Thursday, January 6, 2022

ऊतक क्या है What is Tissue | Science and Technology

ऊतक 

आप जानते है कि सभी जीवित प्राणी व पौधे कोशिकाओं से बने होते हैं। जैसे अमीबा, पैरामीशियम एककोशिक जीवों में सभी जैविक क्रियाएं (श्वसन, पाचन, उत्सर्जन आदि) एक ही कोशिका में सम्पन्न होती है। बहुकोशिक जीवों में असंख्य कोशिकाएं होती हैं। इनमें विशेष कार्य कोशिकाओं के समूहों द्वारा किया जाता है। जैसे मनुष्य में पेशीय कोशिकाओं का समूह संकुचन एवं प्रसारण करता है, तंत्रिका कोशिकाएं संदेशों को पहुँचाने का कार्य करती हैं तथा पौधों में जल का संवहन जाइलम द्वारा होता है। कोशिकाओं के ऐसे समूह को क्या कहा जाता है? शरीर के अन्दर ऐसी कोशिकाएं जो एक तरह के कार्य को सम्पन्न करने में दक्ष होती हैं, वे समूह में होती हैं। समान रचना व उत्पत्ति वाली कोशिकाओं का समूह जिनके द्वारा विशिष्ट कार्य सम्पन्न होते हैं, ऊतक कहलाता है । 


पादप ऊतक 


आप जानते हैं कि जन्तुओं में लम्बाई में वृद्धि एक निश्चित आयु तक होती है। परन्तु पौधों में वृद्वि जीवन भर होती है जिससे नई शाखायें बनती है। अतः इससे स्पष्ट है कि पौधे के कुछ ऊतक जीवनभर विभाजित होते रहते है। ये ऊतक पौधों के कुछ भागों में सीमित रहते हैं। ऊतकों के विभाजन क्षमता के आधार पर ही पौधों के ऊतकों (पादप ऊतक) को प्रविभाजी ऊतक एवं स्थायी ऊतक में वर्गीकृत किया जाता है। 


प्रविभाजी ऊतक 


पौधों में वृद्वि कुछ निश्चित क्षेत्रों में (जड़ तथा तने) की कलिकाओं के शीर्ष भाग में होती है। ऐसा विभाजन उन भागों में पाये जाने वाले ऊतक के कारण होता है। ऐसे ऊतक को प्रविभाजी ऊतक (विभज्योतक) या निरन्तर विभाजित होने वाला ऊतक कहा जाता है 


स्थायी ऊतक 


प्रविभाजी ऊतक द्वारा बनी नयी कोशिकाओं में क्या परिवर्तन होता है ? ये पादप शरीर में विकसित होकर तथा विभाजन क्षमता खोकर अन्य विशिष्ट कार्य करती हैं, इनके समूह को स्थायी ऊतक कहते हैं। जड़, तना, पत्ती तथा अन्य भागों में स्थायी ऊतक देख सकते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं- सरल ऊतक एवं जटिल ऊतक। ये दोनों ऊतक मिलकर बढ़ते हुए पादप का गठन करते हैं। सरल ऊतक एक ही प्रकार की कोशिकाओं से बने होते हैं। पादप निर्माण में इन ऊतकों का विशेष योगदान है। जटिल ऊतक एक से अधिक प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बने होते हैं। इन्हें संवहन ऊतक भी कहते हैं। जाइलम और फ्लोयम जटिल ऊतकों के उदाहरण हैं। 


पादप ऊतक के कार्य 


• पौधों की जड़ों द्वारा अवशोषित जल एवं खनिज लवण को पत्तियों तक पहुँचाने का कार्य जाइलम करते हैं। 

• पत्तियों में निर्मित भोज्य पदार्थ पौधे के विभिन्न अंगों तक पहुंचाने का कार्य फ्लोयम द्वारा होता है। 


जन्तु ऊतक 


कार्य के आधार पर जन्तु ऊतक कई प्रकार के होते हैं। 


(1) एपीथिलियम ऊतक 


एपीथिलियम ऊतक शरीर और अंगों का बाह्य स्तर बनाते हैं। यह ऊतक पूरे शरीर का बाहरी आवरण बनाता है अतः इसे आवरण ऊतक भी कहा जा सकता है। खोखले अंगों जैसे मुखगुहा, आमाशय, आंत ,श्वास नली, फेफड़े, रक्त नलिकाओं आदि की भीतरी सतह इसी ऊतक की बनी होती ) है। 


(2) संयोजी ऊतक 


संयोजी ऊतक विभिन्न अंगों को जोड़ते हैं और सहारा प्रदान करते हैं। जैसे अस्थि, रक्त आदि। संयोजी ऊतक शरीर के विभिन्न अंगों को एक दूसरे से तथा एक ऊतक को दूसरे ऊतक से जोड़ने में मदद करते हैं। ये ऊतकों के बीच के स्थानों को भरने, दृढ़ता प्रदान करने में भी सहायक होते है। संयोजी ऊतक कई प्रकार के होते हैं । 

