संसद के दो सदन हैं, राज्य सभा और लोक सभा। इनमें से राज्य समा स्थायी सदन है जिसके एक-तिहाई सदस्य प्रत्येक दो वर्ष की अवधि के पश्चात सेवानिवृत्त हो जाते हैं और उनके स्थान पर नए सदस्य निर्वाचित किए जाते हैं। लोक सभा प्रत्येक आम चुनाव के बाद निर्वाचन आयोग द्वारा अधिसूचना जारी किए जाने पर गठित होती है। लोक सभा की प्रथम बैठक तब होती है जब इसके नव निर्वाचित सदस्य "भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखने के लिए", "भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखने के लिए" और "संसद सदस्य के कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक निर्वहन करने के लिए" निर्धारित शपथ लेने या प्रतिज्ञान करने के प्रयोजन से प्रथम बार समवेत होते हैं। संसद के प्रत्येक सदस्य के लिए यह आवश्यक है कि वह “अपना स्थान ग्रहण करने से पहले" उक्त शपथ ले या प्रतिज्ञान करे। जब तक वह शपथ लेने या प्रतिज्ञान करने के पश्चात सदन में अपना स्थान ग्रहण नहीं कर लेता तब तक संसद सदस्य के रूप में निर्वाचित कोई व्यक्ति उन उन्मुक्तियों तथा विशेषाधिकारों का अधिकारी नहीं होता जो सदस्यों के लिए उपलब्ध होते हैं, न ही मतदान करने और कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार उसे प्राप्त होता है।
सदनों को बैठक के लिए आमंत्रित करना
राष्ट्रपति समय समय पर संसद के प्रत्येक सदन को बैठक के लिए आमंत्रित करता है। प्रत्येक सत्र या अधिवेशन की अंतिम तिथि के बाद राष्ट्रपति को छह मास के भीतर आगामी अधिवेशन के लिए सदनों को बैठक के लिए आमंत्रित करना होता है। यद्यपि सदनों को बैठक के लिए आमंत्रित करने की शक्ति राष्ट्रपति में निहित है तथापि व्यवहार में इस आशय के प्रस्ताव की पहल सरकार द्वारा की जाती है। संसदीय कार्य विभाग अधिवेशन के प्रारंभ की प्रस्तावित तिथि की और उसकी अवधि की सूचना राज्य सभा और लोक सभा के महासचिवों को देता है।
राज्य सभा का सभापति और लोक सभा का अध्यक्ष जब उस प्रस्ताव पर सहमत हो जाते हैं तो दोनों सदनों के महासचिव उल्लिखित तिथि और समय पर सदनों को बैठक के लिए आमंत्रित करने के लिए राष्ट्रपति के आदेश प्राप्त करते हैं। वे राष्ट्रपति के आदेश को असाधारण राजपत्र में अधिसूचित करते हैं और उस बारे में विज्ञप्ति जारी करते हैं। तत्पश्चात, महासचिव प्रत्येक सदन को 'आमंत्रण भेजते हैं।
संसद के सत्र
सामान्यतया प्रतिवर्ष संसद के तीन सत्र या अधिवेशन होते हैं यथा बजट अधिवेशन (फरवरी-मई), वर्षाकालीन अधिवेशन (जुलाई-सितंबर), और शीतकालीन अधिवेशन (नवंबर-दिसंबर)। किंतु, राज्य सभा के मामले में, बजट अधिवेशन को दो अधिवेशनों में विभाजित कर दिया जाता है। इन दो अधिवेशनों के बीच तीन से चार सप्ताह का अवकाश होता है। इस प्रकार राज्य सभा के एक वर्ष में चार अधिवेशन होते हैं।
अस्थायी (प्रोटेम) अध्यक्ष
आम चुनाव के पश्चात जब लोक सभा पहली बार बैठक के लिए आमंत्रित की जाती है तो राष्ट्रपति लोक सभा के किसी सदस्य को अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त करता है। सामान्यतया, वरिष्ठतम सदस्य को इस हेतु चुना जाता है। अस्थायी अध्यक्ष सदन की अध्यक्षता करता है जिससे कि नए सदस्य शपथ आदि ले सकें और अपना अध्यक्ष चुन सकें।
राष्ट्रपति का अभिभाषण
