जातियों का प्रभाव, उस देश की शिक्षा प्रणाली पर पड़ता है; यथा—भारत में अंग्रेजी शासन की स्थापना, एक ऐसे जातीय घटक का अनोखा उदाहरण है, जिससे स्पष्ट रूप से यह प्रकट होता है कि अपनी जातीय श्रेष्ठता को बनाए रखने हेतु किस प्रकार की शिक्षा प्रणाली का उपयोग किया जा सकता है? अंग्रेजों द्वारा भारतीय शिक्षा प्रणाली में, भारतवासियों को उनकी सांस्कृतिक परम्पराओं से पृथक् रखने का प्रयत्न किया गया तथा हमेशा यही प्रतिपादित किया गया कि भारतीय सभ्यता व संस्कृति से अंग्रेजों की सभ्यता एवं संस्कृति श्रेष्ठ है। अंग्रेजों द्वारा शिक्षा के पाठ्यक्रम का गठन तथा शिक्षा प्रणाली का गठन इस प्रकार से किया गया, जिससे भारतवासी अवनति के गर्त में गिरते चले गए। इसलिए तुलनात्मक शिक्षा के अध्ययन में जातीय घटक का ध्यान रखना भी आवश्यक है।
4.आर्थिक-
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था, उस देश की भौगोलिक परिस्थितियों पर निर्भर करती है। यही कारण है कि आर्थिक घटक को भौगोलिक घटक के अन्तर्गत माना गया है। तुलनात्मक शिक्षा के क्षेत्र में आर्थिक घटक की अवहेलना नहीं की जा सकती क्योंकि आर्थिक घटक ही किसी देश की शिक्षा प्रणाली को निश्चित करता है; अर्थात् प्रत्येक देश की शिक्षा प्रणाली, उस देश की आर्थिक व्यवस्था के अनुरूप ही विकसित होती है। उदाहरणार्थ सोवियत संघ में समाजवादी आर्थिक व्यवस्था के अन्तर्गत समस्त सम्पत्ति राज्य की मानी जाती थी, इसीलिए वहाँ प्राथमिक स्तर से ही बालकों को इस प्रकार की शिक्षा प्रदान की जाती थी कि वे प्रारम्भ से ही यह समझने लग जाएँ कि उनकी समस्त सम्पत्ति राज्य की ही है। इससे भिन्न पूँजीवादी अर्थव्यवस्था वाले देशों में शैक्षिक व्यवस्था एवं मूल्य नितान्त भिन्न होते हैं तथा प्रत्येक व्यक्ति को राजकीय सम्पत्ति के विकास में अपना योगदान करना चाहिए। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि आर्थिक घटक भी एक अत्यन्त प्रभावकारी तत्त्व है इसीलिए तुलनात्मक शिक्षा के अध्ययन में इसका अपना पृथक् महत्त्व है।
II. आध्यात्मिक घटक
हैन्स ने आध्यात्मिक घटक के महत्त्व के सन्दर्भ में कहा, "किसी भी देश की शिक्षा प्रणाली का निर्धारण आध्यात्मिक घटकों पर भी निर्भर करता है।" इन आध्यात्मिक घटकों का संक्षिप्त वर्णन अग्रलिखित है -
1. धार्मिक -
धर्म का व्यक्ति से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है, इसीलिए व्यक्ति के जीवन पर धर्म का प्रभाव अत्यन्त व्यापक रूप से पड़ता है। धर्म-प्रधान देशों की जनता रूढ़िवादी होती है, इसीलिए वह प्राचीन परम्पराओं में परिवर्तन का विरोध करती है। जिन देशों में औद्योगीकरण की प्रमुखता है, उन देशो प्राचीन रूढ़ियाँ समाप्त होने लगी हैं और शिक्षा का स्वरूप भी परिवर्तित हो गया है। इस स्थिति में प्रायः जनता की धार्मिक भावनाओं के अनुकूल ही, शिक्षा का संचालन किया जाता है।
2. नैतिक-
विभिन्न देशों में नैतिकता का मापदण्ड पृथक्-पृथक् है। किसी भी देश की शिक्षा-प्रणाली पर उस देश के नैतिक घटकों का भी प्रभाव पड़ता है। उदाहरणार्थ-प्रजातन्त्रात्मक देशों में नैतिक व्यवहार पर विशेष बल दिया जाता है तथा तदनुरूप ही शिक्षा के उद्देश्यों में वैयक्तिक नैतिकता के विकास पर बल दिया जाता है।
3. दार्शनिक
हैन्स ने दार्शनिक घटक को भी एक धार्मिक घटक ही माना है। धर्म एवं दर्शन परस्पर सम्बन्धित हैं। इसीलिए दार्शनिक घटक भी देश की शिक्षा प्रणाली को प्रभावित करते हैं; । उदाहरणार्थ-प्राचीन यूनान की शिक्षा व्यवस्था को सुकरात, प्लेटो एवं अरस्तू ने एक विशेष दर्शन पर आधारित किया तथा समस्त शासन को दार्शनिकों को सौंपने की बात कही।
III. धर्मनिरपेक्ष घटक
हैन्स ने धर्मनिरपेक्ष घटकों के अन्तर्गत धर्म से असम्बन्धित घटकों को स्थान दिया है। ये घटक इस प्रकार हैं
1. मानवतावादी-
