शिक्षण से संबंधित कुछ अवधारणाएँ (SOME CONCEPTS RELATED TO TEACHING)
1. शिक्षण के तीन आधार (Three Pillars of Education):
शैक्षणिक प्रक्रिया को तीन प्रश्नों के आधार पर तय किया जा सकता है—'क्यों', 'कैसे', और 'क्या' । 'क्यों' का उत्तर सबसे महत्त्वपूर्ण है, यह दर्शन शास्त्र द्वारा दिया जाता है, 'कैसे' का उत्तर मनोविज्ञान और 'क्या' का उत्तर समाज शास्त्र द्वारा। इसलिए, हम संक्षेप में ये कह सकते हैं कि शिक्षा का मूल आधार दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान और समाज शास्त्र है।
2. आदर्शवाद (Idealism):
आदर्शवाद एक अत्यंत प्राचीनवादी सिद्धांत है, जिसका प्रभाव किसी न किसी रूप में जीवन के प्रत्येक पक्ष पर पड़ता है। अरस्तु (Aristotle) के अनुसार, 'शिक्षा का मूल उद्देश्य व्यक्ति को नैतिक एवं बौद्धिक सदगुणों का आधार बनाना है। व्यक्ति को ऐसे श्रेष्ठतम मूल्यों से अलंकृत करना है, जो मानवता के लिए आवश्यक हैं'। आदर्शवाद नैतिक मूल्यों (moral values), आध्यात्मिकता ( spirituality ), आत्म-अनुभूति (self-realization), आत्म-अनुशासन (self-discipline), व्यक्तित्व के उन्नयन ( personality development) पर बल देता है। संक्षिप्त शब्दों में कहें तो सत्यम (truth), शिवम् (goodness). (सुंदरम (creativity) की व्याख्या आदर्शवाद की आत्मा है।
अध्यापक से अपेक्षाकृत अधिक कमजोर शिक्षण विधियां, सहशिक्षा और सर्व शिक्षा की अवहेलना, आदि इसकी मुख्य कमियां रही हैं।
3. प्रकृतिवाद (Naturalism):
इसमें प्रकृति को ही शिक्षक माना गया है • और पुस्तकीय ज्ञान पर कम बल दिया जाता है। उदाहरण के लिए, कोई बच्चा यदि वृक्ष पर चढ़ना चाहता है, तो उसे ऐसा करने दें, गिरने से उसे अपनी भूल का एहसास होगा। यह एक प्रकार से शिक्षार्थी केंद्रित शिक्षण है। शिक्षक का कार्य छात्रों के विकास के लिए वातावरण तैयार करना है।
इसमें 'निषेधात्मक शिक्षा' को भी सम्मिलित किया गया है, जिसके अनुसार शिक्षार्थी को असत्य मार्ग से बचाना है। 'क्रिया द्वारा सीखना' ( learning by doing), अनुभव, इन्द्रियों द्वारा शिक्षण' निरीक्षण (observation), क्रीड़ा (play way), ह्यूरिस्टिक (Heuristics), डाल्टन द्वारा प्रस्तावित शिक्षण विधियां मुख्य रूप से प्रकृतिवाद के अंतर्गत आती हैं।
4. प्रयोजनवाद (Pragmatism):
जॉन डेवी (John Dewey) को प्रयोजनवाद का मुख्य प्रतिपादक माना गया है। इसके अंतर्गत 'क्रियाशीलता तथा व्यवहारिकता' को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। इसको प्रयोगवाद ( experimentalism) भी कहा गया है। प्रयोजनवाद को अमेरिका की देन माना गया है। इसमें पूर्व निश्चित आदर्शों या सत्य का कोई स्थान नहीं। अनुभव ही सब मूल्यों की कसौटी है (learning by experience), इसे ही ज्ञान का आधार माना जाता है। इसी प्रयोजनवाद के आधार पर क्रियात्मक विद्यालय प्रणाली (activity school system) का आरम्भ हुआ।
5. अस्तित्ववाद (Existentialism):
इसके मुख्य प्रतिपादक कीर्कगार्द (Kierkegard) हैं, जिनका यह कहना है, 'मेरा अस्तित्व है, क्योंकि मैं ऐसा सोचता हूँ मैं, इसलिए सोचता हूँ कि मेरा अस्तित्व है।
इसमें व्यक्तिवाद ( individualism) पर अधिक बल दिया गया है। अस्तित्व को बनाए रखने या पूर्णता लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को स्वयं संघर्ष करना पड़ता है। अस्तित्ववाद का मूलमन्त्र है - अपने आप को जानो। शिक्षकों का कर्तव्य बनता है कि वे छात्रों में मौलिकता, सृजन शक्ति सक्रियता, मानवतावादी दृष्टिकोण, आदि उत्पन्न करने में सहायक बने ।
6. योग (Yoga):
परंपरागत रूप से भारतीय दर्शन के छह रूप माने जाते हैं, जिनमें से एक योग है। ऋषि पतंजलि को योगशास्त्र का रचयिता माना जाता है। योग, मन की प्रवृत्तियों को नियंत्रित करने की विद्या है। यह मात्र शारीरिक व्यायाम नहीं है। इसके आठ घटक हैं— यम या आत्म नियंत्रण (self-control), नियम ( observance), आसन ( postures ), प्राणायाम ( breath control), प्रत्याहार ( restraint ), धारणा (mind study), ध्यान (concentration) और समाधि (meditation)। योग के इन घटकों का अनुसरण करते हुए अज्ञान को दूर किया जा सकता हैं एवं ज्ञान की प्राप्ति की जा सकती है।
7. रचनावाद (Constructivism):