नव निर्वाचित सदस्यों द्वारा शपथ लिए जाने या प्रतिज्ञान किए जाने और अध्यक्ष के चुन लिए जाने के पश्चात, राष्ट्रपति संसद भवन के सेंट्रल हाल में एक साथ समवेत संसद के दोनों सदनों के समक्ष अभिभाषण करता है। राष्ट्रपति प्रत्येक वर्ष के प्रथम अधिवेशन के प्रारंभ में भी एक साथ समवेत दोनों सदनों के समक्ष अभिभाषण करता है।
राष्ट्रपति का अभिभाषण बहुत महत्वपूर्ण अवसर होता है जो राज्याध्यक्ष की गरिमा के अनुकूल बड़ा भव्य होता है। राष्ट्रपति राजकीय बग्घी अथवा कार में संसद भवन पहुंचते हैं, जहां द्वार पर राज्य सभा के सभापति, लोक सभा के अध्यक्ष, संसदीय कार्य मंत्री और दोनों सदनों के महासविच उनका स्वागत करते हैं। उसके बाद उन्हें समारोहपूर्ण जुलूस में लाल कालीन से सुसज्जित मार्ग द्वारा ऊंचे गुंबद वाले संसद भवन के सेंट्रल हाल में ले जाया जाता । राष्ट्रगान के पश्चात, राष्ट्रपति अभिभाषण पढ़ते हैं। उस अभिभाषण में ऐसी नीतियों एवं कार्यक्रमों का विवरण होता है जिन्हें आगामी वर्ष में कार्यरूप देने का सरकार का विचार हो। साथ ही, पहले वर्ष की उसकी गतिविधियों और सफलताओं की समीक्षा भी दी जाती है। वह अभिभाषण चूंकि सरकार की नीति का विवरण होता है अतः वह सरकार द्वारा तैयार किया जाता है।
राष्ट्रपति के अभिभाषण के आधा घंटा पश्चात दोनों सदन अपने अपने चेंबर में समवेत होते हैं जहां राष्ट्रपति के अभिभाषण की प्रतियां सदन के महासचिव द्वारा सभा पटल पर रखी जाती हैं। प्रत्येक सदन में किसी एक सदस्य द्वारा प्रस्तावित और दूसरे सदस्य द्वारा समर्थित धन्यवान प्रस्ताव पर दोनों सदनों में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा होती है। अभिभाषण पर चर्चा बहुत व्यापक रूप से होती है और प्रशासन के किसी एक या सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला जाता है। सदस्य राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय सब प्रकार की समस्याओं पर बोल सकते हैं। धन्यवाद प्रस्ताव के संशोधनों के द्वारा उन मामलों पर भी चर्चा हो सकती है जिनका अभिभाषण में विशेष रूप से उल्लेख न हो। चर्चा के दौरान सीमा केवल यही है कि सदस्य ऐसे मामलों का उल्लेख नहीं कर सकते जिनके लिए भारत सरकार प्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी न हो और वाद-विवाद के दौरान राष्ट्रपति के नाम का उल्लेख नहीं किया जा सकता। बाद वाले प्रतिबंध के पीछे विचार यह है कि अभिभाषण में जो कुछ कहा जाता है और जो नीति की बात होती है उसके लिए सरकार उत्तरदायी होती है न कि राष्ट्रपति।
चर्चा के अंत में, राष्ट्रपति के अभिभाषण पर वाद-विवाद का उत्तर सामान्यतया प्रधानमंत्री द्वारा दिया जाता है।' प्रधानमंत्री के उत्तर के पश्चात, संशोधनों को निबटाया जाता है और धन्यवाद का प्रस्ताव सदन के मतदान के लिए रखा जाता है। प्रस्ताव पास हो जाने पर, उसकी सूचना अध्यक्ष द्वारा एक पत्र के माध्यम से राष्ट्रपति को दे दी जाती है।
अध्यक्ष/उपाध्यक्ष का निर्वाचन
संविधान के अनुसार यह अपेक्षित है कि लोक सभा प्रथम बैठक के पश्चात, जितनी जल्दी हो सके, सदन के दो सदस्यों को अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में चुनेगी। राष्ट्रपति, लोक सभा के महासचिव के द्वारा प्रधानमंत्री का सुझाव प्राप्त होने के पश्चात अध्यक्ष के निर्वाचन के लिए तिथि का अनुमोदन करता है। तत्पश्चात महासचिव उस तिथि की सूचना उसके प्रत्येक सदस्य को भेजता है।'
