एक दिन आपके शिक्षक स्कूटर स्टार्ट कर रहे थे। कई किक लगाने के बाद भी स्कूटर स्टार्ट नहीं हुआ। शिक्षक ने कुछ सोचा और रिंच की सहायता से स्कूटर का प्लग निकाल कर देखा और बोले प्लग में कार्बन जमा हो गया है। छात्रों में कौतूहल जगा कार्बन क्या होता है ? देखने के लिए झुण्ड बनाकर छात्र शिक्षक के समीप आ गये। शिक्षक ने प्लग के एक धातु के बने भाग पर काला पदार्थ जमा हुआ दिखाया और बोले देखो यही कार्बन है।अब तक ज्ञात लगभग 118 तत्वों में से प्रकृति में प्राप्त 92 तत्वों में कार्बन एक महत्वपूर्ण तत्व है जो संसार में पाये जाने वाले सभी सजीवों (पौधों एवं जन्तुओं) तथा लगभग सभी भोज्य पदार्थों में उपस्थित होता है। कार्बन का प्रतीक “C” है। कार्बन शब्द लैटिन भाषा के कार्बो शब्द से बना है। कार्बो का अर्थ कोल होता है।
कार्बन की उपस्थिति
आइये विचार करें,पेन्सिल से कागज पर लिखने पर काला निशान बनाने वाला पदार्थ , लालटेन / लैम्प जलाने पर काँच की चिमनी पर जमी कालिख तथा आँख में लगाने वाला काजल, लकड़ी को आंशिक रूप से जलाने पर प्राप्त काला पदार्थ क्या हैं ? उपर्युक्त सभी काले पदार्थ कार्बन तत्व के रूप हैं। कार्बन एक ऐसा तत्व है जो एक ओर पेन्सिल में लगे ग्रेफाइट के रूप में कोमल तथा हीरे के रूप में अत्यन्त कठोर और अभूतपूर्व चमक वाला है तो वहीं लकड़ी के कोयले के रूप में काला।यहीं नहीं कार्बन सभी सजीवों (जन्तुओं एवं वनस्पतियों) तथा दैनिक जीवन में प्रयुक्त होने वाले पदार्थों जैसे -कागज, लकड़ी, रबर, टायर, 'कपड़े, तेल, साबुन एवं ईंधन में यौगिक के रूप में उपस्थित होता है। निर्जीव वस्तुओं में भी कार्बन मुक्त रूप (तत्व ) एवं यौगिक दोनों ही रूपों में उपस्थित हो सकता है। मुक्त रूप में कार्बन अपने विभिन्न रूपों में पाया जाता है। संयुक्त अवस्था में कार्बन बहुत से यौगिकों में पाया जाता है। आइये कार्बन की उपस्थिति के बारे में विस्तृत चर्चा करें।
लगभग सभी यौगिकों में कार्बन उपस्थित है। प्राकृतिक गैस, कुकिंग गैस (एलपीज़ी), पेट्रोल, डीजल, मिट्टी का तेल, पैराफिन मोम एवं कोलतार आदि में कार्बन, हाइड्रोजन के यौगिक के रूप में होता है जिन्हें हाइड्रोकार्बन कहते हैं। भोजन में उपस्थित प्रमुख घटक कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन आदि कार्बन के महत्वपूर्ण यौगिक हैं, जिनसे शरीर को कार्य । करने के लिए ऊर्जा प्राप्त होती है और ये शरीर की पेशियों, रक्त, ऊतकों व हड्डियों के निर्माण में सहायक होते हैं। शरीर की कोशिकाओं में कार्बन किसी न किसी रूप में अवश्य उपस्थित होता है। सजीव संसार की संरचना में कार्बन केन्द्रीय तत्व की भूमिका में होता है। सभी सजीवों में कार्बन और उसके यौगिक पाये जाते हैं। कुछ निर्जीव पदार्थों में कार्बन मुक्त या यौगिक के रूप में उपस्थित होता है।
मुक्त रूप में कार्बन की उपस्थिति (अपररूप)
