शिक्षा और शिक्षण क्या है ?
What is Education and Teaching ?
शिक्षण का मूल अर्थ है शिक्षा प्रदान करना हमें पहले यह जान लें कि शिक्षा क्या है इस शब्द की उत्पत्ति शिक्ष से हुई है जिसका अर्थ है ज्ञान प्राप्त करना जिसके माध्यम से हम अपने संस्कारों एवं व्यवहारों का निर्माण करते हैं शिक्षा हमें इस योग्य बनाती है कि हम अपने वातावरण में समायोजित होकर अपनी क्षमताओं एवं निहित योग्यताओं का पूर्ण विकास कर अपने परिवार, समाज तथा राष्ट्र के किसी विशिष्ट क्षेत्र में योगदान कर सके। शिक्षा का उद्देश्य शिष्य के ज्ञान एवं व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाना है। शिक्षा प्रदान करने वाले को शिक्षक, अध्यापक या अध्येता कहा जाता है। शिक्षक मूलतः शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सहजकर्ता (facilitator) के रूप में कार्य करता है।
गुरु श्री रवींद्रनाथ टैगोर के अनुसार शिक्षा का मुख्य उद्देश्य आत्मसाक्षात्कार हैं, जिसका अर्थ है अपने आप (स्वयं) में सार्वभौमिक आत्मा की प्राप्ति करना । यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसकी अनुभूति शिक्षा के बिना असंभव है। गुरु टैगोर ने प्राचीन वेदांत का संश्लेषण भी किया।
स्वामी विवेकानंद ने शिक्षा को इस ढंग से परिभाषित किया है- शिक्षा एक व्यक्ति में पहले से ही पूर्णता की अभिव्यक्ति है।
अरस्तू (Aristotle) ने शिक्षा को 'एक स्वस्थ शरीर में एक स्वस्थ मस्तिष्क के निर्माण' के रूप में परिभाषित किया।
हेनरिक पेस्टलोजी (Heinrich Pestalozzi) के अनुसार, शिक्षा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का प्राकृतिक सामंजस्यपूर्ण और प्रगतिशील विकास है।
जॉन डीवी (John Dewey) ने शिक्षा को उस शक्ति के रूप में परिभाषित किया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति अपने पर्यावरण को नियंत्रित करने और अपनी संभावनाओं को पूरा करने में सक्षम बनता है।
फ्रोबेल (Frobel) के अनुसार, 'शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा बच्चा अपनी आंतरिक क्षमता को इस प्रकार विकसित करता है कि वह बाहरी वातावरण में सार्थक रूप से भाग ले सके।
शिक्षा के अर्थ को दो मुख्य परिपेक्षों में समझा जा सकता है – व्यापक एवं संकुचित ।
शिक्षा के व्यापक अर्थ के अनुसार, यह सारा संसार हमारा शिक्षा क्षेत्र है। शिक्षा का उद्देश्य मानव व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास है। सभी व्यक्ति, बाल, युवा, वृद्ध, स्त्री, पुरुष विद्यार्थी हैं। हम जीवन पर्यन्त कुछ न कुछ सीखते रहते हैं, अतः व्यक्ति का पूरा जीवन ही उसका शिक्षा काल है। साथ ही प्रत्येक व्यक्ति जहां स्वयं दूसरों से कुछ सीखता है, वह दूसरों को भी कुछ न कुछ शिक्षा देता है, जीवन की छोटी-छोटी घटनाएं भी हमें शिक्षा देती हैं।
शिक्षा के संकुचित अर्थ के अनुसार, शिक्षा केवल शिक्षण संस्थानों में ही दी जाती हैं, इसका एक निश्चित पाठ्यक्रम और अवधि है। शिक्षा का उद्देश्य विशिष्ट विषयों का ज्ञान प्राप्त करना है, जिसका मूल्यांकन होता है, और तत्पश्चात मानक उपाधि व प्रमाण-पत्र मिलते हैं। शिक्षा कहीं न कहीं कक्षा कक्ष और पाठ्य पुस्तकों तक ही सीमित रह जाती है।
यूनेस्को (UNESCO United Nations Educational Scientific and Cultural Organization ) द्वारा स्थापित डेलोर कमीशन (Delor Commission) ने 1996 में अपनी रिपोर्ट Learning: The Treasure Within' में शिक्षा के द्वारा शिक्षार्थियों में मानवाधिकार, सामाजिक उत्तरदायित्व, सामाजिक समानता, लोकतांत्रिक भागीदारी, सहिष्णुता, सहकारी भावना ( cooperative spirit), रचनात्मकता, पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता, शांति, अहिंसा, प्रेम, आदि मूल्य विकसित करने पर बल दिया है।
जैक्स डेलर्स ने शिक्षा के 'चार स्तंभ' स्थापित किये:
1. कुछ बनने के लिए अधिगम (Learning To Be )
2. ज्ञान लिए अधिगम (Learning for Knowledge)
3. कुछ करने के लिए अधिगम (Learning To Do)
4. साथ रहने के लिए अधिगम (Learning To Live Together )
शिक्षण औपचारिक और अनौपचारिक दोनों प्रकार का हो सकता है। अनौपचारिक शिक्षा मुख्यत: परिवार और समुदाय द्वारा जीवन के आरंभिक वर्षों में प्रदान की जाती है। दूसरी तरफ औपचारिक शिक्षण में शिक्षण संस्थान एवं शिक्षक की भूमिका अहम होती है, इसमें शिक्षार्थी को कुछ शुल्क भी देना पड़ सकता है। वर्तमान में पारिवारिक, सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तनों के कारण शिक्षा औपचारिक बनती जा रही है।
यूनेस्को 5 अक्टूबर को 'विश्व शिक्षक दिवस' (World Teacher's Day) के रूप में मनाता है। भारत 5 सितंबर को शिक्षक दिवस (Teacher Day) के रूप में मनाता है जो कि हमारे दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती है।
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