Friday, May 1, 2020

अभिक्रमित अनुदेशन क्या है What is Programmed Instruction

अभिक्रमित अनुदेशन अर्थ एवं परिभाषा
Programmed Instruction Meaning and Definition
अभिक्रमित अनुदेशन के प्रत्यय का विकास अमेरिका में हुआ 1926 ईस्वी में ओहियो स्टेट विश्वविद्यालय में कार्यरत सिडनी एल प्रेसी महोदय ने एक शिक्षण मशीन का आविष्कार किया जिसके द्वारा छात्र स्वतः अध्ययन करते थे एवं उन्हें तत्काल प्रतिपुष्टि प्राप्त होती थी 1950 ईस्वी के लगभग हावर्ड विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक बीएफ स्किनर ने सीखने पर अनेक प्रयोग किए और एक स्वशिक्षण सामग्री का निर्माण किया इस सामग्री को अभिक्रमित अध्ययन या अभिक्रमित अनुदेशन या अभिक्रमित अधिगम का नाम दिया गया अभिक्रमित अनुदेशन स्वतः शिक्षण व अधिगम की प्राविधि है जिसमें पाठ्यवस्तु को छोटे-छोटे पदों में सीखने के लिए छात्रों को प्रस्तुत किया जाता है छात्र सक्रिय रहकर अपनी गति से आगे बढ़ता है तथा अपना मूल्यांकन भी करता चलता है इस प्रकार सीखने में इसे पुनर्बलन मिलता है




इस अनुदेशन में शैक्षिक सामग्री को छोटे-छोटे पदों में विभाजित कर उसे इस प्रकार श्रृंखलाबद्ध करने की प्रक्रिया है जिसके सहारे अधिगमकर्ता जहां तक जानता है उससे आगे के नवीन ज्ञान को हम सीख सके इस विधि में शिक्षक की आवश्यकता नहीं पड़ती है इसमें व्यक्तिगत अनुदेशन के रूप में सीखने के लिए अवसर दिया जाता है इसमें छात्र तत्पर होकर अपनी गति एवं क्षमताओं के अनुसार सीखता है और अपनी ज्ञान प्राप्ति का भी बोध करता है इसे व्यवहार परिवर्तन की प्रक्रिया मानते हैं डी एल कुक के अनुसार अभिक्रमित अनुदेशन स्वशिक्षण विधियों के व्यापक संप्रत्यय को स्पष्ट करने के लिए प्रयुक्त एक विधा है एन एस मा वि के अनुसार अभिक्रमित अनुदेशन सजीव अनुदेशन आत्मक प्रक्रिया को स्वयं अधिगम अथवा स्वयं अनुदेशन में परिवर्तित करने की वह तकनीक है जिसमें विषय वस्तु को छोटी-छोटी कड़ियों में विभाजित किया जाता है जिन्हें सीखने वाले को पढ़कर अनुक्रिया करनी होती है जिसे सही अथवा गलत होने का उसे तुरंत पता चल जाता है एसपीक और विलियम्स के अनुसार अभिक्रमित अनुदेशन से अभिप्राय अनुभवों की जीत से है जो उद्दीपन अनुक्रिया संबंध के संदर्भ में प्रभाव शील माने जाने वाली दक्षता की ओर अग्रसर करती है मामले के अनुसार अभिक्रमित अनुदेशन को व्यक्ति के रूप में निर्देशन की एक विधि के रूप में परिभाषित किया जाता है जिससे छात्र सक्रिय रहता है अपनी गति के साथ आगे बढ़ता है तथा परिणामों के ज्ञान की जानकारी उसे शीघ्र मिल जाती है इसमें शिक्षक की उपस्थिति आवश्यक नहीं होती है इस प्रकार कहा जा सकता है की अभिक्रमित अनुदेशन स्वागती से स्वाध्याय या व्यक्तिगत अध्ययन की विधि है जिसमें पाठ्यवस्तु को छोटे-छोटे अंशों में तोड़कर एवं संखला बंद कर अधिगमकर्ता के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है छात्र प्रेरित होकर अनुप्रिया करते हैं और उन्हें तुरंत पुनर्बलन प्रदान किया जाता है ।

