Wednesday, January 19, 2022

ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत Alternative Sources of Energy

जीवन के हर क्षेत्र में ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जैसे - सोने, जागने, बैठने, खड़े होने, चलने-फिरने, दौड़ने, बोझ उठाने एवं प्राकृतिक घटना चक्रों जैसे वायु प्रवाह, आँधी तूफान तथा वर्षा आदि होने में। कृषि द्वारा अन्न उत्पन्न करने, कपड़ा, मकान, रेल, सड़क, परिवहन संसाधनों के निर्माण एवं उन्हें क्रियाकारी बनाने के लिये ऊर्जा की आवश्यकता होती है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास के फलस्वरूप कारखानों, औद्योगिक संस्थानों इत्यादि में स्थापित मशीनों के संचालन के लिये भी ऊर्जा की आवश्यकता होती है। 

सजीवों की ऊर्जा का प्रमुख स्रोत भोजन है। सभी जन्तु अपने भोजन के लिये पूर्ण या आंशिक रूप से पेड़ पौधों पर निर्भर करते हैं। पेड़-पौधे भोजन बनाने के लिये सूर्य की ऊर्जा (सौर-ऊर्जा) का उपयोग करते हैं। यह ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। 

सूर्य से प्राप्त ऊर्जा में प्रकाश ऊर्जा के साथ-साथ ऊष्मीय ऊर्जा भी प्राप्त होती है। 

सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊष्मा के कारण ही वायु गर्म होकर ऊपर उठती है और आस-पास की ठंडी वायु उसका स्थान लेने के लिये तेजी से आगे बढ़ती है, जिसके कारण वायु प्रवाह बनता है। इसी कारण आँधी, तूफान, चक्रवात इत्यादि अनेक स्थानों पर आते रहते हैं। समुद्रों, झीलों, नदियों व तालाबों का जल, सूर्य के ऊष्मीय विकिरण से वाध्य के रूप में ऊपर उठता हैं तथा वायु का तेज प्रवाह भी जल को वाष्प में परिवर्तित कर देता है। जल वाष्प वायुमण्डल में ऊपर उठकर में संघनन के फलस्वरूप बादलों का निर्माण करता है। ठण्डा होने पर बादल से जल वर्षा या हिमपात के रूप में धरती पर वापस आते हैं। 

सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पेड़ पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में जल हरित लवक तथा कार्बन डाईऑक्साइड द्वारा रासायनिक यौगिक के रूप में अपना भोजन बनाते हैं। अतः प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में सूर्य की ऊर्जा (सौर ऊर्जा) रासायनिक ऊर्जा के रूप में संचित हो जाती है। पेड़-पौधे हमारे भोजन के स्रोत हैं। इसलिये हमें भोजन से प्राप्त होने वाली ऊर्जा का मुख्य स्रोत वास्तव में सूर्य की ऊर्जा ही है। 

लकड़ी एवं गोबर से बने उपले में भी सूर्य की ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा के रूप में संचित होती है। अतः ये भी ऊर्जा स्रोत हैं और इन्हें जलाने पर संचित ऊर्जा, प्रकाश एवं ऊष्मा के रूप में मुक्त होती है। 


ऊर्जा के विभिन्न स्रोत 


उपलब्धता के आधार पर ऊर्जा के स्रोत को दो भागों में बाँटा गया है - 

1. सीमित (अनवीकरणीय) ऊर्जा के स्रोत 

2. असीमित (नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत 

नोट - ऊर्जा के पारम्परिक स्रोत (अनवीकरणीय स्रोत) से मुख्य रूप से कार्बन के आक्साइडों का उत्सर्जन होता है, ) जिससे वायु प्रदूषण होता है। नवीकरणीय स्रोत से प्राप्त ऊर्जा स्वच्छ होती है, जिससे वायु प्रदूषण नहीं होता है। 