अध्यक्ष के निर्वाचन के लिए निर्धारित तिथि एक दिन पूर्व, किसी समय, कोई भी सदस्य इस आशय के प्रस्ताव की सूचना दे सकता है कि किसी अन्य सदस्य को (अर्थात इस प्रकार सूचना देने वाले से भिन्न सदस्य को) सदन का अध्यक्ष चुना जाए। उस सूचना में जिस सदस्य के नाम का प्रस्ताव किया गया हो उस सदस्य का बयान सूचना के साथ भेजा जाना आवश्यक है कि निर्वाचित किए जाने पर वह अध्यक्ष के रूप में कार्य करने के लिए तैयार है। सामान्यतया, सत्ताधारी दल द्वारा चुने गए उम्मीदवार के निर्वाचन के लिए प्रस्ताव की सूचना प्रधानमंत्री द्वारा या संसदीय कार्य मंत्री द्वारा दी जाती है।
प्रस्ताव की नियमानुकूल पाई जाने वाली सभी सूचनाएं कार्यसूची में उसी क्रम में दर्ज कर दी जाती हैं जिसमें वे समयानुसार प्राप्त हुई हों।
निर्वाचन के लिए निर्धारित दिन को, जिस सदस्य के नाम में कार्यसूची में वह प्रस्ताव होता है उसे प्रस्ताव पेश करने के लिए कहा जाता है। वह चाहे तो प्रस्ताव को वापस भी ले सकता है। जो प्रस्ताव पेश किए जाते हैं और विधिवत समर्थित किए जाते हैं उन्हें उसी क्रम में जिसमें वे पेश किए गए हों, एक एक करके सदन के मतदान के लिए रखा जाता है। जैसे ही कोई प्रस्ताव स्वीकृत हो जाता है, पीठासीन अधिकारी, अन्य प्रस्ताव मतदान के लिए रखे बिना, घोषणा करता है कि स्वीकृत प्रस्ताव में जिस सदस्य के नाम का प्रस्ताव किया गया है, उसे सदन का अध्यक्ष चुना गया है।"
अध्यक्ष अपना पद रिक्त कर देगा :
(क) यदि वह लोक सभा का सदस्य नहीं रहे;
(ख) यदि वह अपना त्यागपत्र उपाध्यक्ष को भेज दे; और
(ग) यदि लोक सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत द्वारा उसे पद से हटाने के लिए संकल्प पास कर दिया जाए।
अध्यक्ष सदन के भंग हो जाने के पश्चात भी, नए "सदन की प्रथम बैठक होने के ठीक पहले" तक अपने पद पर बना रहता है।
सदनों की बैठकें
किसी अधिवेशन के लिए 'आमंत्रण' के साथ सदस्यों को 'बैठकों का अस्थायी तिथि पत्र' भेजा जाता है जिसमें दर्शाया जाता है कि बैठकें किस किस तिथि को होगी, कौन कौन-सा कार्य किया जाएगा। प्रश्नों का चार्ट भी भेजा जाता है जिसमें यह जानकारी दी जाती है कि प्रश्नों के उत्तर के लिए विभिन्न मंत्रालयों के लिए कौन कौन-सी तिथियां नियत की गई हैं। अधिवेशन के प्रारंभ होने संबंधी विभिन्न मामलों पर अन्य जानकारी के साथ यह सूचना बुलेटिन में भी प्रकाशित की जाती है।
सदन की बैठकें, यदि अध्यक्ष अन्यथा निर्देश नहीं देता तो, सामान्यतया 11.00 बजे म. पू. आरंभ होती हैं और बैठकों का सामान्य समय 11.00 बजे म. पू. से 13.00 बजे म. प. और 14.00 बजे म. प. से 18.00 बजे म. प. तक होता है और 18.00 बजे म. प. से 14.00 बजे म. प. तक का समय मध्याह्न भोजन के लिए छोड़ दिया जाता है। परंतु ऐसे अनेक अवसर आते हैं, जबकि सदन मध्याह्न भोजन के समय में भी कार्य करता है और देर तक भी बैठता है।
कार्यक्रम और कार्यसूची
संसदीय कार्य दो मुख्य शीर्षों में बांटा जा सकता है, अर्थात सरकारी कार्य और गैर-सरकारी कार्य। सरकारी कार्य को फिर दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है, अर्थात
(क) ऐसे कार्य जिनकी शुरुआत सरकार द्वारा की जाती है और
(ख) ऐसे कार्य जिनकी शुरुआत गैर-सरकारी सदस्यों द्वारा की जाती है परंतु जिन्हें सरकारी कार्य के समय में लिया जाता है।
