Tuesday, March 22, 2022

दशहरा पर निबन्ध Essay on Dusshera

विजयदशमी का त्योहार प्रतिवर्ष आश्विन शुक्ला दशमी को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है । 


विजयदशमी से कुछ दिन पूर्व क्षत्रिय लोग अपने शस्त्रास्त्रों तथा गणवेशों (वर्दियों) को चमकाने लगते थे। विजयदशमी के दिन वे प्रातः शस्त्र-पूजन करते तथा सीमोल्लंघन किया करते थे। 


आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रथमा (पड़वा) को पहला नवरात्र आरम्भ होता है। इस दिन घरों में रामायण की कथा आरम्भ हो जाती है। नगरों और कस्बों में इस दिन से श्रीरामकथा के आधार पर झाँकियाँ निकलने लगती हैं। ये लगातार नौ दिन तक निकलती रहती हैं और हजारों-लाखों लोग इन्हें बड़ी रुचि तथा श्रद्धा से देखते हैं। दसवें दिन विजयदशमी का पर्व होता है। 


यह पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। एक बड़े मैदान में, जिसे प्राय: रामलीला मैदान कहा जाता है, कागजों के तीन विशालकाय पुतले खड़े किये जाते हैं। इनकी हड्डियाँ बाँस, वेत, लकड़ी आदि से बनी होती हैं। सिर पर मुकुट भी गत्ते आदि के होते हैं। तन पर कागज, कपड़े आदि के रंग-बिरंगे वस्त्र पहनाये गये होते हैं। 


खाने-पीने की चीजों, फलों, मूर्तियों, चित्रों, धनुष-बाण आदि वस्तुएँ बेचने वालों की दुकानें सजी होती हैं। लोगों की भीड़ निरन्तर बढ़ती जाती है। तीन-चार बजे तक तो तिल धरने को जगह नहीं रहती । सामने ही रावण, कुम्भकरण और मेघनाद के पुतले होते हैं। लोग रह-रहकर उनकी ओर देखते हैं। इतने में नगर में घूमती हुई राम-लक्ष्मण की सवारी रामलीला मैदान की ओर आती है। हनुमान् के पीछे लाल वस्त्र पहने वानर-सेना उछलती-कदती आती है। इसके बाद पीछेपीछे रावण की सवारी आती है। कुम्भकरण और मेघनाद भी आते हैं। उनके पीछे राक्षस-सेना नीले-काले वस्त्र पहने आती है। 


मैदान में पहुँचकर राम-रावण की सेनाओं में कृत्रिम युद्ध होता है। एक ओर सोने की लंका बनायी गई होती है। हनुमान जी अपने दल सहित जाकर उसे आग लगा देते हैं। 


इतने में राम अपना बाण रावण पर चलाते हैं। फिर लक्ष्मण मेघनाद को बाण मारते हैं। तब राम कुम्भकरण पर बाण मारते हैं। इसके साथ ही पुतलों में आग का पलीता लगा दिया जाता है । पुतलों के अन्दर भरे पटाखे ठा-ठा करके चलने लगते हैं। बच्चे, बूढ़े, जवान, स्त्री-पुरुष भगवान राम की जयजयकार से गगन गुंजाने लगते हैं। देखते ही देखते तीनों राक्षसों के पुतले जलकर राख हो जाते हैं। दशहरा हमें यह शिक्षा दे जाता है कि अपना चरित्र राम की तरह बनाना चाहिए, रावण जैसा नहीं। 

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