1. सीमित अथवा अनवीकरणीय ऊर्जा के स्त्रोत 


पत्थर का कोयला एवं पेट्रोलियम उत्पाद जैसे डीजल, पेट्रोल, मिट्टी का तेल, प्राकृतिक गैस आदि ऊर्जा के ऐसे स्रोत हैं जिन्हें पुनः नहीं प्राप्त किया जा सकता है क्योंकि इनके निर्माण में करोड़ों वर्ष लगते हैं। ये पुनः न प्राप्त होने वाले ऊर्जा के स्रोत हैं अर्थात ये ऊर्जा के सीमित स्रोत (अनवीकरणीय स्रोत) हैं। 

पेड़-पौधों के पृथ्वी के अन्दर गहराई में दब जाने के फलस्वरूप ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में लाखों करोड़ों वर्षों के पश्चात् कोयले का निर्माण होता है । कोयला कुछ पथरीले पदार्थ एवं कार्बन के जटिल यौगिकों से बना होता है। इसी प्रकार जीव जन्तुओं के अवशेषों के भूमि अथवा जल के नीचे दब जाने पर लाखों वर्षों में पेट्रोलियम बनता है। पेट्रोलियम के अधिकांश भंडार थल तथा समुद्र की तली से कई हजार मीटर की गहराई में पाये जाते हैं। इन भण्डारों से पेट्रोलियम निकालने के लिए कुएं बनाये जाते हैं। पेट्रोलियम सैकड़ों हाइड्रोकार्बन का मिश्रण होता है । आसवन विधि द्वारा पेट्रोलियम मिट्टी का तेल, पेट्रोल, डीजल आदि प्राप्त करते हैं । 

कोयला एवं पेट्रोलियम उत्पादों को जीवाश्म ईंधन भी कहते हैं । वर्तमान में मानव की लगभग 80% ईंधन की पूर्ति जीवाश्म ईधन करते हैं । जनसंख्या बढ़ने के परिणामस्वरूप कोयला एवं पेट्रोलियम उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ती जा रही है। ईंधन के इन स्रोतों के समाप्त हो जाने पर इन्हें पुनः प्राप्त करना सम्भव नहीं है अर्थात ये ऊर्जा के सीमित स्रोत हैं। इनके लगातार प्रयोग से ऊर्जा संकट की एक भयावह स्थिति उत्पन्न हो सकती है। 


जीवाश्म क्या है? 


जीवाश्म शब्द का उपयोग मृत वृक्षों तथा जन्तुओं की उन संरचनाओं के लिये किया जाता है, जिन्हें प्रकृति ने पृथ्वी की सतह के नीचे हजारों वर्षों तक सुरक्षित बनाए रखा, जिनके अध्ययन से पूर्व में पाये जाने वाले वनस्पति एवं जन्तुओं के संरचना, आकार, डील-डौल के बारे में अनुमानित जानकारी प्राप्त होती है। जैसे - 6 करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी पर पाये जाने वाले डायनासोरों की जानकारी इन के जीवाश्मों से प्राप्त हुई है। 


2. असीमित अथवा नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत 


ऐसी ऊर्जा स्रोत जो प्रकृति में असीमित मात्रा में उपलब्ध हैं, तथा मानवीय क्रियाकलापों से समाप्त होने वाले नहीं हैं, उन्हें असीमित अथवा नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत कहते हैं। जैसे - सौर ऊर्जा, वायु ऊर्जा, जल ऊर्जा, तथा बायो गैस। यह सभी पुनः प्राप्त होने वाले ऊर्जा के स्रोत हैं। वायु ऊर्जा का उपयोग पवन चक्की द्वारा विद्युत ऊर्जा के उत्पादन में होता है। जल ऊर्जा का उपयोग जल विद्युत संयंत्र में करके विद्युत ऊर्जा उत्पन्न की जाती है। बायोगैस का उपयोग भोजन पकाने एवं प्रकाश उत्पन्न करने में किया जाता है। 

ऊर्जा का प्रमुख स्रोत सूर्य है। पृथ्वी के पृष्ठ का कोई न कोई भाग हर समय सूर्य के प्रकाश से प्रदीप्त रहता है अर्थात् वर्ष के सभी दिन चौबीसों घंटे पृथ्वी का कोई न कोई भाग सूर्य से ऊष्मा तथा प्रकाश के रूप में ऊर्जा प्राप्त करता रहता है। 