यूरोप के इतिहास में मध्य युग के अन्त में मानवतावाद के रूप में एक ऐसी विचारधारा का उदय हुआ, जो व्यक्ति को धार्मिक बन्धनों से मुक्त कर उसे पूर्णरूपेण वैज्ञानिक बनाना चाहती थी, जिससे व्यक्ति के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास हो सके तथा वह पूर्ण मानव बन सके। यह विचारधारा; मानव-मात्र के कल्याण पर आधारित है। 17वीं शताब्दी में प्रमुख शिक्षाशास्त्री कामेनियस ने ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा शिक्षा पर विशेष बल देकर मानवतावादी दृष्टिकोण का परिचय दिया। संयुक्त राज्य अमेरिका में टॉमस रेफरसन तथा टॉमस पेन ने अपने देश में मानवतावादी तत्त्वों के समावेश का समर्थन किया तत्पश्चात् 20वीं शताब्दी के द्वितीय चरण में जॉन डीवी ने भी इन तत्त्वों का समर्थन किया। वर्तमान युग में समस्त देशों की शिक्षा प्रणालियों पर मानवतावादी प्रभाव व्यापक रूप से परिलक्षित होता है। यही कारण है कि तुलनात्मक शिक्षा के अध्ययन में, मानवतावादी घटक का भी ध्यान रखा जाता है।
2. राष्ट्रवादी-
शिक्षा द्वारा राष्ट्रीयता के विकास का भी प्रयास किया जाता है। यह घटक; शिक्षा को अत्यन्त व्यापक रूप से प्रभावित करता है; यथा-जर्मनी की सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था इस प्रकार की थी कि व्यक्तियों में संकीर्ण राष्ट्रीयता की भावना कूट-कूट कर भर गई। यद्यपि अर्वाचीन युग से ही इस बात के लिए प्रयत्न किया जा रहा है कि शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रवादी घटकों के साथ ही अन्तर्राष्ट्रवादी घटकों को भी स्थान प्रदान किया जाए।
3. समाजवादी-
समाजवादी विचारधारा ने अर्वाचीन युग की सम्पूर्ण शिक्षा-व्यवस्था को प्रभावित किया है। समाजवाद के तत्त्व; प्लेटो के विचारों में दृष्टिगोचर होते हैं। प्लेटो ने राज्य को सर्वेसर्वा मानते हुए कहा कि बालकों का पालन, विकास एवं उनकी शिक्षा; राज्य के सम्पूर्ण नियन्त्रण में होनी चाहिए। इंग्लैण्ड के सर टॉमस मोर ने इस सन्दर्भ में लिखा है, “शिक्षा का स्वरूप इस प्रकार का होना चाहिए कि व्यक्ति कुशल नागरिक के रूप में विकसित होकर अपने कर्तव्यों का पालन कर सके।" रूसो ने भी इस विचारधारा का समर्थन करते हुए आदर्श राज्य के नियन्त्रण में सार्वजनिक शिक्षा की माँग की। मार्क्स ने हीगल के भौतिकवाद को अपनी विचारधारा का आधार बनाया। मार्क्स का कहना था कि शिक्षा का कार्य उत्पादन साधनों को, राज्य हित के लिए विकसित करना है। अत: तुलनात्मक शिक्षा के अध्ययन में इस घटक को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
4. लोकतन्त्रात्मक-
वर्तमान युग लोकतन्त्र का है। वास्तविक अर्थों में लोकतन्त्र वह है, जहाँ शिक्षा की व्यवस्था इस प्रकार हो कि व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार अपनी योग्यता विकसित करने का अवसर प्राप्त हो। लोकतन्त्रात्मक व्यवस्था दो प्रकार की होती है -
(i) प्रथम प्रकार की लोकतन्त्रात्मक व्यवस्था में राजनीतिक स्वतन्त्रता पर बल दिया जाता है तथा
(ii) द्वितीय प्रकार की लोकतन्त्रात्मक व्यवस्था में सामाजिक समानता पर बल दिया जाता है।
प्रत्येक देश स्वयं की लोकतन्त्रात्मक भावना के अनुसार अपने देश की शिक्षा प्रणाली का विकास करता है। उदाहरणार्थ - ग्रेट ब्रिटेन में राजनीतिक स्वतन्त्रता को अत्यधिक महत्त्व प्रदान किया जाता है तथा वहाँ की शिक्षा व्यवस्था भी इस प्रकार की गई है कि प्रत्येक व्यक्ति को समस्त कार्य करने की पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त होती है। इन भावनाओं के अनुसार ही विभिन्न देशों की शिक्षा-प्रणालियों में असमानता दृष्टिगोचर होती है। अतः तुलनात्मक शिक्षा के अध्ययन के अन्तर्गत लोकतन्त्रात्मक घटक की ओर भी ध्यान दिया जाना आवश्यक है।
उपर्युक्त विवरण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि विभिन्न देशों की शिक्षा प्रणालियों में विभिन्न घटकों का योगदान होता है। देश, काल एवं परिस्थिति के अनुसार ही इन घटकों के महत्त्व में भी परिवर्तन होता रहता है। अतः ये घटक प्रत्येक देश की सांस्कृतिक, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं ऐतिहासिक आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षा व्यवस्था को प्रभावित करते हैं। इसीलिए विभिन्न देशों की शिक्षा-प्रणालियों का तुलनात्मक अध्ययन करते समय उपर्युक्त समस्त तथ्यों को दृष्टि में रखना आवश्यक होता है।
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