Friday, March 18, 2022

संसद भवन तथा अन्य इमारतें : दर्शकों के लिए व्यवस्था Parliament House and other buildings : Arrangements for spectators

संसद की इमारतों में संसद भवन, संसदीय सौध, स्वागत कार्यालय और संसदीय ज्ञानपीठ अथवा संसद ग्रंथालय सम्मिलित है। इन सभी को मिलाकर संसद परिसर अथवा पार्लियामेंट एस्टेट कहा जाता है, इसमें लंबे-चौड़े लान, जलाशय, फव्वारे और सड़कें बनी हुई हैं। यह सारा परिसर सजावटी लाल पत्थर की दीवारों तथा लोहे के जंगलों और लोहे के ही विशाल द्वारों से परिबद्ध है। 


संसद भवन 


संसद भवन का निर्माण, जिसमें संसद के दो सदन-लोक सभा तथा राज्य सभा अवस्थित हैं, 1921-1927 के दौरान किया गया था। संसद भवन “नई दिल्ली की बहुत ही शानदार इमारतों में से एक है" तथा "विश्व के किसी भी देश में विद्यमान वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है।" इसकी तुलना विश्व के सर्वोत्तम विधान-भवनों के साथ की जा सकती है। यह एक विशाल वृत्ताकार इमारत है जिसका व्यास 560 फुट तथा जिसका घेरा 1/3 मील है। यह लगभग छह एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। है। भवन के 12 द्वार हैं, जिनमें से पांच के सामने द्वार मंडप बने हुए हैं। पहली मंजिल पर खुला बरामदा हल्के पीले रंग के 144 चित्ताकर्षक खंभों की कतार से सुसज्जित है जिनकी प्रत्येक की ऊंचाई 27 फुट है। 


भले ही इसका डिजाइन विदेशी वास्तुकारों ने बनाया था, किंतु इस भवन का निर्माण स्वदेशी सामग्री के साथ तथा भारतीय श्रमिकों द्वारा किया गया था और इसकी वास्तुकला पर भारतीय परंपराओं की गहरी छाप है। 


इस भवन का केंद्र तथा केंद्र बिंदु केंद्रीय कक्ष (सेंट्रल हाल) का विशाल वृत्ताकार ढांचा है। केंद्रीय कक्ष के गुंबद का व्यास 98 फुट तथा इसकी ऊंचाई 118 फुट है। विश्वास किया जाता है कि यह विश्व के बहुत ही शानदार गुंबदों में से एक है। भारत की संविधान सभा की बैठक (1946-49) इसी कक्ष में हुई थी। 1947 में अंग्रेजों से भारतीयों के हाथों में सत्ता का ऐतिहासिक हस्तांतरण भी इसी कक्ष में हुआ था। इस कक्ष का प्रयोग अब दोनों सदनों की संयुक्त बैठक के लिए तथा राष्ट्रपति और विशिष्ट अतिथियों-राज्याध्यक्ष या शासनाध्यक्ष आदि-के अभिभाषण के लिए किया जाता है। कक्ष राष्ट्रीय नेताओं के छवि-चित्रों से सजा हुआ है। केंद्रीय कक्ष के तीन और लोक सभा, राज्य सभा और ग्रंथालय के तीन नर हैं तथा उनके बीच सुविन्यस्त धान प्रांगण है जिनमें घनी हरी घास के लॉन तथा फव्वारे बने हुए हैं। इन तीन ,बरों के चारों ओर एक चार मंजिला वृत्ताकार इमारत बनी हुई है जिसमें मंत्रियों, संसदीय समितियों के सभापतियों, पार्टी के कार्यालयों, लोक सभा तथा राज्य सभा सचिवालयों के महत्वपूर्ण कार्यालयों और संसदीय कार्य मंत्रालय के कार्यालयों के लिए स्थान की व्यवस्था की गई है। 


पहली मंजिल पर चार समिति कक्षों का प्रयोग संसदीय समितियों की बैठकों के लिए किया जाता है। इसी मंजिल पर तीन अन्य कक्षों का प्रयोग संवाददाताओं द्वारा किया जाता है जो लोक सभा तथा राज्य सभा की प्रेस दीर्घाओं में आते हैं। संसद भवन के भूमितल पर गलियारे की बाहरी दीवार को अनेक भित्ति-चित्रों से सजाया गया है जिनमें प्राचीन काल में भारत के इतिहास तथा पड़ोसी देशों के साथ भारत के सांस्कृतिक संबंधों को प्रदर्शित किया गया है। 