अभिक्रमित अनुदेशन की प्रकृति
Nature of Programmed Instruction
अभिक्रमित अनुदेशन की प्रकृति को निम्नलिखित बिंदुओं द्वारा समझा जा सकता है
1. बी एफ स्किनर ने इसे शिक्षण की एक कला एवं सीखने के विज्ञान के रूप में माना उनके अनुसार अभिक्रमित अनुदेशन शिक्षण की कला तथा सीखने का विज्ञान है
2. यह मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित अधिगम प्रविधि है
3. इसमें वैयक्तिक विभिन्नता को ध्यान में रखा जाता है
4. इस विधि में विद्यार्थी स्व गति से स्वतः अध्ययन करते हैं
5. इस तकनीकी के माध्यम से पत्राचार शिक्षण संभव है
6. इस विधि में विषय वस्तु को छोटे-छोटे अंशों में विभाजित कर छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं
7. इसके द्वारा छात्रों को तत्काल पृष्ठपोषण दिया जाता है
8. इसमें सीखने वाला सतत अनुक्रिया करता है
9. छात्रों की अनु क्रियाओं के माध्यम से अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री का मूल्यांकन किया जा सकता है
10. अभिक्रमित सामग्री पूर्ण परीक्षित एवं वैध होती है

अभिक्रमित अनुदेशन के मौलिक सिद्धांत
Basic Principles of Programmed Instruction
अभिक्रमित अनुदेशन के मूलभूत सिद्धांत निम्नलिखित है
1. लघु पद सिद्धांत
इसका अर्थ है कि जिस विषय वस्तु को विद्यार्थी के समक्ष प्रस्तुत किया जाना हो उसे छोटे-छोटे पदों में विभाजित कर दिया जाए क्योंकि यह माना जाता है कि यदि सीखने वाले को सामग्री खंडों में प्रस्तुत की जाए तो वह उसे अच्छी तरह से सीख सकता है अभिक्रमित अनुदेशन में सामग्री को छोटे-छोटे सार्थक टुकड़ो में विभाजित कर दिया जाता है

2. सक्रिय अनुक्रिया सिद्धांत
विषय वस्तु के प्रत्येक पद पर अधिगमकर्ता यदि सक्रिय अनुप्रिया करता है तो वह अच्छी तरह से सीख लेता है विषय वस्तु के प्रत्येक पद या प्रेम के प्रति अधिगमकर्ता को सक्रिय रहने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए उसे सरल से कठिन तथा ज्ञात से अज्ञात की ओर चलने में कठिनाई न हो इसके लिए हर पल अपने आप में पूर्ण होता है

3. तत्काल प्रतिपुष्टि का सिद्धांत 
यदि अधिगमकर्ता को उसके परिणामों की तुरंत जानकारी प्राप्त हो जाए तो सीखने वाला अच्छी तरह से सीख सकता है इस प्रकार तत्काल प्रतिपुष्टि उसे सीखने की दिशा में अच्छी तरह अभी प्रेरित करती है इसलिए एक अच्छे अभिक्रम में तत्काल प्रतिपुष्टि प्रदान करने की आवश्यकता पर अवश्य ही ध्यान दिया जाना चाहिए

4. स्वगति सिद्धांत

यह व्यक्तिगत रूप से प्रशिक्षण प्राप्त करने की एक विधि है तथा इस मूल धारणा पर आधारित है कि अधिगमकर्ता उसी अवस्था में अधिक कार्य करता है यदि उसे अपनी गति से सीखने तथा आगे बढ़ने का अवसर प्राप्त हो इस प्रकार इस सिद्धांत में व्यक्तिगत विभिन्नता (Individual Differences) को ध्यान में रखा जाता है

5. स्व परीक्षण सिद्धांत 
अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए सतत मूल्यांकन होता रहे यह सिद्धांत इसी आवश्यकता की ओर संकेत करता है प्रत्येक छात्र अनुदेशन सामग्री के अध्ययन के बाद अपनी अनु क्रियाओं का आलेख तैयार कर लेता है इसलिए सहायता से छात्र को यह जानकारी होती है कि उसने कितना पढ़ा है और इनकी सहायता से अनुदेशन सामग्री में कितना सुधार तथा परिवर्तन किया जा सकता है ।

अभिक्रमित अनुदेशन के प्रकार
Types of Programmed Instruction
अभिक्रमित अनुदेशन में अनुदेशात्मक सामग्री अथवा विषय वस्तु को उचित ढंग से प्रस्तुत करने के लिए मुख्य रूप से तीन तरीके प्रयुक्त किए जाते हैं अभिक्रमित अनुदेशन के यही तीन मुख्य प्रकार है यह तीन प्रकार निम्नलिखित है 