जनसंख्या में तेजी से वृद्धि तथा जीवन को सुविधाजनक बनाने वाले संसाधनों में निरन्तर वृद्धि के कारण ऊर्जा की खपत में दिनों दिन वृद्धि हो रही है। जीवाश्म ईंधन जैसे - कोयला एवं पेट्रोलियम उत्पाद आदि ऊर्जा के परम्परागत स्रोत है, जिनका भण्डार सीमित है और भविष्य में इनके समाप्त होने की सम्भावना है। 


नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का विकास एवं उपयोग 


सौर ऊर्जा, गतिमान वायु, प्रवाहित जल की ऊर्जा, समुद्री ज्वार भाटा, जैव मात्रा (बायोमास) तथा नाभिकीय ऊर्जा नवीकरणीय ऊर्जा के कुछ स्रोत हैं। इन पर आधारित कुछ युक्तियों द्वारा वर्तमान में ऊर्जा प्राप्त की जा रही है। परन्तु अभी भी इस क्षेत्र में विकास की सम्भावनाएँ अनन्त हैं। आइए नवीकरणीय ऊर्जा प्राप्त करने की कुछ युक्तियों के बारे में जानते हैं। 


सौर ऊर्जा पर आधारित युक्तियाँ 


सौर ऊर्जा वह ऊर्जा है जो सीधे सूर्य से प्राप्त की जाती है। सौर ऊर्जा ही मौसम एवं जलवायु का परिवर्तन करती है। सौर उर्जा पृथ्वी पर सभी प्रकार के जीवन (पेड़-पौधे एवं जीव-जन्तु) का सहारा है। 

पृथ्वी पर एक घंटे में पड़ने वाली सौर ऊर्जा समस्त विश्व की जनसंख्या द्वारा एक वर्ष में खर्च की जाने वाली कुल ऊर्जा के लगभग बराबर होती है। लेकिन पृथ्वी के छोटे एकांक क्षेत्रफल पर पड़ने वाली सौर ऊर्जा काफी कम होती है। अतः इस ऊर्जा के छोटे भाग को उपयोग करने के लिये भी हमें ऐसी युक्तियों की आवश्यकता होती है जो इसे बड़े क्षेत्र से एकत्र कर सकें। यह भी खोज की गई है कि काले पृष्ठ द्वारा सौर ऊर्जा का अवशोषण सफेद पृष्ठ की अपेक्षाकृत अधिक होता हैं। सौर कुकर में भी इसका उपयोग होता है। 


सोलर कुकर 

सोलर कुकर द्वारा सौर ऊर्जा को ऊष्मा के रूप में परावर्तक (समतल दर्पण) एकत्रित करके इसे भोजन पकाने में प्रयोग किया जाता है। सूर्य की प्रकाश किरणें कुकर के काँच के ढक्कन तथा परावर्तक पर पड़ती हैं। काँच के ढक्कन पर तथा परावर्तक से परावर्तित होकर आने वाली प्रकाश किरणे बाक्स में रखे बर्तन तथा उसकी भीतरी दीवारों पर पड़ती हैं। बर्तन की बाहरी सतह तथा बाक्स की दीवारें व तली सभी काले रंग की होती हैं, जिससे सूर्य की किरणों की ऊर्जा को अवशोषित कर लिया जाता है। काँच का ढक्कन होने से बॉक्स के अन्दर हरितगृह प्रभाव उत्पन्न होता है, जिसके परिणामस्वरूप  बाक्स के अन्दर का ताप बढ़ जाता है। दो-तीन घंटों में इसके अन्दर रखा खाना पक जाता है। सोलर कुकर की सहायता से चपाती बनाने और फ्राई करने के अतिरिक्त सभी प्रकार के भोजन पकाये जा सकते हैं। 


सौर सेल (सोलर सेल) 


