Saturday, March 5, 2022

Problem of Unemployment in India भारत मे बेरोजगारी की समस्या

बेरोजगारी Unemployment की संकल्पना - अर्थ एवं परिभाषाएँ 


'बेरोजगारी Unemployment' व्यक्ति की उस अवस्था का नाम है, जब वह काम करना चाहता है तथा काम करने के योग्य भी है, परन्तु उसे काम नहीं मिलता। इस प्रकार बेरोजगारी Unemployment एक विवशता या बाध्यकारी निष्क्रियता की अवस्था है। हम भिखारियों या साधुओं को बेकार नहीं कहेंगे क्योंकि वे अपनी इच्छा से ही कुछ नहीं करना चाहते। हमारे देश में अन्य ऐसे अनेक व्यक्ति हैं, जो पूर्णतया स्वस्थ हैं और कार्य करने की इच्छा भी रखते हैं, परन्तु उन्हें काम नहीं मिल पाता। इस सन्दर्भ में पीगू का कहना है, “बेकार केवल वह व्यक्ति होता है, जो काम पाने की इच्छा रखता है, परन्तु फिर भी काम न मिलने के कारण वह बेरोजगार है।" 


बेरोजगारी Unemployment के सामान्य अर्थ को जान लेने के उपरान्त उसकी एक व्यवस्थित परिभाषा प्रस्तुत करनी आवश्यक है। इस सन्दर्भ में कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं


सार्जेण्ट फ्लोरेन्स के अनुसार, “बेरोजगारी Unemployment उन व्यक्तियों की निष्क्रियता से परिभाषित की जा सकती है, जो कार्य करने के योग्य तथा इच्छुक हैं।" 


कार्ल प्रिब्राम के अनुसार, “बेरोजगारी Unemployment श्रम बाजार की वह दशा है, जिसमें श्रम-शक्ति की पूर्ति कार्य करने के स्थान की संख्या से अधिक होती है।" 


फेयरचाइल्ड के अनुसार, “बेरोजगारी Unemployment का तात्पर्य; लाभकारी कार्य से जबरदस्ती एवं अनैच्छिक रूप से अलग कर देना है अथवा एक सामान्य क्रियाशील वर्ग को एक सामान्य अवधि में सामान्य मजदूरी की दर से और सामान्य परिस्थितियों में किसी आर्थिक क्रिया से अनिश्चित रूप से पृथक् कर देना है।" 


बेरोजगारी Unemployment की उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि बेकार केवल उसी व्यक्ति को कहते हैं, जो काम करना चाहता है तथा काम करने की क्षमता भी रखता है, परन्तु उसे काम नहीं मिल पाता। इस सन्दर्भ में लॉर्ड बैवरीज का यह कथन उचित ही है, “व्यक्तियों की इच्छा रहते हुए भी काम न मिलना बेरोजगारी Unemployment है। बेरोजगारी Unemployment का सबसे बड़ा दोष, भौतिक न होकर नैतिक है। बिना बेरोजगारी Unemployment नष्ट किए, देश की प्रगति नहीं हो सकती।" 


बेरोजगारी Unemployment के प्रमुख रूप या प्रकार 


बेरोजगारी Unemployment अनेक प्रकार की होती है। इसके प्रमुख रूप निम्नलिखित हैं


1. मौसमी बेरोजगारी Unemployment-


कुछ व्यवसाय और कार्य ऐसे होते हैं, जो किसी विशेष मौसम में ही चलते हैं। उस विशेष मौसम में व्यक्तियों को रोजगार मिल जाता है और मौसम के समाप्त होते ही व्यक्ति बेकार हो जाता है। उदाहरण के लिए कुछ मजदूर फसल कटाई के समय तो रोजगार प्राप्त कर लेते हैं, परन्तु उसके पश्चात् वे बेकार हो जाते हैं। इसी तरह गर्मियों में बर्फ का कार्य खूब चलता है, परन्तु सर्दियाँ आते ही बर्फ से जुड़े सभी कार्य समाप्त हो जाते हैं। भारत में इस प्रकार की बेरोजगारी Unemployment अधिक पायी जाती है। 


2. चक्रीय बेरोजगारी Unemployment–


चक्रीय बेरोजगारी Unemployment का अर्थ; तेजी-मन्दी के चक्र के कारण होने वाली बेरोजगारी Unemployment से है। जब तेजी के बाद मन्दी आती है, वस्तुओं के दाम गिरने लगते हैं तो माल की निकासी न होने से इसे तैयार करने में मुनाफा कम होने या घाटा होने से मिल मालिक अपने कारखानों को बन्द करने लगते हैं और इनमें काम करने वाले मजदूर या कर्मचारी बेकार हो जाते हैं। भारत में इस प्रकार की बेरोजगारी Unemployment बहुत कम है। 