चेंबर के साथ जुड़े हुए तथा इसके साथ समविस्तृत दो आच्छादित गलियारे हैं जिन्हें भीतरी तथा बाहरी लाबियां कहा जाता है। ये लाबियां फर्नीचर आदि से सुसज्जित हैं जहां सदस्य आराम से बैठकर आपस में अनौपचारिक विचार-विमर्श कर सकते हैं। 


लोक सभा के सदन की पहली मंजिल पर अनेक सार्वजनिक दीर्घाएं तथा प्रेस दीर्धा बनी हुई हैं। प्रेस दीर्घा अध्यक्ष पीठ के बिल्कुल ऊपर है और इसके बाईं ओर अध्यक्ष की दीर्घा (जो अध्यक्ष के अतिथियों के लिए है) तथा राज्य सभा दीर्घा (जो राज्य सभा के सदस्यों के लिए है) हैं। प्रेस दीर्घा के दाईं ओर राजनयिक तथा अति-विशिष्ट दर्शकों की दीर्घाएं हैं। 


लोक सभा चेंबर में, जिसका फर्शी क्षेत्रफल 4800 वर्ग फुट तथा जिसमें 550 सदस्यों के बैठने का स्थान है, आधुनिक ध्वनि प्रवर्धन प्रणाली की व्यवस्था है। प्रत्येक सीट के साथ पायदानों पर चुने हुए स्थानों पर एकदिशीय निम्न प्रतिबाधा वाले माइक्रोफोन रखे गए हैं जिनके साथ बैंच की पीठ में छिपे हुए लाउडस्पीकर लगाए गए हैं। दीर्घाओं में छोटे छोटे लाउडस्पीकर लगे हुए हैं। सदस्य माइक्रोफोन के पास आए बिना ही अपनी सीटों से बोल सकते हैं। लोक सभा चेंबर में स्वचालित स्थिति में शीघ्रता के साथ अपने मत अभिलिखित कर सकते हैं। 


मत-अभिलेखन उपकरण लगाए गए हैं जिनके द्वारा सदस्य मत-विभाजन होने की राज्य सभा चेंबर भी लोक सभा के चेंबर की भांति ही है, किंतु यह आकार में  छोटे छोटे चाय, में छोरा है। इसमें 250 सदस्यों के बैठने के लिए स्थान है। 


संसद सदस्यों की सविधा के लिए, पहली मंजिल पर दो मुख्य जलपान गृहों और केंद्रीय कक्ष से सदनों की ओर जाने वाले रास्तों के निकट कुछ काफी और दूध के बूथों की व्यवस्था की गई है। अन्य सुख-सुविधाओं में रेलवे बुकिंग आफिस, भारतीय स्टेट बैंक का पे आफिस, प्रथमोपचार केंद्र, डाकघर, हवाई बुकिंग और केंद्रीय लोक निर्माण विभाग का शिकायत केंद्र शामिल हैं। 


संसद भवन की दीवारों पर अनेक महान वाक्य उत्कीर्ण हैं जो दोनों सदनों में विचार-विमर्श के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। संसद भवन में प्रवेश करते ही, उपनिषटों से संस्कृत में एक सूक्ति हमें राष्ट्र की प्रभुता का, जिसकी दृश्यमान प्रतीक संसद में है, स्मरण कराती है। जब हम घूमकर केंद्रीय कक्ष को जाने वाले रास्ते में गुंबद की ओर देखते हैं तो वहां पर हमें अरबी में एक सूक्ति नजर आती है जिसमें कहा गया है कि लोग स्वयं ही अपने भाग्य को बना तथा ढाल सकते हैं। केंद्रीय कक्ष के द्वार के ऊपर हमें पंचतंत्र से संस्कृत में एक पद्यांश देखने को मिलता है जिसका अर्थ है कि "यह मेरा है तथा वह पराया है, इस तरह की धारणा संकीर्ण मन वालों की होती है। किंतु विशाल हृदय वालों के लिए, सारा विश्व ही उनका कुटुंब होता है।" 


