शैक्षिक उद्देश्य निर्धारित करने वाले कारक Factors Determining Educational Aims
शिक्षा ज्यादातर एक नियोजित और उद्देश्यपूर्ण गतिविधि है। निम्नलिखित कारकों द्वारा निर्धारित अद्वितीय गतिविधियों को दिशा देने के लिए शैक्षिक उद्देश्य आवश्यक हैं।
1. दर्शनशास्त्र (Philosophy):
दर्शन और शिक्षा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दर्शन एक मुख्य कारक है, जो शिक्षा के उद्देश्य को निर्धारित करता है। शिक्षा को दर्शन के प्रचार-प्रसार का सर्वोत्तम साधन कहा गया है। इसकी चर्चा हम पहले ही कर चुके हैं।
2. मानव स्वभाव (Human nature):
मानव स्वभाव का दर्शन के साथ निकट संबंध है। उदाहरण के लिए, आदर्शवादी लोग मनुष्य में शिक्षा को है परमात्मा के प्रकट होने का लक्ष्य मानते हैं ।
3. सामाजिक-सांस्कृतिक कारक और समस्याएं (Socio-cultural factors and problems ) :
शिक्षा का उद्देश्य सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक संरक्षित ढंग से स्थानांतरित करना है।
4. धार्मिक कारक (Religious factors) :
प्राचीन भारत में, बौद्ध धर्म ने प्रचलित शिक्षा प्रणाली में धर्म के आदर्शों, जैसे अहिंसा और सत्य को सम्मिलित करने पर बल दिया ।
5. राजनीतिक विचारधाराएँ (Political ideologies):
एक लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था के शैक्षिक उद्देश्य एक निरंकुश (autocratic) राजनीतिक व्यवस्था से काफी भिन्न हो सकते हैं ।
6. ज्ञान का अन्वेषण ( Exploration of knowledge) :
ज्ञान अच्छे पारस्परिक संबंधों, जीवन में स्वस्थ समायोजन, व्यवहार में संशोधन, आत्म-जागरुकता और सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है, यह सौभाग्य और प्रसन्नता का स्रोत भी है।
7. व्यावसायिक (Vocational):
शिक्षा को अपने शिक्षार्थी को अपनी आजीविका कमाने के लिए तैयार करना चाहिए और उसे आर्थिक और सामाजिक जैसे दोनों कारकों में आत्मनिर्भर और कुशल बनाना चाहिए।
8. आत्म-साक्षात्कार और समग्र विकास (Self-actualization and integrated development) :
शिक्षा का उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत क्षमता के अनुसार सफल बनाने में सहायता करना होता है। शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति का संपूर्ण विकास करना है, इसमें भौतिक, मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक और आध्यात्मिक विकास सम्मिलित हैं।
9. सामंजस्यपूर्ण विकास (Harmonious development):
महात्मा गांधी ने शिक्षा के इस उद्देश्य को बहुत महत्व दिया है, उन्होंने कहा, ‘शिक्षा से हमारा अर्थ, एक ओर, बालक और मानव काया तथा दूसरी ओर मन और आत्मा में सर्वश्रेष्ठ से सर्वश्रेष्ठ का एक सर्वांगीण चित्रण' है।
10. नैतिक और चरित्र विकास (Moral and character development):
कुछ शिक्षाविद इन्हें शिक्षा का सर्वोच्च उद्देश्य मानते हैं | हर्बर्ट स्पेंसर (Herbert Spencer) ने इस बात पर बल दिया कि शिक्षा को बच्चे के नैतिक मूल्यों और गुणों, जैसे कि सच्चाई, अच्छाई, पवित्रता, साहस, श्रद्धा और ईमानदारी को विकसित करने में सक्षम बनाना चाहिए।
11. नागरिकता (Citizenship) :
समाज के सदस्य के रूप में, एक छात्र को समाज के प्रति अपने कर्तव्यों, कार्यों और दायित्वों के बारे में जागरूक होना चाहिए ।
12. अवकाश के लिए शिक्षा (Education for leisure ) :
अवकाश वह समय है जिसका उपयोग आनंद और मनोरंजन के लिए किया जाता है। हमें आराम करने और ऊर्जा पुनः प्राप्त करने के लिए इसकी आवश्यकता है। यदि अवकाश का बुद्धिमानी से उपयोग किया जाए तो यह शारीरिक और मानसिक संतुलन को जन्म देता है। खाली समय के लाभकारी उपयोग के माध्यम से कलात्मक, नैतिक और सौंदर्य विकास को प्रेरित किया जा सकता है ।
भारतीय संदर्भ में शिक्षा के कुछ विशिष्ट उद्देश्य:
जब भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की, तो हमारा उद्देश्य सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शैक्षिक प्रणाली की पुनर्रचना (reorientation) और पुनर्गठन (restructuring) की आवश्यकता थी । तत्स्वरूप भारत में शिक्षा के लक्ष्य और उद्देश्यों को निर्धारित करने के लिए विभिन्न समितियों और आयोगों की नियुक्ति की गई ।
No comments:
Post a Comment