जैसा कि हमने पढ़ा कि कार्बन यौगिकों के रूप में हमें प्राप्त होता है। साथ ही कार्बन कोयला, कालिख, ग्रेफाइट, हीरा, आदि विभिन्न रूपों में भी मुक्त अवस्था में प्राप्त होता है। ये सभी पदार्थ कार्बन तत्व के विभिन्न रूप हैं जिन्हें हम कार्बन के अपररूप कहते हैं।कार्बन के इन विभिन्न रूपों के सभी रासायनिक गुण तो एक समान होते हैं परन्तु भौतिक गुण भिन्न भिन्न होते हैं। पदार्थ के इस गुण को अपररूपता कहते हैं। कार्बन के विभिन्न अपररूपों के भौतिक गुणों में भिन्नता दिखाई देती है। हीरा चमकदार व कठोर होता है जबकि कोयला, काजल, ग्रेफाइट काले रंग के होते हैं। इनके गुणों में भिन्नता कार्बन परमाणुओं की व्यवस्था में भिन्नता के कारण होती है। कार्बन परमाणुओं की व्यवस्था के आधार पर कार्बन के विभिन्न अपररूपों को दो वर्गों में बाँटा जाता है। क्रिस्टलीय तथा अक्रिस्टलीय।
कार्बन के अपररूप
क्रिस्टलीय - ग्रेफाइट, हीरा, फुलेरीन
अक्रिस्टलीय - चारकोल (काष्ठ चारकोल, जन्तु चारकोल, शुगर चारकोल (कैरेमल)), काजल, कोक , कार्बन गैस
क्रिस्टलीय रूप में कार्बन परमाणु निश्चित क्रम में व्यवस्थित रहते हैं, जबकि अक्रिस्टलीय रूप में कार्बन परमाणु निशित क्रम में व्यवस्थित नहीं रहते हैं।
कार्बन के अक्रिस्टलीय अपररूप
कार्बन के अक्रिस्टलीय अपररूपों में कार्बन परमाणुओं की कोई निश्चित व्यवस्था नहीं होती है अर्थात इनकी क्रिस्टलीय संरचना नहीं होती है। कोयला, लकड़ी का कोयला, काजल आदि कार्बन के अक्रिस्टलीय अपररूप हैं। कोयले तथा लकड़ी के कोयले,जन्तु तथा सुगर चारकोल में प्रायः कुछ अशुद्धियाँ उपस्थित रहती हैं। आइये इन अक्रिस्टलीय अपररूपों की विस्तृत चर्चा करते हैं।
लकड़ी का कोयला (काष्ठ चारकोल)
काष्ठ चारकोल लकड़ी को ऑक्सीजन की कम उपस्थिति में दहन कर प्राप्त किया जाता है।इस प्रक्रम को भंजक आसवन कहते हैं। यह काले रंग का पदार्थ है। यह जल से हल्का है जिसके कारण जल में तैरता है। इसका प्रयोग ईंधन के रूप में तथा जल के शोधन में किया जाता है।
जन्तु चारकोल
यह जन्तुओं की हड्डियों के भंजक आसवन से बनाया जाता है। जन्तु चारकोल में कैल्सियम फॉस्फेट के साथ कार्बन लगभग 12% होता है। इसका प्रयोग चीनी उद्योग में गन्ने के रस को रंगहीन करने में तथा फॉस्फोरस के यौगिक बनाने में किया जाता है।
शुगर चारकोल (कैरमल)
शुगर चारकोल कार्बन का अक्रिस्टलीय अपररूप है। इसे चीनी (C12H22O11) पर सान्द्र गन्धक के अम्ल की क्रिया द्वारा बनाया जाता है। गन्धक का अम्ल चीनी से जल को अवशोषित कर लेता है तथा कार्बन शेष रह जाता है।
सुगर चारकोल मुख्य रूप से अपचायक के रूप में प्रयुक्त होता है। यह धातु ऑक्साइड को धातु के रूप में अपचयित करता है।
लैम्प ब्लैक (कालिख)
यह मोम अथवा तेल को वायु की सीमित मात्रा में जलाने पर प्राप्त होता है । ग्रामीण क्षेत्रों में लैम्प / दीपक से प्रकाश उत्पन्न करने के लिए मिट्टी का तेल प्रयोग किया जाता है। इससे प्राप्त कालिख में कार्बन 98-99% तक होता है।
कालिख का प्रयोग प्रिन्टर की स्याही,जूते की पॉलिश तथा रबर टायर आदि बनाने में किया जाता है।
कार्बन के क्रिस्टलीय अपररूप
हीरा, फुलरीन तथा ग्रेफाइट कार्बन के क्रिस्टलीय अपररूप है। इनमें कार्बन परमाणु एक निश्चित व्यवस्था के अन्तर्गन व्यवस्थित होते हैं। इनकी निश्चित क्रिस्टलीय संरचना होती है जिनके कारण इनके गणों में विशिष्टता पाई जाती है। आइय इनकी संरचना का अध्ययन करते हैं।
ग्रेफाइट
