भारत के त्योहारों में दीपावली भी एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योहार है। कहते हैं कि जब श्री रामचन्द्रजी लंका-विजय कर अयोध्या आये तो उसी खुशी में लोगों ने अपने घरों में घी के दीपक जलाये और खुशियाँ मनायीं। कोई कहते हैं कि दुर्गा ने जब शुम्भ-निशुम्भ राक्षसों का वध कर दिया तो लोगों ने खशियाँ मनायीं । वे दोनों राक्षस अत्यन्त अत्याचारी थे परन्तु आजकल लोग यह मानते हैं कि यह त्योहार लक्ष्मीजी का है। लक्ष्मीजी विष्णु भगवान की भार्या व धन की देवी मानी जाती हैं। अस्तु, व्यापारी वर्ग या वैश्य लोग इसे बड़े उत्साह से मनाते हैं।
दीपावली का त्योहार कार्तिक की अमावस्या को मनाया जाता है। यह त्योहार लगभग पाँच दिन चलता है—धनतेरस, छोटी दीपावली, बड़ी दीपावली, गोवर्धन और भ्रातृ-द्वितीया या भैया-दूज।
कार्तिकी अमावस्या को दीपावली का त्योहार होता है। इस दिन लोग नवीन-नवीन वस्त्र धारण करते हैं तथा खोलें, खिलौने, सुन्दर-सुन्दर मूर्तियाँ, चित्र, मिठाइयाँ आदि खरीदकर लाते हैं। कोई-कोई धनी पुरुष चाँदी की लक्ष्मीजी की प्रतिमा रखते हैं । कण्डील, मोमबत्ती, फुलझड़ी सर्वत्र बिकती हुई दिखाई देती हैं।
सन्ध्या से ही द्वार, बाजार, गली आदि अभी जगमगा उठते हैं। रात्रि में दिन हो जाता है। कहीं लड़के मोमबत्ती जलाते हैं, कहीं फुलझड़ी छोड़ते हैं, कहीं पटाखे चलाते हैं। घरों में रंगबिरंगे कण्डीलों का प्रकाश बहुत ही सुन्दर दिखाई देता है। रात्रि को लक्ष्मी-पूजन होता है और लोग खीले, खिलौने और मिठाइयाँ बाँटते हैं। व्यापारियों के यहां विशेषकर आज के ही दिन बहियाँ बदली जाती हैं । वे लोग इनका पूजन भी करते हैं । परन्तु सबसे अधिक दर्शनीय वस्तु तो रोशनी होती है। दीपो की जगमगाती पंक्ति मन को मोह लेती है। शहरों में बिजली के हरे, पीले, लाल, नीले लटटुओं से दुकाने तथा घर सजाये जाते हैं । अस्तु, वे पुते-लिपे मकान चमक उठते हैं।
प्रत्येक घर में लक्ष्मी-पूजन करने के उपरान्त लोग रोशनी देखने जाते हैं और बाजारों में मनुष्यों की भीड़ लग जाती है। सभी मनुष्य अपने सुन्दर से सुन्दर कपड़े पहनकर निकलते हैं। इसी को हम दीपावली का त्योहार कहते हैं।
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