3. यान्त्रिक बेरोजगारी Unemployment-


आज के युग में मनुष्य का स्थान मशीनें ले रही हैं, जिस कारण अनेक व्यक्ति बेकार हो जाते हैं। तकनीकी-प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्तियों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि प्रत्येक व्यक्ति को काम नहीं मिल पाता है। 


4. प्रच्छन्न बेरोजगारी Unemployment-


बेरोजगारी Unemployment में व्यक्ति काम पर लगा हुआ तो दिखाई देता है, परन्तु यदि वह काम न भी करे तो उत्पादन पर कोई विशेष अन्तर नहीं पड़ता है। ऐसे व्यक्ति का उत्पादन में योगदान शून्य होता है। उदाहरणार्थ—यदि किसी परिवार के सभी सदस्य कृषि-कार्यों में संलग्न हैं तो प्रत्येक का योगदान महत्त्वपूर्ण नहीं होता है। यदि एक-दो व्यक्ति कृषि न भी करें तो उत्पादन में कोई फर्क नहीं आता है। ये एक-दो व्यक्ति ये प्रच्छन्न रूप से बेकार हैं। इसका एक अन्य रूप, थोड़े समय के लिए व्यक्ति का बेकार हो जाना है। उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति 8 घण्टे के लिए काम करना चाहता है, परन्तु उसे काम केवल इतना मिलता है कि वह उसे 5 घण्टे में पूरा कर लेता है और उसके शेष 3 घण्टे व्यर्थ जाते हैं। यद्यपि ऐसे व्यक्ति को हम बेकार नहीं कह सकते, परन्तु वह अल्प-समय के लिए अवश्य बेकार हो जाता है। 


बेरोजगारी Unemployment के उपर्युक्त रूपों के अतिरिक्त सामान्य बेरोजगारी Unemployment एवं संरचनात्मक बेरोजगारी Unemployment का भी उल्लेख किया जाता है। सामान्य बेरोजगारी Unemployment से अभिप्राय, कृषि के यन्त्रीकरण के परिणामस्वरूप कृषि-श्रमिकों का बेकार हो जाना है; अर्थात् उनकी संख्या में वृद्धि होना है, जबकि संरचनात्मक बेरोजगारी Unemployment पहले कभी महत्त्वपूर्ण रहे उद्योगों के ह्रास से सम्बन्धित है। उदाहरणार्थ-सूती कपड़े के उद्योगों में मन्दी के कारण, इनमें काम करने वाले व्यक्तियों का बेकार हो जाना। 


भारत में बेरोजगारी Unemployment के प्रमुख कारण 


बेरोजगारी Unemployment भगवान का दिया हुआ कोई अभिशाप नहीं है, अपितु बेरोजगारी Unemployment के कारण भी समाज में ही विद्यमान होते हैं। भारत में बेरोजगारी Unemployment के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं


1. वैयक्तिक अयोग्यता-


जो शक्ति शारीरिक और मानसिक दृष्टि से अयोग्य होते हैं, उन्हें नौकरी प्राप्त करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है तथा प्राय: असफलता ही हाथ लगती है। एक व्यक्ति जो विकलांग या दृष्टिहीन है, वह नौकरी करने में असमर्थ रहता है। हमारे देश में अधिकांश अपंग भीख माँगने के लिए विवश हो जाते हैं क्योंकि उन्हें कोई भी अपने यहाँ काम देने को तैयार नहीं होता। इसी प्रकार जिन व्यक्तियों का मानसिक सन्तुलन ठीक नहीं होता, वे भी बेरोजगारी Unemployment के शिकार होते हैं। 


2. जनसंख्या में वृद्धि-


हमारे देश की जनसंख्या में तीव्रता के साथ वृद्धि हो रही है। जनसंख्या में वृद्धि के अनुपात में रोजगार की सुविधाओं में वृद्धि नहीं हो रही है। ऐसी दशा में बेरोजगारी Unemployment का प्रसार, स्वाभाविक ही है। कृषि-व्यवस्था के यन्त्रीकरण के कारण, कृषक-मजदूर नौकरी की खोज में नगरों में आने लगते हैं, परन्तु यहाँ पर भी उनको रोजगार नहीं मिलता। कृषि उत्पादन भी जनसंख्या वृद्धि के अनुरूप नहीं है। 