शिक्षार्थी सक्रिय रूप से ज्ञान का निर्माण करता है। जीन पियाजे (Jean Piaget) और जे. एस. ब्रूनर (J. S. Bruner) का मानना था कि अधिगम में सूचनाओं का सक्रिय प्रसंस्करण सम्मिलित है और प्रत्येक व्यक्तिगत गतिविधि अपने लिए ज्ञान का आयोजन और निर्माण करती है। शैक्षिक मनोविज्ञान का मानना है कि ज्ञान संगठन के विकास के कई चरण होते हैं। जीन पियाजे के अनुसार, 'समायोजन' (accommodation) और 'आत्मसातीकरण' ( assimilation) अधिगम की मूल बातें हैं। एक शिक्षार्थी 'संयोजन' के माध्यम से एक नई योजना विकसित करता है। नए अनुभवों को पहले से उपस्थित योजना में आत्मसात कर लिया जाता है, या उन्हें नई योजना बनाकर समायोजित किया जा सकता है। ऐसी स्थिति को 'रचनावाद' (constructivism) कहा जाता है।
8. मानवतावाद (Humanism ):
मानवतावाद जीवन में एक उचित संतुलन है और मनुष्य को सभी गतिविधियों का केंद्र और मापदण्ड मानता है। मानवतावाद सभी मनुष्यों के हितों और कल्याण में विश्वास करता है। इस प्रकार मनुष्य के जीवन को रूपांतरित करना चाहिए। ताकि सभी का कल्याण लक्ष्य बन जाए। अधिगम का यह रूप आत्मसाक्षात्कार / वास्तविकीकरण (self-actualization) पर निर्भर है। यह संकल्पना सहयोग, आपसी सहिष्णुता (mutual tolerance) और सामाजिक समझ का समर्थन करता है। कार्ल रोजर्स (Carl Rogers ) और अब्राहम मास्लो ( Abraham Maslow) मानवतावाद के मुख्य समर्थक हैं।
9. तर्कवाद ( Rationalism):
तर्कवाद के अनुसार, ऐसे कई महत्वपूर्ण ढंग हैं जिनके माध्यम से हमारी अवधारणाएं और ज्ञान हमारे इंद्रिय अनुभव (sense experience) के माध्यम से स्वतंत्र रूप से प्राप्त होते हैं।
10. अनुभववाद (Empiricism):
अनुभववाद के अनुसार, हमारा संवेदी तंत्र (sensory experience) हमारी सभी अवधारणाओं और ज्ञान का अंतिम स्रोत हैं।
11. व्यवहारवाद ( Behaviourism):
व्यवहारवाद मानता है कि शिक्षार्थी एक निष्क्रिय जीव (passive organism ) हैं जिसे नए व्यवहार का ज्ञान प्राप्त करने के लिए अनुकूलित (conditioned) किया जा सकता है। इसलिए, व्यवहार में बदलाव के द्वारा सीखने की व्याख्या की जा सकती हैं। ई. एल. थार्नडाइक (EL Thorndike) ने अभ्यास के नियम और प्रभाव के नियम को प्रतिपादित किया ।
(a) अभ्यास का नियम (Law of Exercise):
एक अनुकूलित प्रतिक्रिया (conditioned responsec ) को दोहराने से उत्तेजना ( stimuli) और प्रतिक्रिया ( response ) के मध्य बंधन सशक्त होता है। दूसरे शब्दों में, अभ्यास मनुष्य को पूर्ण बनाता है।
(b) प्रभाव का नियम (Law of Effect) :
प्रभाव का नियम सुदृढ़ीकरण और दंड ( reinforcement and punishment ) का सिद्धांत है। हमारे पूर्व व्यवहार से उत्पन्न हित और बाधाएं हमारे भविष्य के व्यवहार को तय करते हैं।
12. गेस्टाल्ट मनोविज्ञान (Gestalt Psychology ):
इस धारणा के अनुसार, संपूर्ण अपने भागों के योग से बड़ा है। उदाहरण के लिए, मानव शरीर में कोशिकाएँ (cells), ऊतक (tissues), अंग (organs), तंत्र ( systems) आदि होते हैं और इन सभी घटकों का योग अंगों के योग से अधिक होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि भाग एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और उनके मध्य परस्पर तालमेल बना हुआ है। इसके अलावा, है गेस्टाल्ट मनोविज्ञान ने इस धारणा के महत्व को प्रदर्शित किया। इसने यह भी दिखाया कि जटिल अधिगम की आवश्यकता धीरे धीरे लंबे अभ्यास के माध्यम से नहीं होती है, बल्कि अंतर्दृष्टि (insight) के माध्यम से विकसित हो सकती है।
13. विभिन्न दर्शनग्राही दर्शन (Eclectic Philosophy):
विभिन्न दर्शनग्राही सभी स्रोतों से ज्ञान का संलयन (fusion) है। यह एक विचित्र प्रकार का शैक्षिक दर्शन है, जो विभिन्न दर्शनों से सभी अच्छे विचारों और सिद्धांतों को मिश्रित करता है। शिक्षा के कई और दर्शन भी हैं, और प्रत्येक दर्शन का अपना योगदान और सीमाएं हैं। कोई भी दर्शन अपने आप में पूर्ण नहीं है, और साथ ही, एक ही दर्शन को सभी स्थितियों में सफलतापूर्वक लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि दुनिया और उसके मूल्य निरंतर परिवर्तित हो रहे हैं। शिक्षा व्यवस्था भी समय-समय पर परिवर्तित होती हैं।
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