स्वागत कार्यालय 


स्वागत कार्यालय 1975 में निर्मित एक वृत्ताकार इमारत में अवस्थित है जो आकार में अधिक बड़ी नहीं है। यह बड़ी संख्या में आने वाले मुलाकातियों/दर्शकों के लिए, जो सदस्यों, मंत्रियों आदि से मिलने के लिए या संसद की कार्यवाहियों को देखने के लिए आते हैं, एक मैत्रीपूर्ण प्रतीक्षा स्थल है। यह इमारत, जो पूरी तरह से वातानुकूलित है, कल्पना की दृष्टि से अनूठी है तथा पुरानी तथा नई वास्तुकला दोनों के मूल्यों का सम्मिश्रण है। स्वागत कार्यालय का केंद्रीय भाग फव्वारे जैसे ही एक शुंडाकार स्तंभ पर टिका हुआ औंधी शंकु-आकृति का है तथा शेष भाग बारह स्तंभों पर बने गोल बीम पर टिका हुआ एक स्वतंत्र शंक्वाकार ढांचा है। इमारत के बाहरी हिस्से को लाल पत्थरों से बनाया गया है तथा भीतरी हिस्से में लकड़ी की लाइनिंग लगाई गई है, जो गर्मजोशी तथा स्वागत की भावना को बिखेरती है। मुलाकातियों/दर्शकों के आराम के लिए स्वागत कार्यालय के अंदर एक उत्तम जलपान गृह (रेस्तरा) है। 


भूमितल में सदस्यों की सुविधा के लिए विश्रामस्थल हैं, जहां वे अपने अतिथियों से भेंट कर सकते हैं तथा उनकी आवभगत कर सकते हैं। 


संसदीय सौथ 


संसदीय सौध की इमारत 9.8 एकड़ भूखंड पर बनी हुई है। इसका फर्शी क्षेत्रफल 35,000 वर्ग मीटर है। यह एक आधुनिक, कार्यात्मक, मितव्ययी और शानदार इमारत है। इसका निर्माण 1970-75 के दौरान हुआ। आगे तथा पीछे के ब्लाक तीन मंजिला तथा बीच का ब्लाक 6 मंजिला है, जिसके टैरेस भी हैं। भूमितल पर जलाशय, जिसके ऊपर झूलता हुआ जीना बना हुआ है और पिरामिड, जिनसे प्राकृतिक प्रकाश छनकर आता है, इस क्षेत्र की सुंदरता को और भी बढ़ा देते हैं। 


सड़क के स्तर पर बने भूमितल में स्वागत तथा पूछताछ के लिए प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र की व्यवस्था है। इस तल पर एक सुसज्जित चिकित्सा केंद्र है जिसने प्रायः एक लघु अस्पताल का रूप ले लिया है। जलाशय के चारों ओर एक विस्तृत विश्रामस्थल की व्यवस्था की गई है। टेलीफोन एक्सचेंज, टेलीकाम ब्यूरो, डाकघर आदि भी इसी तल में हैं। 


दूसरी से पांचवीं मंजिल पर सदस्यों की सुविधा के लिए टेलीफोन, नई दिल्ली नगरपालिका और संपदा निदेशालय के संपर्क कार्यालयों के अलावा लोक सभा तथा राज्य सभा के सचिवालय अवस्थित हैं। तीसरी मंजिल पर आयकर विवरणियां भरने में सदस्यों की सहायता के लिए आयकर कार्यालय अवस्थित है। 


टैरेस तल पर संसदीय अध्ययन तथा प्रशिक्षण केंद्र और कर्मचारी पुस्तकालय अवस्थित हैं। 