3. अनियोजित औद्योगीकरण-


हमारे देश में पिछले वर्षों में तीव्रता के साथ औद्योगीकरण हुआ है। अनियोजित औद्योगीकरण के फलस्वरूप मनुष्य का स्थान मशीनों ने ले लिया है। जिस कार्य को हाथ से करने में अनेक श्रमिक लगते हैं, उसी कार्य को मशीनों द्वारा एक या दो श्रमिकों द्वारा सम्पन्न किया जाने लगा है। इस प्रकार मशीनों द्वारा कार्य करने से, श्रमिकों की कम आवश्यकता पड़ने लगी, जिसका परिणाम बेरोजगारी Unemployment या बेरोजगारी Unemployment के रूप में सामने आया। 


4. आर्थिक मन्दी-


जब तक मांग के अनुसार पूर्ति चलती रहती है, तब तक श्रमिक भी रोजगार पर लगे रहते हैं, परन्तु जब माँग और पूर्ति में असामंजस्य की स्थिति आ जाती है, तब श्रमिकों में बेरोजगारी Unemployment बढती जाती है। औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप, वस्तुओं का उत्पादन जब तीव्रता से और अधिक मात्रा में होने लग जाता है तो माँग में कमी आ जाती है, जिससे मिल-मालिकों को हानि होने लगती है। ऐसी दशा में व मिलों या कारखानों में से छंटनी करके (श्रमिकों की संख्या घटाकर) उत्पादन घटाने लगते हैं अथवा मिलों को अल्प या दीर्घकाल के लिए बन्द कर देते हैं, फलस्वरूप हजारों मजदूर बेकार हो जाते हैं। इस प्रकार आर्थिक मन्दी भी बेरोजगारी Unemployment का एक कारण होती है। 


5. दोषपूर्ण शिक्षा-


प्रणाली-हमारे देश की शिक्षा-प्रणाली; केवल सैद्धान्तिक और पुस्तकीय है। वह छात्रों को व्यावहारिक जीवन के लिए प्रशिक्षित नहीं करती। शिक्षा-काल में छात्रों को किसी भी प्रकार न तो हस्त-शिल्प सिखाया जाता है और न किसी उद्योग से सम्बन्धित शिक्षा प्रदान की जाती है। शारीरिक श्रम से बचने में वे अपना गौरव समझते हैं अत: शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् वे केवल किसी दफ्तर में ही काम करना चाहते हैं और शारीरिक श्रम द्वारा धनो करने में अपना अपमान समझते हैं। इसके अतिरिक्त वर्तमान शिक्षा-पद्धति में किसी प्रकार का व्यावसायिक प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है, इसलिए नौकरी न मिलने पर व्यक्ति अपना कोई व्यवसाय भी प्रारम्भ नहीं कर पाता है। 


6. प्राकृतिक साधनों का अपूर्ण उपयोग-


हमारे देश में प्राकृतिक साधनों का प्रचुर भण्डार है, परन्तु तकनीकी क्षेत्र में पिछड़ा होने के कारण अभी तक इनका उपयोग भली प्रकार नहीं किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप लाखों हेक्टर भूमि बंजर पड़ी है। अन्धविश्वास के कारण भी प्राकृतिक साधनों का पूर्ण दोहन नहीं हो पाता है। 


7. कुटीर-उद्योगों का पतन—


आज देश के प्राचीन कुटीर-उद्योग; धनाभाव व अनियोजित औद्योगीकरण के कारण समाप्त हो गए हैं। इससे अनेक शिल्पकार और कारीगर बेकार हो गए हैं। इस प्रकार की बेरोजगारी Unemployment ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक है। 

8. श्रमिकों में गतिशीलता का अभाव-


प्रायः भारतीय मजदूर अपने निवास स्थान या जहाँ वे एक बार काम कर चुके हैं, उस स्थान को छोड़कर दूसरी जगह जाना पसन्द नहीं करते। इस प्रवृत्ति के कारण किसी स्थान-विशेष पर मजदूरों की संख्या बहुत अधिक बढ़ जाती है, जिसका परिणाम होता है बेरोजगारी Unemployment। यदि मजदूरों में गतिशीलता की प्रवृत्ति हो तो वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर काम में लग सकते हैं। 