ग्रेफाइट शब्द ग्रीक भाषा के ग्रेफो से बना है, जिसका अर्थ है लिखना। पेंसिल के अन्दर पतली छड़ (लीड) जिससे लिखा जाता है, गेफाइट की बनी होती है। ग्रेफाइट में कार्बन के परमाणु इस प्रकार व्यवस्थित रहते हैं कि उनकी अनेक समतलीय परतें होती हैं। प्रत्येक परत पर छ: कार्बन परमाणु घटकोणीय छल्ले (रिंग) के रूप में व्यवस्थित रहते है। छल्ले का प्रत्येक कार्बन परमाणु तीन अन्य कार्बन परमाणुओं से जुड़ा होता है। ग्रेफाइट क्रिस्टल में कार्बन परमाणुओं की षटकोणीय रिंगों से बनी अनेक परतें होती हैं । परतों के मध्य क्षीण बलों के कारण ग्रेफाइट नर्म और स्नेहक होता है। ग्रेफाइट स्लेटी रंग का मुलायम एवं चिकना पदार्थ है, इसका गलनांक 3700° सेल्सियस होता है। यह विद्युत का सुचालक है। इसका प्रयोग विद्युत इलेक्ट्रोड बनाने में किया जाता है। कार्बन के अन्य अपररूपों की तरह यह भी ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया कर कार्बन डाइऑक्साइड गैस बनाता है। ग्रेफाइट अधिक मात्रा में चीन, भारत, श्रीलंका, उत्तरी कोरिया और मैक्सिको में पाया जाता है। भारत में यह बिहार, जम्मू-कश्मीर, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, राजस्थान, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक में पाया जाता है।
ग्रेफाइट कृत्रिम रूप से कोक (कार्बन का एक अक्रिस्टलीय रूप) को विद्युत भट्ठी में गरम करके बना सकते हैं। यह अपारदर्शी होता है।
अत्यधिक उच्च दाब तथा ताप पर ग्रेफाइट को हीरे में परिवर्तित किया जा सकता है। उच्च ताप एवं दाब ग्रेफाइट में कार्बन परमाणुओं की संरचना को पुनर्व्यवस्थित कर देता है। काँच काटने के लिये प्रयुक्त कटर तथा अन्य कई औजारों में प्रयुक्त हीरे प्रायः ग्रेफाइट से बनाये जाते हैं।
हीरा
आप में से अधिकांश हीरों से परिचित होंगे। आप में से बहुत से उसे रत्न रूप में भी जानते हैं। हीरा कार्बन का एक पारदर्शी क्रिस्टलीय अपररूप है। इसमें कार्बन का एक परमाणु कार्बन के अन्य चार परमाणुओं से जुड़ा होता है। कार्बन अपरमाणुओं की चतुष्फलकीय व्यवस्था के कारण यह पूर्णतः आबद्ध कठोर तथा त्रिविमीय संरचना का होता है।
हीरा कठोरतम प्राकृतिक पदार्थ है।
हीरे का उपयोग काँच काटने तथा धातुओं में छेद करने के लिए होता है। इसको विभिन्न कोणों पर काट कर गहने एवं अँगूठी बनाने में भी प्रयोग करते हैं। भारत में हीरा बहुत ही कम मात्रा में पन्ना, सतना(म0प्र0), बाँदा (उ0प्र0) तथा गोलकुण्डा (कर्नाटक) में पाया जाता है।
फुलरीन (Fullerene)
सन् 1985 में रसायनज्ञों ने ग्रेफाइट को अत्यधिक उच्च ताप तक गर्मकर कार्बन का एक नया अपररूप संश्लेषित किया। जिसे फुलरीन कहा गया।
फुलरीन वह क्रिस्टलीय कार्बन है। जिसमें 30 से 960 परमाणुओं से एक अणु प्राप्त होता है, फुलरीन कहलाता है। फुलरीन C60 का एक अणु. जिसका आकार फुटबाल की तरह होता है. कार्बन के 60 परमाणुओं द्वारा बना होता है। ये परमाणु षटकोणीय (Hexagonal) व पंचकोणीय (Pentagonal) व्यवस्था में जुड़े रहते हैं। C60 फुलरीन विद्युत का कुचालक होता है।
कार्बनिक रसायन का परिचय
19 वीं शताब्दी के आरम्भ में पदार्थों को उनके प्राकृतिक स्रोतों के आधार पर दो वर्गों में विभाजित किया गया।
1. कार्बनिक (Organic)
2. अकार्बनिक (Inorganic)