सौर सेल वह युक्ति है,जिससे सूर्य की प्रकाश ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदला जाता है । सौर सेल बनाने में सिलिकान प्रयोग करते है । एक सोलर सेल लगभग 0.5 वोल्ट का विभवान्तर तथा 0.6 ऐम्पियर की विद्युत धारा उत्पन्न कर सकता है। अधिक विद्युत धारा प्राप्त करने के लिए अधिक संख्या में सोलर सेलों को जोड़ा जाता है जिसे सोलर पैनल कहते है। चित्रानुसार सोलर पैनल द्वारा विद्युत मोटर प्रकाश की ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। प्रायः सौर पैनल द्वारा उत्पादित विद्युत का उपयोग बैटरी को चार्ज करने के लिए किया जाता है। बैटरी से आवश्यकतानुसार विद्युत का उपयोग बल्ब जलाने एवं रेडियो,टी0वी0 तथा जल पम्प आदि चलाने में किया जाता है। दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ विद्युत उपलब्ध नहीं है,सोलर पैनल का उपयोग विशेष रूप से किया जाता है। 


सौर जल ऊष्मक 


एक कांच के बॉक्स के अन्दर तांबे की ट्यूब लगा दी जाती है। इसकी बाहरी सतह को काला कर दिया जाता है जिससे ऊष्मा का अधिक से अधिक अवशोषण हो सके । सूर्य का प्रकाश इसी ट्यूब पर पड़ता है। इस ट्यूब के एक सिरे से ठण्डा जल प्रवेश करता है तथा दूसरे सिरे से गर्म जल निकलता है। इसका उपयोग अस्पतालों व होटलों में किया जाता है। अन्य डिजाइन के सौरऊष्मक भी विकसित किये गये हैं। ऐसे ही एक सौर- ऊष्मक द्वारा अनाजों, फलों एवं सब्जियों को भी सुखाया जाता है। 


पवन ऊर्जा 


वायु के गतिशील होने से उत्पन्न गतिज ऊर्जा को पवन ऊर्जा कहते हैं। 

वायु में ऐसी संवहनी धाराएँ हैं जो सूर्य द्वारा पृथ्वी के पृष्ठ को असमान रूप से गर्म करने के कारण उत्पन्न होती हैं, जिन्हें पवन कहते हैं। पवन की दिशा तथा चाल पृथ्वी के प्रत्येक स्थान पर वर्ष भर परिवर्तित होती रहती है। लेकिन पृथ्वी के किसी भी स्थान पर सालों साल पवन की चाल एवं दिशा में परिवर्तनों का पैटर्न (क्रम) बहुत कुछ समान या नियत रहता है। प्रायः पवन की चाल पर्वतीय क्षेत्रों में अधिकतम होती है। पवन की चाल समुद्र तथा तटवर्ती क्षेत्रों में भी अधिक होती है। 

वायु के गतिशील होने से उत्पन्न गतिज ऊर्जा को पवन ऊर्जा कहते हैं। इसका उपयोग पवन चक्की के ब्लेडों (पंखुड़ियों) को घुमाने में किया जाता है। पवन चक्की के द्वारा चित्रानुसार जल पम्प और आटा चक्की  चलायी जाती है। अपने देश के तमिलनाडु एवं गुजरात प्रदेशों में पवन ऊर्जा पर आधारित विण्ड मिल फार्म द्वारा विद्युत ऊर्जा का उत्पादन किया जा रहा है। 

आजकल कुछ क्षेत्रों में अनेक पवन चक्कियों के समूहों द्वारा (विण्डमिल) पवन मिल फार्म बनाकर विद्युत का उत्पादन किया जाता है। 


जल ऊर्जा (हाइडल शक्ति या हाइडल पावर) 


बहते हुए जल में गतिज ऊर्जा होती है । इस गतिज ऊर्जा को जल विद्युत संयंत्र द्वारा विद्युत ऊर्जा में बदला जाता है । इस प्रकार बहता हुआ जल,ऊर्जा का स्रोत है । नदी पर बाँध बनाकर अत्यधिक मात्रा में पानी को एकत्रित किया जाता है । कम से कम 10 मीटर की ऊंचाई से चित्रानुसार  जल को टरबाइन की  पंखुड़ियों पर गिराया जाता है जिससे टरबाइन तेजी से घूमने लगती है। टरबाइन के घूमने से उससे जुड़े जनित्र से विद्युत ऊर्जा उत्पन्न की जाती है। विद्युत तारों की सहायता से उत्पन्न विद्युत ऊर्जा को गाँवों, शहरों एवं कस्बों में भेजा जाता है। 