1.रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन 

रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन के प्रतिपादक बी एफ स्किनर है यह अभिक्रम क्रिया प्रसूत अनुबंधन सिद्धांत (Operant Conditioning Theory) पर आधारित है जो यह बताती है कि मानव व्यवहार को एक निश्चित दिशा दी जा सकती है तथा उचित व्यवहार सिखाया जा सकता है रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन वह अभिक्रम है जिसमें प्रत्येक छात्र एक्रे के क्रम में निश्चित पदों को पार करता हुआ आगे बढ़ता है | डॉक्टर आनंद के शब्दों में रेखीय अभिकरण का शाब्दिक अर्थ एक सीधी रेखा का अतिक्रमण है जिसमें छात्र प्रथम पद से अंतिम पद की एक सीधी रेखा की भाँति चलता है इसके अतिरिक्त सभी छात्र एक जैसे ही पथ पर चलकर एक पद से दूसरे पद की ओर बढ़ते हैं जब तक कि वे सारा प्रोग्राम पूर्ण नहीं कर लेते
 इसमें निम्नलिखित बातें शामिल होती है 
1. विषय वस्तु को छोटे-छोटे अंशों में जिसे पद कहते हैं विभक्त कर एक समय में केवल एक ही पद ही छात्रों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है 
2. छात्र अनुक्रिया कर उत्तर देते हैं 
3. छात्र अपने उत्तर को सही उत्तर से मिलान करके पुनर्बलन प्राप्त करता है 
4. छात्र को आगे क्या करना है उसे यह निर्देश प्राप्त होता है 
इसमें समग्र अनुदेशन प्रक्रिया पूर्णतः नियंत्रित होती है और यह नियंत्रण प्रोग्रामर अर्थात अभिक्रम बनाने वाले का होता है इसलिए इसे बाह्य अभिक्रमण Extrinsic Programming भी कहा जाता है 
इसमें छात्र की सही अनुप्रिया को अधिगम प्रक्रिया का एक वंचित अंग माना जाता है इसका प्रमुख उद्देश्य विषय वस्तु को इस प्रकार प्रस्तुत करना है कि छात्र कम से कम गलती करें इस किन्नर के अनुसार किसी भी पद को पड़ने पर छात्रों को 10% से अधिक गलती नहीं करनी चाहिए




रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन की प्रक्रिया एवं उदाहरण 
रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन में पाठ्यवस्तु को छोटे-छोटे पदों में प्रस्तुत किया जाता है इन पदों की प्रकृति भिन्न होती है परंतु सभी का संबंध अंतिम व्यवहारों से होता है इसमें चार प्रकार के पदों का प्रयोग किया जाता है इसमें छात्र जिस पद के लिए अनुक्रिया करता है उसकी जांच वैद्य हुए उत्तर से करता है जो अगले पद के साथ दिया जाता है पढ़ते समय छात्र सही उत्तर को छिपाकर रखता है अपनी अनुक्रिया करने के बाद उसकी जांच करता है उदाहरण के रूप में इसे निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है
1. भूगोलवेत्ताओं के अनुसार आकाश मंडल में अनेकों सूर्य बताए गए हैं किसी एक सूर्य के चारों ओर घूमने वाले ग्रह इस .......... के कुटुम्बी होते हैं । (सूर्य)
2. हमारे सूर्य तथा उसके आठ ग्रह मिलकर एक कुटुंब बनाते हैं इस................को सौरमंडल कहा गया । (कुटुंब)
3. आकाश मंडल में अनेकों सौरमंडल बताए गए हैं जिनके विषय में हमें कम ज्ञान मिलता है अतीत में हमारे ...........का केंद्र पृथ्वी को माना जाता है (सौरमंडल)
4. 16वीं  शताब्दी में कोपरनिकस नामक वैज्ञानिक ने यह सिद्ध किया कि सौरमंडल का केंद्र पृथ्वी न होकर......... है । (सूर्य)

2. शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन
शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन के प्रतिपादक सर नॉर्मन ए क्राउड अट थे यह प्रोग्रामिंग विषय सामग्री को प्रस्तुत करने की एक प्रभावशाली तकनीक है इस प्रकार की अनुदेशन में विषय वस्तु को छोटे-छोटे पदों में व्यवस्थित करके संपूर्ण पाठ्यवस्तु को एक प्रक्रिया के रूप में प्रस्तुत किया जाता है इसमें छात्र को एक पद पढ़ने के लिए दिया जाता है जिसके तीन या चार विकल्प उत्तर के रूप में दिए रहते हैं इन विकल्पों में एक ही सही होता है छात्र को प्रश्नों के सही उत्तर या विकल्प का चयन करना होता है सही उत्तर का चयन कर लेने पर उससे अगले पद पर जाने का निर्देश दिया जाता है तथा गलत उत्तर को चुनने पर उसका निदान करने हेतु विषय विशेष विभिन्न शाखाओं से गुजरना होता है इसमें छात्र एक पद से दूसरे पद पर पहुंचने के लिए एक ही पद नहीं अपनाते हैं जैसा कि रे के अतिक्रमण में होता है वरन यह अपने अपने उत्तरों पर आधारित अलग-अलग रास्ते अपनाते हैं इसलिए इसे शाखीय प्रोग्रामिंग कहते हैं इसमें समस्त अनुक्रिया एक छात्र द्वारा नियंत्रित होती है अतः इसे आंतरिक प्रोग्रामिंग Intrinsic Programming भी कहा जाता है | शाखीय प्रोग्रामिंग मैं कमजोर छात्र की अपेक्षा एक प्रतिभाशाली छात्र अंतिम व्यवहार तक जल्दी पहुंचता है इस विधि में छात्रों की त्रुटियां करने की अपेक्षा उनके निदान पर अधिक बल दिया जाता है



शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन की प्रक्रिया एवं उदाहरण
शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन मैं एक या दो पैरा में या पूरे पेज पर एक फ्रेम दिया जाता है | यह रेखीय प्रोग्रामिंग की तुलना में काफी बड़ा होता है छात्र एक-एक करके सभी फ्रेमों से गुजरते हैं एक प्रेम के पश्चात उसे संबंधित बहूनिर्वचनीय वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर देने होते हैं उसे दिए गए उत्तरों में से एक सही उत्तर का चुनाव करना होता है यदि उसका उत्तर सही है तो वह आगे बढ़ता है और यदि उत्तर सही नहीं है तो उसे उपचारात्मक निर्देश दिए जाते हैं इस हेतु उसे मूल अंश की विशिष्ट रूप से तैयार की गई उपचारात्मक श्रंखला की ओर जाने का निर्देश दिया जाता है और इसके पश्चात उसे पुणे इस पद पर आने तथा उत्तर देने को कहा जाता है यह क्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि छात्र सही उत्तर नहीं दे पाता केवल सही उत्तर मिलने पर ही उसे अगले पद पर आगे बढ़ने को कहा जाता है शाखीय अभी कर्मण में कमजोर छात्र की अपेक्षा एक प्रतिभाशाली छात्र अंतिम व्यवहार तक जल्दी पहुंचता है अभी कर्मण की इस शैली में छात्रों की त्रुटियां दूर करने की अपेक्षा उनके निदान पर अधिक बल दिया जाता है शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन में जिस प्रेम में विषय वस्तु एवं प्रसन्न रहते हैं उसे गृह पृष्ठ कहते हैं । 

3. अवरोह अभिक्रमित अनुदेशन

अवरोह या मैथेटिक्स का प्रत्यय थॉमस एफ गिलबर्ट 1962 ने दिया उसने Mathetics नामक पत्रिका निकाली और उसमें इस प्रत्यय का सर्वप्रथम उल्लेख किया Mathetics ग्रीक भाषा के मैथीन Mathein शब्द से बना है जिसका अर्थ है सीखना | इस अनुदेशन में विषय वस्तु की अपेक्षा अध्ययन करता कि अनु क्रियाओं पर अधिक बल दिया जाता है इसका लक्ष्य पाठ्यवस्तु का स्वामित्व प्राप्त करना है इसमें शिक्षण प्रक्रिया का नियोजन किस प्रकार किया जाता है कि सीखने वाला सबसे पहले अंतिम अनुक्रिया करता है और धीरे-धीरे प्रथम अनुक्रिया की ओर बढ़ता है इसलिए इसे अवरोही श्रंखला Retrogressing Chaining भी कहते हैं यह कौशल युक्त विषयों के लिए विशेष उपयोगी है गिल्बर्ट के अनुसार Mathetics जटिल व्यवहार श्रंखला के निर्माण एवं विश्लेषण के लिए पुनर्बलन के सिद्धांतों का एक व्यवस्थित प्रयोग है जो पाठ्यवस्तु के स्वामित्व को प्रदर्शित करता है

अवरोह अभिक्रमित अनुदेशन की विशेषताएं
इस अनुदेशन की विशेषताएं निम्नलिखित है
1. इसमें विषय वस्तु के स्वामित्व पर बल दिया जाता है
2. इसमें छात्रों को अवरोही क्रम में अनुक्रिया करनी होती है अर्थात अंतिम व्यवहार सबसे पहले और प्रथम व्यवहार सबसे बाद में
3. छात्रों को अपनी अनु क्रियाओं द्वारा सीखने का मौका मिलता है जिससे छात्र अध्ययन के समय प्रेरित रहते हैं
4. यह एक लचीली व्यूह रचना है
5. इसके द्वारा अधिगम में श्रंखला विभेदीकरण एवं सामान्यीकरण का प्रयोग किया जाता है
6. विषय वस्तु को छोटे-छोटे अंशों में प्रस्तुत किया जाता है जिन्हें छात्र सरलता से बोधगम्य कर लेते हैं
7. इससे छात्र बिना शिक्षक की उपस्थिति के पाठ्यपुस्तक का स्वामित्व कर लेते हैं |



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