जन्तुओं और वनस्पतियों (जीवधारी) से उपलब्ध पदार्थों को कार्बनिक पदार्थ तथा खनिज पदार्थों, चट्टानों, भूगर्भ आदि जैसे निर्जीव स्रोतों से उपलब्ध पदार्थों को अकार्बनिक पदार्थ कहा गया जैसे - चीनी, यूरिया, एल्कोहल, सिरका आदि कार्बनिक यौगिकों के वर्ग में तथा सोडियम क्लोराइड, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल,कैल्सियम कार्बोनेट,कार्बन डाई ऑक्साइड आदि यौगिक अकार्बनिक यौगिकों के वर्ग में रखे गये।
सन् 1828 ई० में व्होलर ने सर्वप्रथम प्रयोगशाला में कार्बनिक यौगिक “यूरिया' का संश्लेषण किया। यूरिया प्रयोगशाला में बनने वाला पहला कार्बनिक यौगिक है। यूरिया अमोनियम सायनेट को गर्म करके बनाया गया।
यौगिकों की एक बड़ी संख्या ऐसी है, जिनमें उपस्थित तत्वों में से एक तत्व कार्बन होता है उनको कार्बनिक यौगिक कहते हैं। परन्तु कुछ कार्बन युक्त यौगिक कार्बनिक यौगिक के अन्तर्गत नहीं आते हैं। जैसे Co2,CO, कार्बोनेट, बाइकार्बोनेट, साइनाइड आदि।
कुछ और भी जाने
कार्बन युक्त यौगिकों को कार्बनिक यौगिक तथा कार्बन रहित यौगिकों को अकार्बनिक यौगिक नाम देकर वर्गीकरण किया गया।सामान्यतः सभी कार्बनिक यौगिक हाईड्रोकार्बन या उसके व्युत्पन्न होते हैं तथा मेथेन एवं इसके व्युत्पन्नों को छोड़कर लगभग सभी कार्बनिक यौगिकों में कार्बन-कार्बन बन्ध होता है। कार्बनिक यौगिकों का अध्ययन रसायन शास्त्र की जिस शाखा में किया जाता है यह कार्बनिक रसायन कहलाती है।
हाइड्रोकार्बन क्या है?
कार्बन तथा हाइड्रोजन तत्वों के रासायनिक संयोग से बने यौगिक हाइड्रोकार्बन कहलाते हैं। जैसे मेथेन (CH4), एथेन (C2H6), एथिलीन (C2H4), एसिटलीन (C2H2) आदि।
1. संतृप्त हाइड्रोकार्बन
वे हाइड्रोकार्बन यौगिक जिनमें कार्बन-कार्बन के मध्य एकल बन्ध होता है अर्थात कार्बन की चारों संयोजकताएं एकल बन्ध द्वारा संतृप्त रहती है, संतृप्त हाइड्रोकार्बन कहलाते हैं। मेथेन (CH4) एथेन (C2H6)
2. असंतृप्त हाइड्रोकार्बन
ऐसे हाइड्रोकार्बन, जिनमें कार्बन-कार्बन परमाणु के मध्य कम से कम एक द्विबन्ध या त्रिबन्ध उपस्थित हो, असंतृप्त हाइड्रोकार्बन कहलाते हैं। उदाहरण : एथिलीन (C2H4) ऐसिटलीन (C2H2)
मेथेन (CH4)
मेथेन, सरलतम हाइड्रोकार्बन यौगिक है। इसके एक अणु में कार्बन के एक परमाणु के साथ चार हाइड्रोजन परमाणु जुड़े रहते हैं। मेथेन प्राकृतिक गैस और तेल कूपों से निकलने वाली गैसों में उपस्थित होती है। दलदली स्थानों में पेड़-पौधों व अन्य कार्बनिक पदार्थों के सड़ने से उत्पन्न गैसों का मुख्य घटक मेथेन गैस होती है। मेथेन को इसीलिए मार्श गैस भी कहते हैं। मेथेन और वायु के मिश्रण को प्रज्जवलित करने पर भयंकर विस्फोट होता है। कोयले की खानों में विस्फोट होने का यही कारण होता है।
कार्बन ईंधन का आवश्यक
अवयव हम दैनिक जीवन में खाना पकाने के लिए द्रवित पेट्रोलियम गैस(एल०पी०जी०), लकड़ी, बायोगैस आदि का उपयोग ईंधन के रूप में करते हैं। ईधन वे पदार्थ हैं जिनसे दहन क्रिया द्वारा ऊष्मा प्राप्त होती है। अधिकांश ईंधनों में कार्बन तत्व या यौगिक रूप में उपस्थित रहता है। ईंधन ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। वर्तमान में ऊर्जा की मांग का प्रमुख हिस्सा ईंधन को जलाकर प्राप्त किया जाता है। जैसे- कारखानों में, सड़क, समुद्र तथा वायु परिवहन में ईंधन ही ऊर्जा के स्रोतों के रूप में प्रयुक्त होता है। सभी ईंधन जैसे -पेट्रोल, डीजल, मिट्टी का तेल, लकड़ी, कोयला आदि में कार्बन एक आवश्यक अवयव होता है ।
