Sunday, February 27, 2022

भारत में विश्वविद्यालयीय शिक्षा University Education in India

भारत में विश्वविद्यालयीय शिक्षा University Education in India


भारत में आधुनिक विश्वविद्यालयीय शिक्षा University Education का स्वरूप ब्रिटिश प्रणाली पर आधारित है। यहाँ प्रायः निम्नलिखित पाँच प्रकार के विश्वविद्यालय पाए जाते हैं


(1) एकात्मक तथा शैक्षणिक; जैसे—अलीगढ़ और बनारस, विश्व भारती और हैदराबाद आदि। 

(2) संघात्मक तथा शैक्षणिक; जैसे—दिल्ली। 

(3) सम्बद्धक तथा शैक्षणिक; जैसे-गोरखपुर। 

(4) सम्बद्धक मात्र; जैसे-अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद, रूहेलखण्ड, बरेली तथा झाँसी आदि। 

(5) एकल संकाय विश्वविद्यालय; जैसे—संगीत, कृषि या इंजीनियरिंग के विश्वविद्यालय देश के कुछ स्थानों पर स्थापित हैं; जैसे—पन्तनगर का कृषि विश्वविद्यालय, लखनऊ का भातखण्डे संगीत विश्वविद्यालय तथा सरदार वल्लभभाई कृषि विश्वविद्यालय, मेरठ। 


प्रशासन की दृष्टि से भारत में तीन प्रकार के विश्वविद्यालय होते हैं—


(1) केन्द्रीय, 

(2) राज्यीय और 

(3) विश्वविद्यालय स्तर के संस्थान। 


सभी विश्वविद्यालयों का प्रशासन समान रूप का कहा जा सकता है। विश्वविद्यालय का सबसे बड़ा अधिकारी कुलपति होता है। उसके ऊपर राज्य का राज्यपाल कुलाधिपति होता है। विभिन्न संकायों के डीन एवं विभागों के अध्यक्ष आन्तरिक प्रशासन का कार्य देखते हैं। विश्वविद्यालय के प्रशासन में सहयोग हेतु कार्य परिषद्, विद्या परिषद् एवं संकाय परिषद् की व्यवस्था रहती है। सम्बद्धक विश्वविद्यालयों के अधीन अनेक कॉलेज होते हैं। ये कॉलेज विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम को पढ़ाते हैं तथा इनकी परीक्षाएँ विश्वविद्यालय ही लेता है। इनमें शिक्षकों की नियुक्ति उच्चतर शिक्षा आयोग, इलाहाबाद द्वारा की जाती है। प्रत्येक कॉलेज हेतु एक प्रबन्ध समिति का विधान है। 


विश्वविद्यालय एवं उसके कॉलेजों का सत्र जुलाई से अप्रैल तक चलता है। प्रत्येक घण्टा 50 मिनट का होता है। अध्यापन प्रात: 9 या 10 बजे से प्रारम्भ होकर सायं पाँच या छह बजे तक चलता है। छात्रों के लिए पुस्तकालय तथा कुछ के लिए आवास की व्यवस्था रहती है। पुस्तकालय समृद्ध नहीं होते। आवास की व्यवस्था भी बहुत अच्छी नहीं प्रतीत होती। लगभग 80 प्रतिशत विद्यार्थियों को बाहर ही रहना पड़ता है। जो कुछ छात्रावास हैं उनमें प्रबन्ध की स्थिति प्रायः दयनीय रहती है। 


प्रत्येक विश्वविद्यालय से सम्बद्ध उसके कॉलेजों को प्रवेश की समस्या का सामना करना होता है। हजारों इच्छुक नवयुवक प्रवेश पाने में सफल नहीं होते। प्रत्येक कक्षा में छात्रों की भीड़ रहती है, यद्यपि बहुत-से छात्र नित्य कक्षा में नहीं आते। पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं का अभाव रहता है। छात्रों में अनुशासनहीनता बढ़ रही है क्योंकि बहुत-से शिक्षक और राजनीतिक दल उनसे अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं। छात्र संघों के वार्षिक चुनाव में बहुत-से राजनीतिक दल छिपे रूप से सहायता करते हैं जिससे में उनका उम्मीदवार छात्र संघ का अध्यक्ष चुना जा सके। छात्रगण विश्वविद्यालय की प्रशासन व्यवस्था में अपनी भूमिका चाहते हैं। अत: कदम-कदम पर वे अधिकारियों के रास्ते में रोड़ा अटकाते हैं। परीक्षा न होने देना, परीक्षा में नकल करना तथा अपनी उचित और अनुचित माँगों के लिए अधिकारियों का घेराव करना व उसके साथ दुर्व्यवहार करना अब विश्वविद्यालय तथा कॉलेज के छात्रों के लिए कठिन नहीं है। प्राय: सभी विश्वविद्यालयों को पुलिस-फोर्स की आवश्यकता समय-समय पर पड़ा करती है। उच्च शिक्षा केन्द्रों के छात्रों में इतनी अनुशासनहीनता दिखाई पड़ती है कि जो छात्र पढ़ना चाहते हैं उन्हें पढ़ने नहीं दिया जाता। अनुमान है कि केवल 2 या 3 प्रतिशत छात्र ही पूरे वातावरण को विघ्नमय बनाए रहते हैं। 


विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम की विविधता अवश्य है, किन्तु व्यावसायिक एवं औद्योगिक विश्वविद्यालयों को छोड़कर अन्य विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र विश्वविद्यालय की डिग्री प्राप्त कर लेने पर भी अपने में आत्मनिर्भरता का अनुभव नहीं करते। वे नौकरी की खोज में यहाँ-वहाँ भटकते रहते हैं। 


उपर्युक्त दोषों एवं अभावों को जब तक दूर नहीं किया जाएगा हमारे देश की विश्वविद्यालयीय शिक्षा अपने उद्देश्य में सफल न होगी। 


विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षा University and Higher Education


वर्तमान समय में देश में विश्वविद्यालय स्तर के सैकड़ों संस्थान हैं। मुक्त विश्वविद्यालयों की संख्या बहुत है। इनमें महिला विश्वविद्यालय भी हैं। विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में पंजीकृत विद्यार्थियों की संख्या इस समय लाखों में है जबकि शिक्षकों की संख्या 8 लाख से अधिक है। 


विश्वविद्यालय अनुदान आयोग University Grants commission


विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना विश्वविद्यालय शिक्षा को बढ़ावा देने, इनके समन्वय के साथ-साथ विश्वविद्यालयों में शिक्षण, परीक्षा एवं अनुसन्धान के मानक निर्धारित करने और इनके रख-रखाव के लिए सन् 1956 में हुई थी। यह आयोग केन्द्र एवं राज्य सरकारों और उच्चतर शिक्षा के बीच समन्वय निकाय के रूप में काम करता है। यह उच्च शिक्षा से सम्बन्धित मुद्दों पर इन सरकारों और संस्थानों के लिए सलाहकार निकाय के रूप में भी भूमिका निभाता है। आयोग अपने उद्देश्य पूरा करने के उद्देश्य से अन्य बातों के अलावा विश्वविद्यालयों की वित्तीय आवश्यकताओं के बारे में पूछताछ कर सकता है। विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों को रखरखाव और विकास के लिए अनुदान का आवंटन और उसका वितरण करता है; समान सेवाएँ और सुविधाएँ निर्धारित करता है और इनकी देख-रेख करता है, विश्वविद्यालय शिक्षा में सुधार के उपाय सुझाता है, कानून के अनुरूप नियम और नीति बनाता है तथा नये विश्वविद्यालयों की स्थापना और अनुदान के आवंटन पर सलाह देता है। आयोग में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और दस सदस्य होते हैं, जिनकी नियुक्ति केन्द्र सरकार द्वारा की जाती है। इसका क्षेत्रीय कार्यालय हैदराबाद, पुणे, भोपाल, कोलकाता, गुवाहाटी और बंगलुरु में है। गाजियाबाद स्थित उत्तर क्षेत्रीय कार्यालय का विलय नई दिल्ली स्थित आयोग के मुख्यालय में कर दिया गया है और उसका नाम ‘उत्तरी क्षेत्रीय महाविद्यालय ब्यूरो' हो गया है। 


स्वायत्त अनुसन्धान संगठन Autonomous Research Organization


नई दिल्ली स्थित भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिषद् (आई०सी०एच०आर०) इतिहास सम्बन्धी अनुसन्धान की प्रगति की समीक्षा और वैज्ञानिक ढंग से इतिहास-लेखन को प्रोत्साहित करती है। इसकी स्थापना सन् 1972 में हुई थी। यह अनुसन्धान परियोजनाओं को संचालित करता है, विद्वानों की अनुसन्धान परियोजनाओं को वित्तीय सहायता देता है, फेलोशिप प्रदान करता है और प्रकाशन एवं अनुवाद का कार्य कराता है। 