दैनिक कार्य अध्यक्ष द्वारा दिए गए निर्देशों के निर्देश 2 में निर्धारित प्राथमिकताओं के अनुसार इस क्रम में किया जाता है : शपथ या प्रतिज्ञान, निधन संबंधी उल्लेख, प्रश्न, स्थगन प्रस्ताव पेश करने की अनुमति, विशेषाधिकार भंग के प्रश्न, सभा पटल पर रखे जाने वाले पत्र, राष्ट्रपति से प्राप्त संदेशों की सूचना, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, वक्तव्य और वैयक्तिक स्पष्टीकरण, समितियों के लिए निर्वाचन संबंधी प्रस्ताव, वक्तव्य और वैयक्तिक स्पष्टीकरण, समितियों के लिए निर्वाचन संबंधी प्रस्ताव, पेश किए जाने वाले विधेयक, नियम 377 के अधीन मामले, इत्यादि।
गैर-सरकारी सदस्यों के कार्य, अर्थात विधेयकों और संकल्पों पर प्रत्येक शुक्रवार के दिन या किसी ऐसे दिन जो अध्यक्ष निर्धारित करे ढाई घंटे तक चर्चा की जाती है, उनके अतिरिक्त कुछ ऐसे भी कार्य हैं जिनकी शुरुआत यद्यपि गैर-सरकारी सदस्यों द्वारा की जाती है परंतु उनको सरकारी कार्य निबटाने के लिए नियत समय में निबटाया जाता है। किसी मंत्री द्वारा या अन्य सदस्य द्वारा दिए गए वक्तव्यों में गलतियां बताने वाले वक्तव्यों और सदस्यों द्वारा वैयक्तिक स्पष्टीकरणों के अतिरिक्त, इस श्रेणी में कुछ अन्य कार्य भी आते हैं जैसे : प्रश्न, स्थगन प्रस्ताव, अविलंबनीय लोक महत्व के मामलों की ओर ध्यान दिलाना, विशेषाधिकार के प्रश्न, अविलंबनीय लोक महत्व के मामलों पर अल्पावधि चर्चा, मंत्रिपरिषद में अविश्वास का प्रस्ताव, प्रश्नों के उत्तरों से उत्पन्न होने वाले मामलों पर आधे घंटे की चर्चाएं, नियम 377 के अधीन मामले, इत्यादि। सदन में किए जाने वाले विभिन्न कार्यों के लिए समय की सिफारिश सामान्यतया कार्य मंत्रणा समिति द्वारा की जाती है, जिसकी सामान्यतया सप्ताह में एक बैठक होती है।
कार्य-संचालन तथा सामान्य प्रक्रिया
प्रत्येक सदन अपनी प्रक्रिया का स्वामी है और वह संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए अपनी प्रक्रिया तथा अपने कार्य-संचालन के विनियमन के लिए नियम बना सकता है (अनुच्छेद 118)। संसद की किसी कार्यवाही की विधिमान्यता को प्रक्रिया की किसी अभिकथित अनियमितता के आधार पर न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जा सकता और संसद का कोई अधिकारी या सदस्य संसद में प्रक्रिया या कार्य संचालन के विनियमन के मामले में किन्हीं शक्तियों के प्रयोग के संबंध में न्यायालयों की अधिकारिता के अधीन नहीं है (अनुच्छेद 122)।
प्रक्रिया तथा कार्य-संचालन के कुछ आधारभूत नियम संविधान में ही दे दिए गए हैं । अतः, अनुच्छेद 100 में उपबंध है
(1) कि इस संविधान में यथा अन्यथा उपबंधित के सिवाय (यथा सवैधानिक संशोधन, राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग, पीठासीन अधिकारियों, न्यायाधीशों को हटाया जाना आदि) प्रत्येक सदन की बैठक में या सदनों की संयुक्त बैठक में सभी प्रश्नों का अवधारण पीठासीन अधिकारी को छोड़कर, जो केवल मत बराबर होने की दशा में निर्णायक मत का प्रयोग करेगा, उपस्थिति और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत से किया जाएगा और
(2) प्रत्येक सदन की सारी कार्यवाही सदस्यता में कोई रिक्तियां अथवा वाद-विवाद या मतदान में किसी अनधिकृत सहभागिता के होने पर भी विधिमान्य होंगी।
सदन में गणपूर्ति