पहाड़ी स्थानों पर जहाँ जल प्रवाह अनवरत रूप से प्राप्त होता है, जल संयंत्र स्थापित करना अधिक उपयोगी होता है। रिहन्द (उ0प्र0), भाखड़ा-नॉगल (पंजाब) एवं टिहरी (उत्तराखण्ड) मे जल द्वारा विद्युत उत्पन्न करने के संयत्र स्थापित किये गये हैं। 


समुद्री ज्वार भाटा से ऊर्जा 


समुद्र तट पर सामान्य तरंगों (लहरों) के अतिरिक्त विशाल सामुद्रिक तरंगें भी आकर टकराती हैं , जो करोड़ों लीटर जल को गति प्रदान करती हैं । इस प्रकार की तरंगें प्रायः दिन में दो बार बनती तथा विलुप्त होती हैं । इन तरंगों को ज्वारभाटा कहते हैं । ज्वार-भाटा के समय तरंगों में अपार गतिज ऊर्जा होती है । इस ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदला जा सकता है । इस प्रकार ज्वार-भाटा भी ऊर्जा का नवीकरणीय स्रोत (पुनः उत्पन्न होने वाला स्रोत) है । इसका उपयोग करके ऊर्जा संकट को कम किया जा सकता है । 


जैविक पदार्थ (जैव मात्रा) ऊर्जा के स्त्रोत 


जीव-जन्तुओं के मलमूत्र, गोबर, कचरा, कृषि उत्पादों के -मिक्सिग टैक गैस निकास अपशिष्ट आदि को जैव मात्रा कहते हैं । इनका विशेष प्रकार के संयंत्र में विघटन कर ऊर्जा के एक स्रोत बायोगैस का उत्पादन किया जाता है। गोबर में संचित रासायनिक ऊर्जा को बायो गैस में बदलने का कार्य गोबर गैस प्लांट में किया जाता है । इसमें मिक्सिंग टैंक में गोबर को जल में मिलाकर पाचक टैंक में डाला जाता है। इससे मेथेन और कार्बन डाइऑक्साइड के मिश्रण युक्त गैस उत्पन्न होती है। इस गैस को गोबर गैस या बायोगैस कहते है । इसके अतिरिक्त इसमें हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S) तथा हाइड्रोजन (H) गैसे भी अल्प मात्रा में बनती है । गैस प्लांट के शेष अपशिष्ट पदार्थ कम्पोस्ट खाद के रूप में प्रयोग किए जाते हैं। 


नाभिकीय ऊर्जा या परमाणु ऊर्जा 


आपने यह पढ़ा है कि किसी परमाणु का द्रव्यमान उसके सघन नाभिक में होता है। इसी में परमाणु की अधिकांश ऊर्जा भी होती है। जब किसी भारी तत्व (यूरेनियम) का नाभिक हल्के (बेरियम तथा क्रिप्टन ) नाभिकों में टूटता है, तो अत्यधिक परिमाण में ऊर्जा मुक्त होती है। इस प्रक्रम को विखंडन कहते हैं। नाभिक के विखण्डन से प्राप्त ऊर्जा को नाभिकीय ऊर्जा कहते हैं। यदि नाभिक के विखण्डन की क्रिया को नियंत्रित न किया जाय तो यह क्रिया तेजी के साथ होती है। इसे विखण्डन की अनियंत्रित अभिक्रिया कहते हैं। इस प्रक्रम में अल्प समय में ही विशाल मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है, जिससे परमाणु बम जैसा विस्फोट हो सकता है। उपयोगी रूप में ऊर्जा उत्पादन के लिए नाभिकीय विखंडन की अभिक्रिया को नियंत्रित करना आवश्यक है। 