9. पर्याप्त पूँजी का अभाव-


पूँजी की कमी के कारण नवीन उद्योगों की स्थापना नहीं हो पाती है। आजकल महँगाई इतनी है कि प्रत्येक उद्योग की स्थापना के लिए पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है, परन्तु लोग बढ़ते मूल्यों के कारण बचत नहीं कर पाते। 


10. कृषि का मानसूनों पर निर्भर रहना-


भारतीय कृषि मानसूनों पर निर्भर रहती है। जिस वर्ष वर्षा नहीं होती, उस वर्ष कम भूमि में फसल बोई जाती है, परिणामस्वरूप हजारों कृषि-श्रमिक बेकार हो जाते हैं। 


11. भूमि का अनुचित विभाजन—


देश में अधिकांश कृषि योग्य भूमि कुछ ही व्यक्तियों के हाथ में है। उत्तर प्रदेश में प्रति हजार किसानों में 161 किसानों के पास भूमि है। ऐसी दशा में बेरोजगारी Unemployment का प्रसार होना स्वाभाविक ही है। 


12. श्रमिकों और मालिकों के मध्य संघर्ष-


आजकल बोनस तथा उचित वेतन की माँग को लेकर प्रायः श्रमिकों और मिल-मालिकों के मध्य संघर्ष होते रहते हैं। आए दिन हड़ताल तथा तालाबन्दी होती रहती है। ऐसी दशा में भी श्रमिक बेकार हो जाते हैं। 


बेरोजगारी Unemployment को दूर करने के उपाय 


बेरोजगारी Unemployment पर नियन्त्रण प्राप्त करने के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं


1. जनसंख्या पर प्रभावी नियन्त्रण-


बेरोजगारी Unemployment से मुक्त होने के लिए जनसंख्या वृद्धि को रोकना आवश्यक है। इस समय भारत की जनसंख्या लगभग एक करोड़ व्यक्ति प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रही है। ऐसी दशा में जनसंख्या पर नियन्त्रण रखना प्राथमिकता होनी चाहिए। यदि इसी गति से जनसंख्या बढ़ती रही तो देश में बेरोजगारी Unemployment की समस्या का कोई हल नहीं निकल पाएगा। इस स्थिति में बेरोजगारी Unemployment से मुक्त होने के लिए परिवारों को सीमित रखना तथा जनसंख्या की वृद्धि को रोकना आवश्यक है। 


2. रोजगार कार्यालयों की स्थापना-


बेरोजगारी Unemployment को दूर करने में रोजगार-कार्यालयों का विशेष हाथ रहा है। उनके द्वारा ही श्रमिकों की माँग और पूर्ति के मध्य सन्तुलन बना रहता है। रोजगार कार्यालयों में प्रत्येक बेकार व्यक्ति अपनी आयु, नाम, पता व अपनी रुचि के व्यवसाय को दर्ज करा देता है। दूसरी ओर, मिल-मालिक, रोजगार-कार्यालय में श्रमिकों की आवश्यकता की सूचना देते रहते हैं। रोजगार कार्यालय अधिकारी (Employment Officer) रिक्त-स्थानों की सूचना बेरोजगार व्यक्तियों को दे देते हैं और उनका मालिक से सम्पर्क करा देते हैं। इससे प्राय: क्षेत्रीय बेरोजगारी Unemployment कम होती है। 


3. पर्याप्त माँग के स्तर को बनाए रखना-


समस्त श्रमिकों को काम में लगाए रखने के लिए आवश्यक है कि माँग के स्तर को उच्च बनाए रखा जाए। माँग घटने पर उत्पादन में कमी आती है और उत्पादन में कमी आने से बेरोजगारी Unemployment बढ़ती है। इसके लिए यह भी अनिवार्य है कि उद्योग इत्यादि अधिकतर उन्हीं क्षेत्रों में खोले जाएँ, जिनमें देश में उत्पादित वस्तुओं की खपत शीघ्रता से ही हो जाए। 


4. नियोजित औद्योगीकरण-


अनियोजित औद्योगीकरण; मन्दी और बेरोजगारी Unemployment को जन्म देता है। प्राय: पूँजीवादी व्यवस्था में प्रत्येक पूँजीपति उस उद्योग में ही पूँजी लगाते हैं, जिसमें उन्हें अधिक लाभ होने की सम्भावना होती है। कभी-कभी एक ही उद्योग में अनेक पूँजीपति अधिक लाभ होने की सम्भावना से पूँजी लगा देते हैं, परिणामस्वरूप उत्पादन अधिक बढ़ जाता है; फलतः मिल-मालिकों को मिलें बन्द करनी पड़ जाती हैं अत: बेरोजगारी Unemployment स्वाभाविक रूप से फैलने लगती है। ऐसी दशा में यह आवश्यक है कि औद्योगीकरण नियोजित हो। 