सदन की किसी बैठक के लिए कोरम अथवा गणपूर्ति, अध्यक्ष या अध्यक्ष के रूप में कार्य कर रहे व्यक्ति सहित कुल सदस्य संख्या का दसवां भाग अथवा 55 सदस्यों से होती है। प्रत्येक दिन बैठक के आरंभ में, अध्यक्ष के पीठासीन होने से पहले, यह सुनिश्चित किया जाता है कि सदन में गणपूर्ति है। यदि किसी दिन 11.00 बजे म. पू. पर यह देखा जाए कि सदन में गणपूर्ति नहीं है तो गणपूर्ति घंटी बजाई जाती है और अध्यक्ष तब पीठासीन होता है जब गणपूर्ति हो गई हो। मध्याह्न भोजन के पश्चात या स्थगित होने के पश्चात जब सदन पुनः समवेत होता है तब भी इसी प्रक्रिया का अनुसरण किया जाता है। बैठक के शेष समय के दौरान एक प्रथा-सी है कि किसी सदस्य द्वारा गणपूर्ति का प्रश्न सामान्य तौर पर नहीं उठाया जाता। विशेष रूप से बैठकों के बढ़े हुए समय में, मध्याह्न भोजन के दौरान या 5.00 बजे म. प. के बाद, यह प्रश्न नहीं उठाया जाता। परंतु यदि एक भी सदस्य किसी समय गणपूर्ति के अभाव का प्रश्न उठा देता है तो कार्यवाही रोकनी पड़ती है और गणपूर्ति घंटी बजानी पड़ती है और सदन की कार्यवाही गणपूर्ति हो जाने पर ही पुनः शुरू की जा सकती है।
मतदान की प्रक्रिया किसी प्रश्न पर सदन का निर्णय किसी सदस्य द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव के द्वारा लिया जा सकता है। अधिकांश मामलों में निर्णय ध्वनि मत द्वारा किया जाता है। यदि किसी प्रश्न के संबंध में ध्वनि मत को चुनौती दी जाती है तो अध्यक्ष आदेश देता है कि लावी को खाली कर दिया जाए। लगभग साढ़े तीन मिनट बीतने के बाद, अध्यक्ष प्रश पर दूसरी बार मत लेता है तथा घोषणा करता है कि क्या उसकी राय में 'हो' पक्ष वालों की जीत हुई या 'ना' पक्ष वालों की जीत हुई है। यदि इस प्रकार घोषित राय को पुनः चुनौती दी जाती है तो अध्यक्ष आदेश देता है कि या तो स्वचालित मत अभिलेखन उपकरण को चालू करके या सदन में 'हां' या 'ना' की पर्चियों का प्रयोग करके या सदस्यों द्वारा लाबियों में जाकर मत अभिलिखित किए जाएं। मत अभिलिखित करने के प्रयोजन के लिए लाबियों में जाने का व्यवझर अब कई वर्षों से चलन में नहीं है।
अब अध्यक्ष द्वारा मतविभाजन का आदेश दिया जाता है तब विभाजन घटियां सामान्यतया साढ़े तीन मिनट के लिए बजती हैं। घटियों का बजना बंद होने के ठीक बाद, चैंबर की भीतरी लाबी के सभी बाहरी दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं ताकि मतविभाजन संपन्न होने तक कोई भी अंदर प्रवेश न कर सके।
स्वचालित मत अभिलेखक प्रणाली के अंतर्गत प्रत्येक सदस्य, उसे आवंटित स्थान से इस प्रयोजन के लिए लगाए गए अपेक्षित बटन को दबाकर, अपना मत देता है। प्रत्येक सदस्य की सीट पर एक ही पुश बटन सेट लगाया गया है जिसमें एक मार्गदर्शी बत्ती तथा तीन पुश बटन हैं। हरे रंग का बटन 'हा पक्ष के लिए, लाल रंग का बटन 'ना' पक्ष के लिए और काले रंग का बटन 'मतदान के अप्रयोग' का है। इनके साथ तार से लटकता हुआ एक पुश स्विच भी लगाया गया है। मतदान का परिणाम संसूचक पट पर आने के बाद, अध्यक्ष द्वारा मतविभाजन के परिणाम की घोषणा की जाती है। जब स्वचालित मत अभिलेखक खराब होता है या जब स्थान या विभाजन संख्याएं वटित न की गई हों तब पर्चियों के वितरण की विधि को प्रयोग में लाया जाता है। सदस्यों को अपने मत अभिलिखित करने के लिए उनकी सीटों पर हा पक्ष/ना पक्ष की छपी हुई पर्चियां सप्लाई की जाती हैं। पर्ची एक ओर ‘झं पक्ष के लिए अंग्रेजी