दैनिक जीवन के विभिन्न क्रिया कलापों में ऊर्जा के स्रोत के रूप में ईंधन का उपयोग किया जाता है।
ईंधन के स्त्रोत
ईंधन के अनेक स्रोत हैं।
1. जैव द्रव्यमान (बायोमास)
वनस्पतियों एवं जंतुओं के शरीर में स्थित पदार्थों को जैव द्रव्यमान कहते हैं, जैसे - लकड़ी, कृषि अपशिष्ट तथा गोबर आदि। ये गाँवों में ख़र्च होने वाली ऊर्जा का अधिकांश अंश प्रदान करते हैं। लकड़ी तथा कृषि अपशिष्ट औद्योगिक संस्थानों में भी उपयोग किये जाते हैं, जैसे- गन्ने की खोई जिसे प्रायः कई उद्योगों में बायलरों में पानी गर्म करने के लिये जलाया जाता है।
ग्रामीण घरों में प्रायः चूल्हों में लकड़ी जलाते हैं। इन चूल्हों । दक्षता बहुत कम होती है। उनसे केवल 8% ऊर्जा का ही उपयोग हो पाता है। शेष ईंधन अपूर्ण दहन के फलस्वरूप धुआँ उत्पन्न करता है जो प्रदूषण बढ़ाता है।
2. कच्चे तेल के कुएँ
इन कुओं द्वारा तेल भण्डारों से प्राप्त होने वाले कच्चे तेल के प्रभाजी आसवन से विभिन्न पेट्रोलियम पदार्थ ईंधन के रूप में प्राप्त होते हैं।
3. कोयले की खान
इन खानों से ईंधन के में पत्थर का कोयला प्राप्त किया जाता है। क्या ईंधन पदार्थ की तीनों अवस्थाओं में पाये जाते हैं ?
ईंधन पदार्थ की तीनों अवस्थाओं में पाये जाते हैं - ठोस ईंधन, द्रव ईंधन और गैस ईंधन
लकड़ी का कोयला (चारकोल), पत्थर का कोयला,गोबर कण्डे एवं कृषि अपशिष्ट आदि ठोस ईंधन हैं।
मिट्टी का तेल, डीजल, पेट्रोल, गैसोलीन, एल्कोहॉल आदि द्रव ईंधन हैं।
गोबर गैस (CH4 + CO2 + H2S), वाटर गैस (CO +H2), कोल गैस, प्रोड्यूसर गैस (CO+N2), प्राकृतिक गैस, द्रवित पेट्रोलियम गैस (एल0पी0जी0)आदि गैसीय ईंधन हैं।
ईंधन का चयन उसके उपयोग, सुविधा और आवश्यकता पर निर्भर करता है, जैसे -
1. घरेलू ईंधन
लकड़ी, कोयला, कैरोसीन (मिट्टी का तेल), द्रवित पेट्रोलियम गैस (एलपीज़ी)आदि घरों में प्रयुक्त होने वाले अथवा घरेलू ईंधन हैं।
2. औद्योगिक ईंधन
पेट्रोल, डीजल, नेप्था, कोयला, प्राकृतिक गैस (सी.एन.जी.) आदि विभिन्न उद्योगों में प्रयुक्त औद्योगिक ईंधन है।
3. इंजन ईंधन
पेट्रोल,डीजल,मिट्टी का तेल आदि विभिन्न प्रकार के इंजनों को चलाने में प्रयुक्त इंजन ईंधन हैं।
4. रॉकेट ईधन
मेथिल हाइड्राजीन, द्रवित हाइड्रोजन आदि जेट, राकेट एवं मिसाइलों में प्रयुक्त रॉकेट ईंधन हैं। लकड़ी,कोयला,गोबर के कण्डे,कृषि अपशिष्ट एवं पेट्रोलियम उत्पाद आदि ईंधन परम्परागत ईंधन कहलाते हैं। इन सभी इंधनों में कार्बन या कार्बनिक यौगिकों के दहन से ऊष्मीय ऊर्जा प्राप्त होती है। ईंधन के जैविक स्रोत जो अब समाप्त हो रहे हैं, इनका संरक्षण आवश्यक है। ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा आदि का भी ईंधन के विकल्प के रूप में प्रयोग किया जा रहा है।
पेट्रोलियम, ईंधन तथा अन्य उत्पाद का प्रमुख स्रोत
पृथ्वी के अन्दर करोड़ों वर्ष पहले भौगोलिक उथल-पुथल के फलस्वरूप जीव-जन्तु दब गये। मृत जीव-जन्तु ऊष्मा, दाब तथा उत्प्रेरक क्रिया के द्वारा अपघटित होकर पेट्रोलियम में परिवर्तित हो गये। पेट्रोलियम विभिन्न हाइड्रोकार्बनों का मिश्रण है।