5. श्रमिकों की गतिशीलता को प्रोत्साहन-


प्रचार साधनों के द्वारा श्रमिकों के स्वभाव को गतिशील बनाया जाना चाहिए। मिल-मालिकों का कर्त्तव्य है कि वे श्रमिकों के रहने के लिए उत्तम आवास की व्यवस्था करें। ऐसा करने से वे दूसरे स्थानों पर सरलता से आ-जा सकेंगे। 


6. शिक्षा व्यवस्था में सुधार-


शिक्षा को व्यावसायिक बनाया जाए। छात्रों को हस्तशिल्प का अभ्यास कराया जाए, ताकि शिक्षा के पश्चात् यदि नौकरी नहीं मिलती तो छात्र स्वयं अपना कोई काम कर सकें। साथ ही शिक्षा को रोजगार से अलग किया जाना चाहिए। 


7. उद्योग-धन्धों व नये कार्यों का विस्तार-


बेरोजगारी Unemployment को दूर करने के लिए नये उद्योग-धन्धों का विकास करना अनिवार्य रूप से आवश्यक है, जिससे बेरोजगारी Unemployment कुछ सीमा तक दूर की जा सके। नवीन उद्योगों के विकास से रोजगार मिलता है और बेरोजगारी Unemployment की समस्या हल हो जाती है। देश में पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत सिंचाई, रेल-यातायात, खानों-कारखानों, उद्योग-धन्धों, शिक्षा आदि का विस्तार किया जा रहा है और ऐसा अनुमान किया जाता है कि इनके अन्तर्गत रोजगार के अतिरिक्त अवसर उपलब्ध हो रहे हैं। 


8. कृषि-क्षेत्र में सुधार–


पढ़े-लिखे लोगों को खेती करने के लिए उत्साहित किया जाए तथा कृषि योग्य नवीन भूमि का विस्तार किया जाए। कृषि के यन्त्रीकरण को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए तथा ऐसी मान्यताओं को समाप्त किया जाना चाहिए, जो उच्च जातियों के कृषि करने में बाधक हैं। 


9. सामाजिक सेवाओं का विस्तार-


देश में विभिन्न सामाजिक सेवाओं का विस्तार होना चाहिए क्योंकि इन सेवाओं को पूरा करने में भी श्रमिकों और युवकों की आवश्यकता होगी, जिससे पर्याप्त सीमा तक रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे तथा बेरोजगारी Unemployment दूर हो सकेगी। 


10. सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन-


हमारे देश में सामाजिक मान्यताएँ अत्यन्त दोषपूर्ण हैं। उच्च वर्ण के लोग तथाकथित छोटा कार्य करने में अपमान समझते हैं। वे हाथ का कोई छोटा कार्य करने की अपेक्षा खाली बैठे रहना अधिक उचित समझते हैं। अत: जनसाधारण के दृष्टिकोण में भी परिवर्तन करना आवश्यक है। 


11. कम समय की पालियाँ–


यदि कम समय की पालियाँ कर दी जाएँ तो बेरोजगारी Unemployment की समस्या पर्याप्त समय तक हल हो सकती है। 8-8 घण्टे की तीन पालियों के स्थान पर, यदि समय कम करके 6-6 घण्टे की चार पालियाँ कर दी जाएँ तो अनेक श्रमिकों को नियोजित किया जा सकता है। 


12. सहकारी बैंकों की स्थापना-


निर्धन व्यक्ति; लघु उद्योगों की स्थापना कर सकें, इसके लिए सरकार को सहकारी बैंकों की स्थापना करनी चाहिए। इन बैंकों द्वारा लोगों को बहुत कम ब्याज पर रुपया . उधार दिया जाए। 


13. रूढ़िवादिता की समाप्ति-


हमारे देश में रूढ़िवादिता का भी बोलबाला है। गरीब अपनी गरीबी एवं बेरोजगारी Unemployment को भगवान का दिया हुआ अभिशाप मान लेता है, जिसे उसकी दृष्टि में दूर नहीं किया जा सकता। वह उसे दूर करने के लिए अधिक प्रयास भी नहीं करता। इस प्रकार के अन्धविश्वासों की समाप्ति भी, व्यक्ति को आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने में सहायक है।

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