तथा हिंदी दोनों में हरे रंग में और दूसरी ओर ‘ना पक्ष' के लिए लाल रंग में छपी होती है। सदस्यों से अपेक्षा की जाती है कि वे समुचित स्थानों पर अपने हस्ताक्षर करके तथा अपने नाम, विभाजन संख्याएं और तारीखें साफ-साफ लिखकर अपनी पसंद के अनुसार मत अभिलिखित करें। जो सदस्य मतदान का प्रयोग नहीं करना चाहते वे अंग्रेजी तथा हिंदी दोनों में पीले रंग में छपी 'मतदान अप्रयोग की पर्ची भरें। यदि किसी सदस्य को सीर/विभाजन संख्या आवंटित न की गई हो तो वह अपने हस्ताक्षर नीचे अपना नाम, निर्वाचन क्षेत्र, राज्य और तारीख साफ साफ लिख दे। सभा पटल पर तैनात अधिकारी हां पक्ष/ना पक्ष और मतदान अप्रयोग' की पर्चियों की छानबीन करता है तथा उन पर अभिलिखित मतों की गिनती करता है तथा परिणाम का संकलन करता है। इस प्रकार संकलित परिणाम की सभापीठ द्वारा घोषणा की जाती है। पीठासीन अधिकारी को पहली बार में मतदान करने का अधिकार नहीं है किंतु मतों की संख्या बराबर होने पर वह मत दे सकता है जो निर्णायक होता है।
कार्यवाही का अभिलेख :
संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही का एक पूर्ण शब्दशः अभिलेख तैयार तथा प्रकाशित किया जाता है। जबकि वाद-विवाद की असंशोधित तथा साइक्लोस्टाइल्ड प्रतियां सदस्यों को अगले दिन उपलब्ध करा दी जाती हैं। वाद-विवाद की छपी हुई प्रतियां सामान्यतया बैठक के बाद एक मास के अंदर उपलब्ध करा दी जाती हैं। कतिपय ऐसे शब्दों या वाक्यों को, जिन्हें पीठासीन अधिकारी द्वारा असंसदीय घोषित कर वाद-विवाद में से निकाल दिया जाता है तथा उसके आदेशों के अंतर्गत अभिलिखित न किए गए भागों को कार्यवाही के अधिकारिक अभिलेख में सम्मिलित नहीं किया जाता।
कार्यवाही को टेप रिकार्ड किया जाता है। इसके अलावा संसदीय रिपोर्टर कार्यवाही को पांच पांच या दस दस मिनट की बारी से शार्टहैंड में भी लिख लेते हैं। रिपोर्टर अपने अपने हिस्सों का लिप्यंतरण करने के बाद अपनी शंकाओं का टेप रिकार्ड किए गए पाठ से समाधान करते हैं। वाद-विवाद के अधिवेशनवार छपे हुए खंड हिंदी तथा अंग्रेजी पाठ में उपलब्ध होते हैं।
संसद की भाषा
संविधान द्वारा की गई घोषणा के अनुसार संसद के कार्य का संचालन करने की भाषाएं हिंदी तथा अंग्रेजी हैं। किंतु पीठासीन अधिकारी किसी ऐसे सदस्य को, जो हिंदी में या अंग्रेजी में अपनी पर्याप्त अभिव्यक्ति नहीं कर सकता हो, अपनी मातृ-भाषा में संसद को संबोधित करने की अनुज्ञा दे सकते हैं (अनुच्छेद 120)। दोनों सदनों में 12 भाषाओं का सदन की भाषाओं अर्थात हिंदी तथा अंग्रेजी में साथ साथ भाषांतर करने की सुविधाएं विद्यमान हैं।
संसद तथा प्रचार माध्यम (मीडिया)
संविधान में प्रेस की स्वतंत्रता के लिए अभिव्यक्त रूप से कोई उपबंध नहीं किया गया है, किंतु न्यायिक निर्णयों द्वारा यह तय पाया गया है कि बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में प्रेस की स्वतंत्रता भी सम्मिलित है।