पेट्रोलियम शब्द की उत्पत्ति लैटिन के दो शब्दों पेट्रा (Petra- चट्टान)तथा ओलियम (Oleum- तेल)से हुई है। यह पृथ्वी के भीतर चट्टानों के नीचे पाया जाता है। अतः इसे खनिज तेल भी कहते हैं। पृथ्वी के भीतर तैरते हुए पेट्रोलियम भण्डारों के साथ प्राय; गैस का एक भण्डार भी विद्यमान होता है, जिसे प्राकृतिक गैस कहते हैं, जो गैसीय हाइड्रोकार्बनों का मिश्रण है।
पेट्रोलियम को द्रव सोना (Liquid Gold) भी कहा जाता है। वर्तमान युग में पेट्रोलियम किसी राष्ट्र के लिए सोने से भी अधिक कीमती है। किसी भी राष्ट्र की उन्नति काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि उसके पास कितना पेट्रोलियम है। कृषि उद्योग, यातायात, संचार आदि विभिन्न कार्यों में इसका उपयोग अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
पेट्रोलियम उभरी हुई अभेद्य (अपारगम्य) चट्टानों को बेधित कर प्राप्त किया जाता है। विश्व का सबसे पहला तेल कूप अमेरिका के पेंसिलवेनिया में 1859 ई0 में खोदा गया
1867 ई० में भारत का पहला तेल कुआँ असम के माकुम में खोदा गया।
पेट्रोलियम का शोधन
पेट्रोलियम गहरे भूरे रंग का तेल जैसा चिकना एवं जल से हल्का द्रव है। यह अनेक हाइड्रोकार्बनों का मिश्रण है। पेट्रोलियम के विभिन्न अवयवों का क्वथनांक भिन्न-भिन्न होता है। पेट्रोलियम का शोधन तेल शोधन कारखानों में प्रभाजी आसवन विधि द्वारा किया जाता है।
कच्चे तेल को प्रभाजक स्तम्भ के पेंदे में भरकर उसे 400° सेल्सियस तक गर्म करते हैं। इस ताप पर पेट्रोलियम के एस्फाल्ट जैसे प्रभाजों को छोड़कर बाकी समस्त प्रभाज वाष्पित हो जाते हैं। इस वाष्प के ठण्डा होने के प्रक्रम में विभिन्न प्रभाज भिन्न भिन्न ताप पर द्रवित होते जाते हैं, जिन्हें पृथक कर लिया जाता है।
पेट्रोलियम के प्रभाजी आसवन से प्राप्त लाभप्रद अवयव इस प्रकार हैंएस्फाल्ट, पैराफिन मोम, स्नेहक तेल, डीजल, कैरोसीन, पेट्रोल, पेट्रोलियम ईथर, प्राकृतिक गैस। एस्फाल्ट, स्नेहक तेल तथा पैराफिन मोम को छोड़कर अन्य समस्त अवयव आसानी से प्रज्वलित हो सकते हैं तथा ऊष्मा उत्पन्न करते हैं। इन्हे प्रायः ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। तेल कुओं से पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस (CH ) दोनों प्राप्त होते है। प्राकृतिक गैस को उच्च दाब व निम्न ताप पर संपीडित करके द्रवित किया जाता है। जिसे सी०एन0जी0 (Compressed Natural Gas) कहते हैं। इसका उपयोग ईधन के रूप में वाहनों के परिवहन व ऊर्जा उत्पादन में किया जाता है। यह एक स्वच्छ ईधन है। पी0एन0जी0 (Piped Natural cas) को सीधे पाइप द्वारा प्राप्त कर ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। सी०एन0जी0 / पी0 एन0जी0 को घरों व कारखानों में सीधे पाइप लाइन द्वारा आपूर्ति की जाती है। प्राकृतिक गैस का उपयोग प्रारम्भिक पदार्थ के रूप में बहुत से रसायनों और उससे प्राप्त हाइड्रोजन गैस उर्वरकों के औद्योगिक निर्माण में किया जाता है।
द्रवित पेट्रोलियम गैस (एल.पी.जी.) के रिसाव का पता लगाने के लिए इसमे गंधवाला पदार्थ एथिल मरकैप्टन (C2H5SH) मिश्रित कर दिया जाता है। एल. पी.जी.मुख्यतः आइसो ब्यूटेन एवं प्रोपेन गैसों का मिश्रण होती है जो कि गन्धहीन होती है।