भारतीय दर्शन सम्बन्धी अनुसन्धान परिषद् (आई०सी०पी०आर०) का कार्यालय नई दिल्ली और लखनऊ में है। वर्ष 1977 से अस्तित्व में आई परिषद् का कार्य दर्शनशास्त्र में अनुसन्धान की परियोजनाओं और कार्यक्रमों की प्रगति की समीक्षा करना, इनका प्रयोजन करना और इन्हें सहायता देना है। यह दर्शनशास्त्र और इससे जुड़े पाठ्यक्रमों में अनुसन्धान के लिए संस्थानों और व्यक्तियों को विनीय सहायता भी प्रदान करता है। 


भारतीय उच्चतर अध्ययन संस्थान (आई०आई०ए०एस०), शिमला की स्थापना सन् 1965 में हुई थी। यह मानविकी, समाज विज्ञान और प्राकृतिक विज्ञान के क्षेत्र में उच्चतर अनुसन्धान का केन्द्र है, जहाँ आवासीय सुविधा भी है। यह ज्ञान के नये क्षेत्रों की खोज में लगे विद्वानों का समुदाय है, जो समकालीन प्रासंगिक सवालों के वैचारिक विकास और उसके अन्तर्विषयी विचारों पर नजर रखते हैं। 


भारतीय समाज विज्ञान अनुसन्धान परिषद् (आई०सी०एस०एस०आर०), नई दिल्ली समाज विज्ञान अनुसन्धान को बढ़ावा देने और उनका समन्वय करने वाला स्वायत्त निकाय है। इसका मुख्य कार्य समाज विज्ञान अनुसन्धान की प्रगति की समीक्षा करना, सरकार या अन्य को अनुसन्धान सम्बन्धी कार्यों में सुझाव देना, अनुसन्धान कार्यक्रमों को प्रायोजित करना और समाज विज्ञान में अनुसन्धान के लिए संस्थानों और व्यक्तियों को अनुदान प्रदान करना है। 


राष्ट्रीय ग्रामीण संस्थान परिषद् (एन०सी०आर आई०) केन्द्र सरकार द्वारा पूरी तरह वित्तपोषित ) स्वायत्त संगठन है, जिसकी स्थापना सन् 1995 में हुई थी। इसका कार्य शिक्षा पर महात्मा गांधी के क्रान्तिकारी विचारों की तर्ज पर ग्रामीण उच्चतर शिक्षा को बढ़ावा देना, गांधीवादी दर्शन के अनुरूप नेटवर्क को चुस्त-दुरुस्त करना, शैक्षणिक संस्थानों और स्वायत्त एजेंसियों को विकसित करना तथा अनुसन्धान को सामाजिक और ग्रामीण विकास के उपकरण के रूप में बढ़ावा देना है। 


इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय Indira Gandhi National Open University


इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) की स्थापना सितम्बर 1985 ई० में हुई थी। इसका दायित्व देश की शिक्षा प्रणाली में मुक्त विश्वविद्यालय की परम्परा प्रारम्भ करने और इसे बढ़ावा देने के अलावा ऐसी प्रणालियों का समन्वय करना और इनके मानक निर्धारित करना है। विश्वविद्यालय का प्रमुख उद्देश्य जनसंख्या के एक बड़े भाग तक उच्च शिक्षा की पहुँच का विस्तार करना, शिक्षा के कार्यक्रम आयोजित करना और विशेष लक्षित समूहों जैसे महिलाओं, पिछड़े इलाकों और पर्वतीय इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए उच्चतर शिक्षा के विशेष कार्यक्रम शुरू करना है। 


इग्नू में विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा की एक नई प्रयोगात्मक परीक्षा चलाई जाती है, जो शिक्षण के तौर-तरीकों, पाठ्यक्रमों के मिलान, पंजीकरण योग्यताओं, प्रवेश की आयु और मूल्यांकन के तौर-तरीकों के मामले में लचीली और खुली है। विश्वविद्यालय ने समेकित मल्टीमीडिया के माध्यम से सन्देश देने की नीति अपनायी है, जिसमें प्रकाशित सामग्री तथा दृश्य-श्रव्य (ऑडियो-विजुअल) सामग्री उपलब्ध कराई जाती है। इग्नू टेलीकॉन्फ्रेंसिंग कराने के साथ-साथ देशभर के अध्ययन केन्द्रों में परामर्श सत्र भी आयोजित करता है। यह नियमित मूल्यांकन के साथ-साथ समयबद्ध ढंग से परीक्षाएँ भी आयोजित करता है, जो पाठ्यक्रम की अवधि के अन्त में सम्पन्न होती हैं। 


