रक्षाबन्धन यह पर्व भारत में बहुत प्राचीनकाल से मनाया जाता रहा है। इस पर्व की विशेषता यही है कि यह हमें अबला, असहाय तथा निर्बलों की सहायता करने की प्रेरणा देता है।
राखी, रखड़ी, सलोनो आदि इसके अन्य प्रसिद्ध नाम हैं। वर्षा ऋतु में श्रावण पूर्णिमा के दिन इसे बहुत श्रद्धा से मनाया जाता है। कहा जाता है कि जब देवों और दानवों का युद्ध हुआ, तो शची (इन्द्राणी) से देवों ने रक्षाबन्धन बँधवाया और दानवों पर विजय-लाभ किया था।
कहा जाता है कि इसी पवित्र दिन विष्णु के अवतार वामन ने दानवराज बलि से तीन पग भूमि माँगी थी और बलि को सारा राज्य दान करना पड़ा था। इस महान त्याग की स्मृति बनकर यह शुभ त्योहार प्रतिवर्ष आता है।
ब्राह्मणों के लिए यह त्योहार बहुत महत्त्वपूर्ण है। वे यजमानों के हाथ में रक्षाबन्धन के पावन सूत्र बाँधकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं तथा विद्या की रक्षा तथा प्रसार के लिए उनसे धन प्राप्त करते हैं।
बहनें इस त्योहार की वर्ष-भर प्रतीक्षा करती रहती हैं। इस दिन लोग साफ-सुथरे, नये वस्त्र धारण करते हैं। घरों में कई प्रकार की मिठाइयाँ तैयार होती हैं । बाजारों में आजकल कई तरह की रंग-बिरंगी राखियाँ मिलती हैं। बहनें उन्हें मोल लाती और भाइयों के हाथों में बाँधकर उन्हें मिठाई खिलाती हैं। भाई उन्हें धन देकर उनका सम्मान करते हैं और मन ही मन बहनों के सम्मान की रक्षा का प्रण करते हैं। आनन्द और हँसी-खुशी के साथ यह पर्व सम्पन्न होता है।
मध्यकालीन भारतीय इतिहास में एक कथा आती है कि गुजरात के बादशाह बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया तो महारानी कर्मवती ने जब अपने को विपदा में जाना तो उन्होंने रक्षाबन्धन के सूत्रों को हुमायूँ के पास भिजवाया और भाई कहकर अपने बचाव की प्रार्थना की। बादशाह हुमायूँ ने रानी कर्मवती द्वारा प्रेषित इन सूत्रों को अपने हाथों में बाँधा और पत्र पढ़कर तुरन्त सेना सहित वहन कर्मवती की लाज बचाने के लिए प्रस्थान कर दिया। यद्यपि हुमायूँ के पहुंचने से पहले रानी कर्मवती चिता में सती हो चुकी थी, फिर भी बादशाह हुमायूँ ने मेवाड़ की रक्षा के लिए यथाशक्ति प्रयत्न किया और बहादुरशाह को हराकर भगा दिया।
आज भी भारत में प्रत्येक बहन भाई के हाथ में कुछ सूत्र बाँधती है, जिसको हम राखी, रक्षा-बन्धन या पहुँची कहते हैं।
वास्तव में इन सूत्रों में एक अनोखा प्यार, बल और विश्वास छिपा होता है जिसका मूल्य चुकाना प्रत्येक भाई के लिए असम्भव-सा है। फिर भी प्रत्येक भाई आज के दिन प्रण करता है कि सदा मैं अपनी बहन की रक्षा करूँगा। इसी प्रण को स्मरण दिलाने के लिए यह पर्व प्रति वर्ष श्रावण शुक्ला पूर्णमासी के दिन अत्यन्त धूमधाम से मनाया जाता है ।
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