Wednesday, January 19, 2022

किशोरावस्था में उम्र के साथ शारीरिक बदलाव Physical changes with age in adolescence

किशोरावस्था 


वृद्धि एक प्राकृतिक प्रक्रम है। जीवनकाल की वह अवधि जब शरीर में ऐसे परिवर्तन होते हैं जिसके परिणामस्वरूप जनन परिपक्वता आती है, किशोरावस्था कहलाती है। किशोरावस्था 11-12 वर्ष से प्रारम्भ होकर 18-19 वर्ष तक रहती है। 


किशोरावस्था में उम्र के साथ शारीरिक बदलाव 


किशोरावस्था में महत्वपूर्ण शारीरिक एवं मानसिक परिवर्तन होते हैं। बालिकाओं में बालकों की अपेक्षा किशोरावस्था का प्रारम्भ एक-दो वर्ष पहले से ही प्रारम्भ हो जाता है। इन शारीरिक तथा मानसिक बदलावों की शुरूआत बालकबालिकाओं में अलग-अलग प्रकार से होती है। 

किशोर तथा किशोरियों में किशोरावस्था के समय होने वाले शारीरिक एवं मानसिक परिवर्तन निम्नलिखित हैं - 


लम्बाई में वृद्धि 


किशोरावस्था में होने वाले परिवर्तनों में लम्बाई में वृद्धि स्पष्ट दिखाई पड़ती है। इस दौरान शरीर की हड्डियों में तेजी से वृद्धि होती है जिस कारण हाथ, पैर की हड्डियाँ बढती हैं और बच्चा लम्बा हो जाता है। प्रारम्भ में लड़कियाँ, लड़कों की अपेक्षा तेजी से बढ़ती हैं। 18 वर्ष की आयु तक लड़के तथा लड़कियाँ अपनी अधिकतम लम्बाई में वृद्धि कर लेते हैं। अलग-अलग बच्चों की लम्बाई में वृद्धि की दर भी भिन्न-भिन्न होती है। किसी बच्चे की लम्बाई माता-पिता से प्राप्त आनुवंशिक लक्षणों पर तो निर्भर करता ही है, साथ ही संतुलित आहार भी लम्बाई को प्रभावित करता है। 


शारीरिक बनावट में परिवर्तन 


किशोरावस्था में लड़कों का सीना चौड़ा हो जाता है। लड़कियों में कमर के निचले भाग की चौड़ाई बढ़ जाती है। वृद्धि के कारण लड़कों में शारीरिक पेशियाँ लड़कियों की अपेक्षा सुस्पष्ट व गठी दिखायी देती हैं। 


स्वर में बदलाव 


आपने अनुभव किया होगा कि किशोरों की आवाज भारी तथा किशोरियों की आवाज मधुर होती है। ऐसा इसलिए होता है कि किशोरावस्था में स्वर यंत्र (लैरिन्कस) विकसित होकर बड़ा हो जाता है। स्वर यंत्र लड़कों के गले के नीचे उभार के में स्पष्ट दिखाई देने लगता है इस उभार को कंठमणि (एडम्स ऐपल ) कहा जाता है । लड़कियों में स्वर यंत्र की आकृति अपेक्षाकृत छोटी होती है और सामान्यतः दिखाई नहीं देती है। लड़कियों का स्वर उच्च तारत्व (पिच) वाला होता है। जबकि लड़कों का स्वर गहरा तथा भारी होता है। 


स्वेद एवं तैल ग्रन्थियों में सक्रियता 


किशोरावस्था में स्वेद-ग्रंथियों एवं तैल ग्रंथियों की सक्रियता बढ़ जाती है। इन ग्रन्थियों के अधिक क्रियाशीलता के कारण कुछ लोगों के चेहरे पर फुसियाँ, कील और मुँहासे निकलने लगते हैं। 


जननांगों की परिपक्वता


किशोरावस्था के अंत तक मानव जननांग पूर्ण रूप से विकसित और परिपक्व हो जाता है। लड़कों में शुक्राणुओं का बनना शुरू हो जाता है। किशोरियों में अण्डाशय परिपक्व होकर अण्डाणु का निर्मोचन करने लगते हैं। 


मानसिक एवं संवेदनात्मक विकास 


किशोरावस्था में व्यक्ति पहले की अपेक्षा अधिक सचेत चिन्तनशील, संवेदनशील, भावुक तथा स्वतंत्र हो जाते हैं जो मानसिक विकास का सूचक है। इस अवस्था में किशोर तथा किशोरियाँ किसी भी बात को सहजता से स्वीकार नहीं करते हैं। वे तर्क-वितर्क करके निर्णय लेने लगते हैं। वे सामाजिक कार्यों में रूचि लेने लगते हैं। कभी-कभी उनमें असुरक्षा की भावना भी पैदा होने लगती है। ये सभी बदलाव बच्चों में शारीरिक वृद्धि एवं विभिन्न प्रकार के ग्रंथियों की क्रियाशीलता के कारण उत्पन्न होते हैं। 

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