कोयला (कोल)
भौगोलिक उथल-पुथल के फलस्वरूप लाखों वर्ष पूर्व घने जंगल पृथ्वी के अन्दर दब गये। ये दबे हुए मृत पेड़पौधे उच्च ताप एवं दाब के प्रभाव से कोल (पत्थर का कोयला)के रूप में परिवर्तित हो गये। कोयला एक जीवाश्म ईंधन है। भारत में कोयले के भण्डार मुख्यतः बिहार, उड़ीसा, मध्यप्रदेश तथा पश्चिमी बंगाल में पाये जाते हैं।
कोयले में अधिकांशतः कार्बन, थोडी मात्रा में सल्फर व कुछ दाह्य पदार्थ (जलने वाला पदार्थ) होते हैं। यह तीन मुख्य रूपों में पाया जाता है। भूरा कोयला (लिगनाइट), डामर कोयला (बिट्यूमिनस) तथा एन्थ्रासाइट। विभिन्न प्रकार के कोयले में कार्बन, दाह्य पदार्थ तथा मात्रा भिन्न-भिन्न होती है।
भूरे कोयले (लिगनाइट) में 38% कार्बन, 19% दाह्य पदार्थ तथा शेष 43% नमी होती है। एन्थ्रासाइट में 96% कार्बन, 1% दाह्य पदार्थ तथा केवल 3% नमी होती है। बिट्यूमिनस कोयला में 65% कार्बन होता है। यह सबसे महत्वपूर्ण कोल ईंधन है।
कोयले से प्राप्त ईंधन
लोहे के रिटार्ट में कोयले को वायु की अनुपस्थिति में गर्म करने पर अधोलिखित प्रभाज प्राप्त होते हैं, जिनका उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है।
1. कोलतार
यह काले रंग का बदबूदार गाढ़ा द्रव होता है। इसमें बेंजीन, टालूईन, नैथलीन, फिनॉल इत्यादि कार्बनिक यौगिक उपस्थित होते हैं।
2. कोक
यह रिटार्ट में अवशेष के रूप में रहता है। कोक, चारकोल की भाँति यह एक अच्छा ईंधन है, तथा धुआँ रहित ज्वाला के साथ जलता है। इसका उपयोग धातु के अयस्कों से धातु निष्कर्षण में अपचायक के रूप में किया जाता है।
3. कोल गैस
यह हाइड्रोजन, कार्बन मोनो ऑक्साइड, मेथैन, एथिलीन, एसिटलीन आदि का मिश्रण है। कोल गैस ईंधन एवं प्रदीपक के रूप में प्रयुक्त होती है। गैस में उपस्थित असंतृप्त हाइड्रोकार्बन (एथिलीन,एसिटलीन) के जलने से प्रकाश उत्पन्न होता है।
दहन
ऑक्सीजन की उपस्थिति में किसी पदार्थ के जलने की क्रिया को दहन कहते हैं। पदार्थों की दहन क्रिया में ऊष्मीय ऊर्जा और प्रकाश उत्पन्न होता है। कार्बन युक्त कोई पदार्थ जब जलता है तो कार्बन डाई ऑक्साइड उत्पन्न होती है।
एक मोमबत्ती लेकर उसे जलाएं। जलती हुई मोमबत्ती को जार से ढंक दें। आप देखते हैं कि कुछ समय पश्चात् मोमबत्ती बुझ जाती है। क्यों ? जार के अन्दर की अधिकांश ऑक्सीजन उपयोग हो जाती है।
दहन के लिए ऑक्सीजन आवश्यक है।
किसी पदार्थ के दहन के लिए तीन शर्ते आवश्यक होती हैं।
(अ) दाह्य (जलने वाला)पदार्थ,
(ब) ऑक्सीजन,
(स) पदार्थ को दहन ताप तक पहुँचाने के लिए ऊष्मा।
श्वसन क्रिया एवं लोहे में जंग लगने की क्रिया मन्द दहन क्रियाएं हैं। इन क्रियाओं में भी ऊर्जा मुक्त होती है।
पटाखे / बन्दूक की गोली के अन्दर रासायनिक पदार्थ के साथ दहनशील पदार्थ रखा होता है। इनके गर्म होने अथवा इनमें आग लगाने पर रासायनिक पदार्थ ऑक्सीजन उपलब्ध कराते हैं जिससे दहनशील पदार्थों का दहन होने लगता है। दहन के प्रक्रम में उत्पन्न गैसें पटाखे या गोली के आवरण पर दाब लगाकर उसे विस्फोट के साथ तोड़ देती है। कार्बन और कार्बन युक्त यौगिकों के दहन से CO2 गैस बनती है जो रंगहीन, गंधहीन गैस है और चूने के पानी को दूधिया कर देती है।
ज्वलन ताप क्या है?
