उत्तम निबन्ध लिखने के उपाय
निबन्ध लिखते हुए संकोच, भय और लज्जा त्याग देनी चाहिए। झिझकने तथा डरने से निबन्ध अच्छा नहीं बन पड़ता। निबन्ध-लेखक से यह आशा कोई नहीं करता कि वह जिस विषय पर निबन्ध लिख रहा है, उसके वियष में वह सम्पूर्ण तथ्यों को जानता ही हो । उससे तो केवल इतनी ही अपेक्षा की जाती है कि वह प्रस्तुत विषय के बारे में जो कुछ भी जानता है, उसे बिना छिपाये, संक्षेप में और सरलता से प्रकट कर दे। निबन्ध तो वास्तव में शुद्ध हृदय की विचार-तरंग ही है।
निबन्ध के प्रकार-
निबन्ध तीन प्रकार के होते हैं
(1) वर्णनात्मक निबन्ध,
(2) विवरणात्मक (व्याख्यात्मक) निबन्ध,
(3) विचारात्मक निबन्ध ।
(1) वर्णनात्मक निबन्ध-
वर्णनात्मक निबन्ध में आँखों-देखी किसी वस्तु, पदार्थ, स्थान, यात्रा, घटना या दृश्य आदि का वर्णन किा जाता है। इसमें युक्ति प्रमाण नहीं लिए जाते, केवल वर्णात्मक विषय का यथार्थ (हूबहू) चित्रण किया जाता है। जैसेकुत्ता, घोड़ा, बाजार, पुस्तक, दिल्ली, गाँव, दिवाली, मेलामनुष्य, पदार्थ, यात्रा, देश, दृश्य, प्रकृति-सौन्दर्य, समाचार, तीर्थरान, स्वतन्त्रता दिवस, प्रातःकाल, मेरा देश, अपने जीवन की घटना, कोई ऋतु, एक दुर्घटना आदि ।
(2) विवरणात्मक (व्याख्यात्मक) निबन्ध-
किसी ऐतिहासिक, भौगोलिक, पौराणिक या आकस्मिक घटना का वर्णन ही विवरणात्मक निबन्ध के विषय होते हैं। जैसे हवाई जहाज, किसी आकस्मिक घटना का घटित होना । साथ ही इसमें किसी प्रसिद्ध व्यक्ति को आधार बनाकर निबन्ध लिखा जाता है जैसे—भीम, प्रताप, राम, कृष्ण, महात्मा बुद्ध, गांधीजी, डा० चन्द्रशेखर वेंकट रमन आदि ।
विवरणात्मक निबन्धों में निम्न प्रकार के सभी निबन्धों की गणना होती है। आत्मकथा, हमारे राष्ट्रपति, हमारे वर्तमान प्रधानमन्त्री, मेरे सपनों का भारत, रुपये की आत्मकथा, मेरा एक स्वप्न।
विवरणात्मक निबन्धों में जीवन में घटित घटनाओं का अधिक उल्लेख होता है । मेरा जीवन प्रवाह, मेरी असफलताएँ, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी आदि विषय भी इसी में गिने जाते हैं। इस प्रकार के निबन्धों में घटनाओं की प्रामाणिकता, तिथियों की यथार्थता और भाषा को रोचक बनाने की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए।
(3) विचारात्मक
इसमें किसी विचार अथवा भाव को लेकर रचना की जाती है। दर्शन, अर्थशास्त्र, राजनीति, धर्म, संस्कृति, सभ्यता, विज्ञान, इतिहास, साहित्य आदि से सम्बन्ध रखने वाले विषय विचारात्मक निबन्ध के अन्तर्गत आते हैं। विचारात्मक निबन्ध के दो भेद होते हैं
(क) भावना प्रधान,
(ख) तर्क प्रधान।
(क) भावना प्रधान-
इसमें अपने मन की भावनाओं में बहता हुआ लेखक भावुक शैली में लिखता है । वह अपने भावों को सही मानता हुआ जो कुछ मन से तरंग आये उसी को शब्दावली में गुम्फित कर देता है।
(ख) तर्क प्रधान-
तर्क प्रधान निबन्ध में विचार को तर्क अथवा युक्ति-प्रमाणों से सिद्ध करने का प्रयत्न किया जाता है। कभी-कभी किसी विचार का विश्लेषण या विवेचन किया जाता है। इसमें किसी भाव या विचार पर वाद-विवाद भी किया जाता है । इसमें किसी वस्तु, विषय या रचना की आलोचना भी की आती है।
नैतिक, धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, साहित्यिक, वैज्ञानिक, आलोचनात्मक, तुलनात्मक आदि निबन्ध विचारात्मक के ही अन्तर्गत आते हैं।
पंचवर्षीय योजनाएँ, भारत का भविष्य, सरकारी नौकरी और राष्ट्र सेवा, प्रजातन्त्र प्रणाली के गुण-दोष, स्त्री जाति और नौकरी, रामायण का सन्देश, बेकारी की समस्या, महँगाई की समस्या, दल-बदल की समस्या, हिन्दी प्रचार के लिए भारत सरकार के प्रयत्न, विद्यार्थी असन्तोष के मूल कारण, राष्ट्र-भक्ति बनाम विश्व मानवता आदि सभी विषय विचारात्मक ही हैं।
निबन्ध-लेखन-सम्बन्धी संकेत
(1) भाषा शुद्ध, मुहावरेदार तथा रोचक होनी चाहिए।
(2) निबन्ध में मौलिकता एक विशेष गुण माना जाता है।
किसी पठित निबन्ध का अनुकरण करना या उसे ज्यों का त्यों उतार देना ठीक नहीं। अपने भावों या विचारों को अपनी भाषा और शैली में लिखना चाहिए।
(3) निबन्ध सरस होना चाहिए, नीरस नहीं। पहला ही वाक्य ऐसा होना चाहिए कि पढ़ने वाले के मन में उत्सुकता जागे।
(4) निबन्ध-लेखन में कल्पना से काम लिया जाना चाहिए। इसके लिए वस्तु-विषय का सूक्ष्म-निरीक्षण, ध्यान, मनन, लाइब्रेरी से पुस्तकों का अध्ययन, प्रसिद्ध लेखकों के निबन्धों का अध्ययन, प्रसिद्ध वक्ताओं के भाषण सुनना हितकर होता है।
(5) लिखाई साफ-सुथरी और शुद्ध होनी चाहिए। जिन शब्दों के अर्थ या अक्षर-योजना के विषय में आपके मन में सन्देह हो, उसका प्रयोग जहाँ तक हो सके न करें।
(6) विराम चिह्नों का ठीक प्रयोग होना चाहिए।
(7) अपना शब्द-ज्ञान बढ़ाते रहना चाहिए, इसके लिए हिन्दी के समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं का अध्ययन बड़ा सहायक होता है।
(8) परीक्षा में कई विषय दिये होते हैं, आप अपने लिए उस विषय को चुन लें जिसपर आप सबसे अच्छा लिख सकते हैं।
निबन्ध लिखते हुए इन दोषों से बचिए
(क) एक प्रसंग को पूरा न करना और दूसरा प्रसंग आरम्भ करना ।
(ख) अपने ही मत को स्वयं काटना।
(ग) गलत तर्क देना ।
(घ) अस्पष्ट वाक्य ।
निबन्ध के विषय में अन्तिम बात-
निबन्ध लिखने के अनन्तर उसे एक बार स्वयं पढ़ते हुए उसकी भाषा, भाव, विराम चिह्न आदि की यदि कोई अशुद्धि रह गई हो, तो उसे शुद्ध कर लेना चाहिए।
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