संसद के किसी भी सदन की कार्यवाही के प्रकाशन से संबद्ध सभी व्यक्तियों को संविधान के अंतर्गत किसी भी न्यायालय में कार्यवाही से पूर्ण उन्मुक्ति प्रदान कि इस तरह का प्रकाशन सदन के प्राधिकार द्वारा या उसके प्राधिकार के अंतर्गत किया जाए [अनुच्छेद 105 (2)]। संसद के किसी सदन की किन्हीं कार्यवाहियों के सारतया सही विवरण के किसी समाचारपत्र में प्रकाशन के या बेतार तारयांत्रिकी द्वारा प्रसारण के संबंध में भी सांविधिक संरक्षण प्रदान किया । की गई है, किंतु शर्त यह गया है बशर्ते की रिपोर्ट जनहित के लिए हों तथा विद्वेष रहित हों (संविधान का अनुच्छेद 361 क)। यह संरक्षण इस समग्र परिसीमा के अंतर्गत प्रदान किया गया है। सदन को अपने वाद-विवाद या अपनी कार्यवाहियों पर नियंत्रण करने तथा यदि आवश्यक हो तो, उनके प्रकाशन का प्रतिषेध करने और अपने वाद-विवादों तथा अपनी कार्यवाहियों के उल्लंघन के लिए दंड देने तथा अपने आदेशों के उल्लंघन लिए दंड देने की शक्ति प्राप्त है। सामान्यतया सदन की कार्यवाहियों को रिपोर्ट करने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाए जाते।
संसद को इसके कार्यकरण पर या इसके सदस्यों या इसकी समितियों के कार्यकरण पर आक्षेप करने या लांछन लगाने वाले किसी विद्वेषपूर्ण लेखन, भाषण आदि के लिए कार्यवाही करने का हक है। किंतु, यदि आलोचना निष्पक्ष तथा निष्कपट है तो कोई कार्यवाही नहीं की जाती।
संसद में प्रेस को प्रदान की गई सुविधाओं में प्रेस दीर्घा, प्रेस कक्षों, ससदीय पत्रों तथा जारी की गई प्रेस विज्ञप्तियों की सप्लाई, लाबियों तथा केंद्रीय कक्ष में आने जाने, ग्रंथालय तथा संदर्भ सेवाओं आदि का उपयोग करने की सुविधाएं सम्मिलित हैं।
कार्यवाहियों का प्रसारण :
संसद को लोगों के निकट लाने के विचार से, दोनों सदनों के सदस्यों के समक्ष राष्ट्रपति के अभिभाषण का सीधा प्रसारण करके 1989 में एक शुरुआत की गई थी। दिसंबर, 1991 से, दोनों सेदनों में प्रश्नकाल का, आवश्यक संपादन करने के बाद, अगले दिन दूरदर्शन पर प्रसारण करना प्रारंभ किया गया। आकाशवाणी पर प्रश्नकाल का प्रसारण 1992 में शुरू किया गया। 1992 से रेल बजट तथा सामान्य बजट की प्रस्तुति जैसे महत्वपूर्ण अवसरों का भी दूरदर्शन पर सीधा प्रसारण किया जा रहा है। समय समय पर महत्वपूर्ण भाषणों को भी दूरदर्शन पर प्रसारित किया जाता है तथा संग्रहालय के प्रयोजनों तथा भावी उपयोग के लिए समूची कार्यवाही की टेलीफिल्में भी बनाई जा रही हैं। दिसंबर, 1994 से संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही का दूरदर्शन के दो अलग अलग कम शक्ति के चैनलों पर प्रतिदिन प्रसारण किया जाता है, जिसे केवल 15 किलोमीटर की परिधि के भीतर देखा जा सकता है।
अनिश्चित काल के लिए स्थगन या विघटन
राष्ट्रपति समय समय पर दोनों सदनों का या किसी एक सदन का सत्रावसान कर सकता है और लोक सभा को भंग कर सकता है।
अध्यक्ष को सदन को अनिश्चित काल के लिए स्थगित करने की शक्ति प्राप्त है। सदन को एक बार अनिश्चित काल के लिए स्थगित करने के पश्चात उसे फिर से बुलाने की शक्ति भी अध्यक्ष को प्राप्त है। परंतु सत्रावसान हो जाने पर केवल राष्ट्रपति ही सदनों की बैठक आमंत्रित कर सकता है।
सामान्यतया, सदन के अनिश्चित काल के लिए स्थगित किए जाने के पश्चात उसका राष्ट्रपति द्वारा आगामी कुछ दिनों के भीतर सत्रावसान कर दिया जाता है। सदन के अनिश्चित काल के लिए स्थगित होने पर उसके समक्ष लंबित किसी कार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, परंतु लोक सभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन संबंध नियमों के नियम 335 के अनुसार, सदन का सत्रावसान हो जाने पर, विधेयक, पे करने की अनुमति के लिए प्रस्ताव की सूचनाओं के सिवाय अन्य सब लंबित सूचना। व्यपगत हो जाती हैं और आगामी अधिवेशन के लिए नए सिरे से सूचनाएं देनी पड़ती है।