जिस ताप पर कोई पदार्थ वायु की उपस्थिति में जलने लगता है, वह उसका ज्वलन ताप कहलाता है। पेट्रोल का ज्वलन ताप कम होने के कारण वह जल्दी वाष्पित होकर आग पकड़ लेता है। मिट्टी के तेल का ज्वलन ताप पेट्रोल से अधिक होने के कारण ही उसे स्टोव में प्रयोग किया जाता है।
आग किस प्रकार बुझाई जा सकती है ?
घरों, कारखानों, सार्वजनिक स्थानों तथा खेत-खलिहानों में आग लग जाने पर तत्काल आग बुझाने के लिए अधोलिखित उपाय करने चाहिए -
दहनशील पदार्थों को तत्काल हटाया जाय।
हवा (ऑक्सीजन) के प्रवाह को यथा सम्भव रोका जाय।
आग बुझाने वाले यंत्र से कार्बन डाइऑक्साइड का प्रवाह किया जाय।
धूल / बालू तथा जल को आग पर डाला जाय।
यदि आग विद्युत परिपथ के शार्ट सर्किट के कारण लगी हो तो आग बुझाने की उपर्युक्त प्रक्रिया के पूर्व विद्युत सप्लाई बन्द कर दें।
ईंधन दहन के कारण पर्यावरण पर प्रभाव
लगभग सभी ईंधनों में कार्बन उपस्थित होता है। जो वायु में उपस्थित ऑक्सीजन में जलकर कार्बन डाइऑक्साइड गैस बनाता है। लकड़ी, कण्डे, गेहूँ व धान के (पराली), कोयला, पेट्रोल, एल.पी.जी. के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड गैस उत्पन्न होती है। खेतों में धान व गेहूँ के पुआल (पराली जलाने से वायुमण्डल में धुएं का कोहरा छा जाता है। जिससे आँखों में जलन व साँस लेने में तकलीफ होती है तथा वायुमण्डल में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है।
वाहनों तथा कारखानों से निकलने वाले धुंए से विभिन्न प्रकार के ईंधन के जलने से वायु में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती जा रही है। सीमेन्ट के कारखानों, ताप बिजलीघरों से कार्बन डाइऑक्साइड गैस की अत्यधिक मात्रा वायुमण्डल में मिल रही है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की मात्रा बढ़ने से ताप में वृद्धि के कारण भविष्य में ध्रुवीय क्षेत्रों की बर्फ पिघलने लगेगी जिससे समुद्रतटीय निचले इलाकों के सम्रदु में डूब जाने की आशंका होगी। कार्बन डाइऑक्साइड गैस सूर्य की ऊष्मा को वायुमण्डल में वापस जाने से रोकती है। इससे पृथ्वी का तापमान बढ़ जाता है। इसे ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं।
हमने सीखा
सभी सजीवों में कार्बन और उसके यौगिक पाये जाते हैं।
कार्बन के दो अपररूप होते हैं।
1. क्रिस्टलीय (ग्रेफाइट, हीरा, फुलरीन)
2. अक्रिस्टलीय (चारकोल, काजल, कोक, कार्बन गैस)
हीरा कठोरतम प्राकृतिक पदार्थ है। जबकि ग्रेफाइट मुलायम व स्नेहक होता है।
मेथेन (प्राकृतिक गैस) को मार्श गैस भी कहते हैं। सी.एन.जी. (Compressed Natural Gas) एक स्वच्छ इंधन होता है।
गोबर गैस (CH4 +CO2), वाटर गैस (H2+ CO) कोल गैस, प्रोड्यूसर गैस द्रवित पेट्रोलियम गैस (एल.पी.जी.) संपीडित प्राकृतिक गैस (CNG) आदि गैसीय ईंधन हैं।
भूरे कोयले (लिगनाइट) में 38% कार्बन, डामर कोयला (बिट्यूमिनस) में 65% कार्बन तथा एन्थ्रासाइट कोयला में 96% कार्बन पाया जाता है।
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