अन्तरालीय ऊतक - ये त्वचा के नीचे, पेशियों के बीच-बीच में तथा रक्तवाहियों एंव तंत्रिकाओं के चारों ओर पाये जाते हैं। 

अस्थि तथा उपास्थि - अस्थि सबसे कठोर ऊतक है। इसमें कैल्सियम तथा खनिज पाया जाता है जिससे इसमें दृढ़ता आ जाती है। शरीर को ढाँचा (कंकाल) प्रदान करने में इसका विशेष योगदान होता है जबकि उपास्थि लचीला होता है जैसे बाह्य कर्ण उपास्थि का बना होता है। 

रक्त - यह एक मात्र ऊतक है जो तरल अवस्था में होता है। अतः इसे तरल संयोजी ऊतक कहते हैं। रक्त का तरल भाग प्लाज्मा होता है तथा इसमें तीन प्रकार की रक्त कणिका पाई जाती है- लाल रक्त कणिका, श्वेत रक्त कणिका तथा प्लेटलेट्स। 


शरीर में लाल रक्त कणिकाओं की कमी हो जाने से रक्तहीनता (एनीमिया) हो जाता है। 

श्वेत रक्त कणिकाएँ रोगाणुओं का भक्षण करती हैं। इसकी कमी से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है। 

प्लेटलेट्स रक्त के जमने में सहायता करती हैं जिससे चोट लगने पर रक्त का बहाव नियंत्रित होता है। 


(3) पेशी ऊतक 


हमारे शरीर में कुछ विशेष कोशिका होती हैं जिन्हें पेशी कोशिका कहते हैं। पेशी कोशिकाओं के समूह पेशी ऊतक बनाते हैं। ये अंगों को गति प्रदान करने में सहायक होते हैं। 

क्या आपने अनुभव किया है कि कुछ पेशियों को हम अपनी इच्छानुसार गति करा सकते हैं या उनकी गति को रोक सकते हैं। जैसे हाथ और पैर की पेशियाँ। इस तरह की पेशियों को ऐच्छिक पेशी (रेखित पेशी) कहा जाता है । सूक्ष्मदर्शी में अवलोकन करने पर पेशियों में हल्के तथा गहरे रंग की एक के बाद एक रेखायें या धारियों की तरह रचनाएं दिखाई देती हैं। इन्हें रेखित पेशी भी कहते हैं। ये पेशियाँ काफी मजबूत होती हैं और प्रायः कंकाल से जुड़ी होती हैं। 

आहार नाल में भोजन का खिसकना या रक्त नलिका का प्रसार अथवा संकुचन जैसी गति ऐच्छिक नहीं है। हम इनमें इच्छानुसार गति प्रारम्भ या बन्द नहीं कर सकते हैं इसीलिए इनमें पायी जानी वाली पेशियों को अनैच्छिक पेशी कहते हैं। मूत्रवाहिनी में भी ये पेशियाँ पायी जाती हैं। इनकी कोशिकाएं लम्बी और सिरा नुकीला होता है। इनको अरेखित पेशी भी कहते हैं । 

हृदय की पेशियाँ जीवन भर लयबद्ध होकर प्रसार एवं संकुचन करती हैं। यह रचना में रेखित पेशी (ऐच्छिक पेशी) की तरह मजबूत एवं कार्य में अरेखित पेशी (अनैच्छिक पेशी) के समान होती हैं । 


(4) तंत्रिका ऊतक 


विभिन्न प्रकार के उद्दीपनों को शरीर के एक भाग से दूसरे भाग तक पहुँचाने का कार्य तंत्रिका ऊतक करते हैं तथा शरीर के विभिन्न अंगों के कार्यों में समन्वयन भी स्थापित करते हैं। तंत्रिका ऊतक तंत्रिका कोशिकाओं से मिलकर बना होता है। जिसे न्यूरॉन भी कहते हैं। प्रत्येक न्यूरॉन का मुख्य भाग तंत्रिकाकाय कहलाता है । तंत्रिकाकाय से अनेक धागे जैसी रचनायें (प्रवर्ध) निकलती हैं, इन्हें डेन्ड्रान कहते हैं। तंत्रिकाकाय का एक प्रवर्ध मोटा,लम्बा व छोर पर शाखान्वित होता है। इसे तन्त्रिकाक्ष (एक्सॉन) कहते हैं। तंत्रिकाकाय में एक स्पष्ट केन्द्रक होता है । एक कोशिका का तन्त्रिकाक्ष दूसरी कोशिका के डेन्ड्राइट के सम्पर्क में रहते हैं। इस प्रकार शरीर में तंत्रिकाओं का एक जाल सा बन जाता है। मस्तिष्क तथा रीढ़चित्र रज्जु भी तंत्रिका ऊतकों के बने होते हैं। 

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