लोक सभा अपनी प्रथम बैठक के लिए निर्धारित तिथि से पांच वर्षों तक चलती रहती है। यदि उसे कार्यावधि पूरी होने से पूर्व भंग नहीं कर दिया जाता या उसकी कार्यावधि बढ़ाई नहीं जाती है तो राष्ट्रपति द्वारा उसे भंग करने का औपचारिक आदेश जारी न किए जाने पर भी सदन पांच वर्षों की अवधि की समाप्ति पर अपने आप भंग हो जाती है।"
विघटन के परिणाम
सदन को विघटित किए जाने से वर्तमान सदन का जीवन समाप्त हो जाता है और उसके बाद नए सदन का गठन किया जाता है। एक बार जब सदन को विघटित कर दिया जाता है तो वह विघटन अपरिवर्तनीय होता है। संविधान के अधीन केल्ल लोक सभा को ही विघटित किया जा सकता है, और इसके विघटित हो जाने पर इसके समक्ष या इसकी किसी समिति के समक्ष लंबित सब कार्य व्यपगत हो जाता है। विघटित सदन के रिकार्ड का कोई भी भाग आगे नहीं ले जाया जा सकता और नए सदन के रिकार्ड में या रजिस्टर में समाविष्ट नहीं किया जा सकता।
संक्षेप में, विघटन के समय लोक सभा में लंबित कार्य की विभिन्न मदों की स्थिति इस प्रकार होती है :
(1) विघटन के समय लोक सभा में लोदेत सब विधेयक, चाहे वह इस सदन में पेश हुए हों या राज्य सभा द्वारा इसके पास भेजे गए हों, व्यपगल हो जाते हैं, और
(2) लोक सभा द्वारा पास किए गए विधेयक, परंतु जो राज्य सभा द्वारा निपटाए न गए हों और विघटन की तिथि को यहां लंबित हों व्यपगत हो जाते हैं।
(3) राज्य सभा में पेश किए गए विधेयक, जो लोक सभा द्वारा पास न किए गए हों परंतु अभी राज्य सभा में लंबित हों, व्यपगत नहीं होते।
(4) जिस विधेयक पर दोनों सदनों में असहमति हुई हो और विघटन से पूर्व उस पर विचार करने के लिए दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाने के अपने इरादे को राष्ट्रपति ने अधिसूचित कर दिया हो वह विधेयक व्यपगत नहीं होता और दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाने के अपने इरादे को राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित किए जाने के बाद विघटन हो जाने के बावजूद, दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में उसे पास किया जा सकता हैं
(5) दोनों सदनों द्वारा पास किए गए और राष्ट्रपति की अनुमति के लिए उसके पास भेजे गए विधेयक लोक सभा के विघटित हो जाने पर व्यपगत नहीं होते।
(6) राष्ट्रपति द्वारा पुनर्विचार के लिए वापस भेजे गए विधेयक व्यपगत नहीं होते और नए सदन द्वारा उन पर पुनर्विचार किया जा सकता है।
(7) लोक सभा में लंबित अन्य सब कार्य, अर्थात, प्रस्ताव, संकल्प, संशोधन, अनुदानों की अनुपूरक मांगें, इत्यादि चाहे वे किसी भी अवस्था में हों, विघटन हो जाने पर व्यपगत हो जाते हैं।
(8) सभा के समक्ष पेश की गई याचिकाएं जो याचिका समिति को निर्दिष्ट की गई हों, वे भी विघटन हो जाने पर व्यपगत हो जाती हैं।
(9) लोक सभा द्वारा पास किए गए सांविधिक नियमों के अनुमोदन या रूपभेद के लिए प्रस्ताव जो राज्य सभा की सम्मति के लिए उसके पास भेजे गए हों या इसी प्रकार राज्य सभा से लोक सभा के पास भेजे गए हों, वे भी लोक सभा के विघटित हो जाने पर व्यपगत हो जाते हैं।
(10) लंबित आश्वासन व्यपगत नहीं होते और नई लोक सभा की सरकारी आश्वासनों संबंधी समिति उन पर विचार करती है।"
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