इग्नू ने अपने कार्यक्रम सन् 1987 में प्रारम्भ किए और अभी तक अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। ने इनमें पी-एच०डी० स्नातकोत्तर डिग्री कार्यक्रम, उच्चतर/स्नातकोत्तर डिप्लोमा, कार्यक्रम और सर्टिफिकेट कार्यक्रम शामिल हैं। इग्नू ने महिलाओं, अनुसूचित जाति/जनजाति और शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए अध्ययन केन्द्रों की स्थापना की है। विश्वविद्यालय ने दूरवर्ती शिक्षा परिषद् (डी०ई०सी०) की स्थापना एक वैधानिक प्राधिकरण के रूप में की है। यह देश में दूरवर्ती शिक्षा के मानकों का समन्वय और उनका निर्धारण करने वाला सर्वोच्च निकाय है। 


इस समय देश में अनेक मुक्त विश्व विश्वविद्यालय हैं। इनमें से प्रमुख मुक्त विश्वविद्यालय हैंबी०आर० अम्बेडकर खुला विश्वविद्यालय, हैदराबाद (तेलंगाना); कोटा मुक्त विश्वविद्यालय, कोटा (राजस्थान); नालन्दा मुक्त विश्वविद्यालय (बिहार); यशवन्त राव चव्हाण महाराष्ट्र खुला विश्वविद्यालय, नासिक (महाराष्ट्र); मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय, भोपाल (मध्य प्रदेश); अम्बेडकर मुक्त विश्वविद्यालय, अहमदाबाद (गुजरात); कर्नाटक राज्य मुक्त विश्वविद्यालय, मैसूर (कर्नाटक); नेताजी सुभाष मुक्त विश्वविद्यालय, कोलकाता (पश्चिम बंगाल); राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय, प्रयागराज, (उत्तर प्रदेश) तथा तमिलनाडु राज्य मुक्त विश्वविद्यालय, चेन्नई (तमिलनाडु)। देश में पत्राचार पाठ्यक्रम चलाने वाले 104 संस्थान हैं, जो पारम्परिक प्रणाली के आधार पर दूरवर्ती शिक्षा उपलब्ध कराते हैं। 


तकनीकी शिक्षा Technical Education


देश में तकनीकी शिक्षा प्रणाली के क्षेत्रान्तर्गत अभियान्त्रिकी, प्रौद्योगिकी, प्रबन्धन, वास्तुकला (आर्किटेक्चर), फार्मेसी आदि के पाठ्यक्रम आते हैं। मानव संसाधन विकास मन्त्रालय स्नातक-पूर्व, स्नातकोत्तर और अनुसन्धान स्तर के कार्यक्रमों की देख-रेख करता है। केन्द्रीय स्तर पर तकनीकी शिक्षा प्रणाली के अंग हैं


अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् (ए०आई०सी०टी०ई०) तकनीकी शिक्षा के उचित नियोजन और समन्वित विकास की देख-रेख करने वाला वैधानिक निकाय है। 


सात भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान (आई०आई०टी०) छह भारतीय प्रबन्धन संस्थान (आई०आई०एम०) भारतीय विज्ञान संस्थान (बंगलुरु), भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी एवं प्रबन्ध संस्थान (ग्वालियर) और भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (प्रयागराज) के साथ-साथ 18 राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (क्षेत्रीय इंजीनियरिंग कॉलेज से परिवर्तित शत-प्रतिशत केन्द्रीय वित्तीय सहायता प्राप्त)। 


ए०आई०सी०टी०ई० की ओर से अनेक स्नातक स्तर के संस्थानों और स्नातकोत्तर स्तर के संस्थानों को मान्यता मिली है। सूचना प्रौद्योगिकी और सम्बन्धित क्षेत्रों में उच्च गुणवत्ता वाले कर्मियों की जरूरत पूरा करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी में मानव संसाधन विकास मन्त्रालय की ओर से राष्ट्रीय कार्यक्रम तैयार किया गया है। 

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