भूमितल एक अत्यधिक कार्यक्षम क्षेत्र माना जाता है जो राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के लिए आदर्शतया अनुकूल है। एक वर्गाकार निमग्न प्रांगण के चारों ओर एक मुख्य समिति कक्ष तथा चार लघु समिति कक्षों का समूह है। इस प्रांगण के मध्य में एक अष्टकोणीय जलाशय है। प्रांगण में, जिसके ऊपर की ओर पच्चीकारी युक्त जाली का पर्दा है, पौधे लगाकर एक प्राकृतिक दृश्य उत्पन्न किया गया है और इसमें पत्थर की टुकड़ियों तथा छोटे पत्थरों के खंड बनाए गए हैं। पांचों के पांचों समिति कक्षों में संसद भवन में लोक सभा तथा राज्य सभा चेंबरों की भांति साथ साथ भाषांतरण की व्यवस्था है। प्रत्येक समिति कक्ष के साथ संसदीय समितियों के सभापतियों के कार्यालयों के लिए एक कमरा है। जलाशय इस क्षेत्र की प्रमुख विशेषता है। बहु-उद्देश्यीय सभागार, भारतीय स्टेट बैंक की शाखा, एक विशाल बैंकट हाल, प्राइवेट डाइनिंग रूम, और जलपान गृह भी, जिनमें एक मिल्क बार सम्मिलित है, भूमितल पर अवस्थित हैं। समूचे भूमितल पर विश्रामस्थल बने हुए हैं। 


एक आधुनिक तथा कुशल पीएबी एक्स टेलीफोन एक्सचेंज स्थापित किया गया है जो एकमात्र पार्लियामेंट हाउस एस्टेट की जरूरतों को पूरा करता है। इंटर-काम 'तथा बाहरी कालों के लिए एक ही टेलीफोन का प्रयोग किया जाता है। 


संसदीय ज्ञानपीठ 


संसदीय ग्रंथालय अब संसद भवन परिसर में ही अपने नए विशाल और अत्याधुनिक भवन में आ गया है। इस भवन की आधारशिला 1987 में स्व. राजीव गांधी ने रखी थी। तभी इसका नामकरण 'संसदीय ज्ञानपीठ' कर दिया गया था। इसके नक्शों को 15 नवंबर, 1991 को अंतिम मंजूरी मिली। 2002 में भवन पूरी तरह बनकर तैयार हुआ। 19 हजार वर्गमीटर के कुल क्षेत्रफल में फैले इस भवन के निर्माण में लगभग 200 करोड़ रुपये की लागत आई। इसमें लगभग 30 लाख ग्रंथों को रखने की व्यवस्था है। भवन के भीतर संचार का आधुनिकतम तंत्र स्थापित किया गया है। यह भारत की अन्य विधानपालिकाओं, विश्व के विभिन्न देशों की संसदों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं-संगठनों से जुड़ा है। संसदीय ज्ञानपीठ में 1100 लोगों को बैठा सकने की क्षमता वाला एक उम्दा ऑडिटोरियम भी है। ऑडियो-विजुअल यूनिट, माइक्रो फिल्म यूनिट, अध्ययन कक्ष और कंप्यूटरों, आदि आधुनिकतम साज-सामान और सुविधाओं से सुसज्जित इस ज्ञानपीठ पर भारतीय संसद गर्व कर सकती है। 


दर्शकों के लिए भ्रमण की व्यवस्था 


अधिवेशनों के बीच की अवधियों में पर्यटकों, छात्रों और रुचि रखने वाले अन्य व्यक्तियों को निर्दिष्ट समय के दौरान संसद की इमारतें देखने के लिए घुमाने की व्यवस्था विद्यमान है। दर्शकों के साथ स्टाफ का एक सदस्य जाता है, जो उनका मार्गदर्शन करता है तथा इमारतों के बारे में संक्षेप में बताता है। दर्शक हर आधे घंटे बाद मोटे तौर पर 40-50 व्यक्तियों के सुविधाजनक समूहों में स्वागत कक्ष से अपने भ्रमण के लिए प्रस्थान करते हैं। छात्रों तथा संसदीय संस्थाओं के कार्यकरण के बारे में जानकारी प्राप्त करने में विशेष रूप से रुचि रखने वाले अन्य लोगों के समूहों के लिए विशेष भ्रमण की व्यवस्था भी की जाती है। ऐसी स्थितियों में, संसदीय अध्ययन तथा प्रशिक्षण केंद्र, भ्रमण शुरू करने से पहले दर्शकों को संक्षिप्त परिचय देने की व्यवस्था करता है। पिछले दस वर्षों के दौरान हर वर्ष संसद भवन की इमारतों को देखने के लिए आने वाले दर्शकों की कुल संख्या 3,000 से लगभग 90,000 के बीच रही है। 

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