आपने नाभिकीय भट्टी का नाम अवश्य बोरान छड़ें सुना होगा। नाभिकीय भट्टी में नियंत्रित दर यूरेनियम छड़े पर परमाणु ऊर्जा प्राप्त होती है जिसका उपयोग विद्युत उत्पादन के लिए नाभिकीय पावर प्लांट में किया जाता है। परमाणु भट्टी में नाभिकीय विखंडन से उत्पन्न ऊष्मा से जल गर्म करके भाप बनायी जाती है। उच्च दाब की भाप से टरबाइन चलाई जाती है जो विद्युत जनित्र से जुड़ी होती है। जनित्र विद्युत उत्पादित कर नाभिकीय ऊर्जा को अन्ततः विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर देता है। परमाणु भट्टी में परमाणु विखण्डन (नाभिकीय विखण्डन) की क्रिया नियंत्रित होती है। नाभिकीय भट्ठी में उत्पन्न नाभिकीय ऊर्जा बहुत अधिक समय तक चलने वाला ऊर्जा का स्रोत है। 

वर्तमान में अपने देश में कलपक्कम (तमिलनाडु), कुडानुकुलम (तमिलनाडु), तारापुर (महाराष्ट्र), रावतभाटा (राजस्थान), कैगा (कर्नाटक), काकरापार (गुजरात) और नरोरा(उ0प्र0) में नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र स्थापित है। 


हमारे जीवन के लिये ऊर्जा की आवश्यकता 


आदिकाल से ही मानव को जीवन निर्वहन के लिये ऊर्जा की आवश्यकता मुख्य रूप से भोजन पकाने के लिये थी। उस समय ऊर्जा का प्रमुख स्रोत लकड़ी था। जैसे- जैसे समय विकसित हुआ ऊर्जा की माँग बढ़ती गई। विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुए अनुसंधानों के कारण जीवन को सुविधाजनक बनाने वाले अनेक संसाधनों, उद्योगों यातयात तथा मनोरंजन के लिये अनेक उपकरणों के उपयोग हेतु ऊर्जा की आवश्यकता होती है |जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होने के कारण खाद्य पदार्थों जैसे- डबलरोटी, बिस्कुट, ठण्डे पेय एवं आइसक्रीम आदि का उत्पादन व्यवसायिक हो गया है। इनको बनाने, डिब्बा बन्द करने, संग्रह एवं वितरण करने पर ऊर्जा का उपयोग किया जाता है। दैनिक जीवन के क्रियाकलापों एवं आवश्यकताओं में भी निरन्तर वृद्धि होने के कारण प्रत्येक परिवार में संसाधनों की वृद्धि हो रही है। संसाधनों के प्रयोग में ऊर्जा की आवश्यकता होती है। 

जनसंख्या और दैनिक क्रियाकलापों में वृद्धि के फलस्वरूप ऊर्जा की माँग निरन्तर बढ़ती जा रही है। 


ऊर्जा संरक्षण 


हमारे जीवन के लिये उपयोगी एवं आवश्यक ऊर्जा की निरन्तर बढ़ती माँग तथा ऊर्जा का उसी के अनुरूप उत्पादन न होने के कारण निकट भविष्य में ऊर्जा संकट विकराल रूप ले सकता है। इस समस्या को कुछ हद तक ऊर्जा के कम एवं संयमित उपयोग तथा ऊर्जा संरक्षण द्वारा कम किया जा सकता है। 

ऊर्जा संरक्षण हेतु निम्नलिखित उपायों को अपनाना चाहिए - 

ऊर्जा अपव्यय की रोकथाम और ऊर्जा बचत की उचित आदतों का ज्ञान ऊर्जा बचत में सहायक हो सकता है। 

ऊर्जा संरक्षण के दृष्टिकोण से परम्परागत (अनवीकरणीय) ऊर्जा स्रोतों का उपयोग यदा-कदा ही करना उपयुक्त होगा। 

घर के विद्युत उपकरण जैसे पंखे, बल्ब, हीटर आदि को अति आवश्यक होने पर ही प्रयोग में लाना चाहिए। आवश्यकता न होने पर इनका उपयोग बन्द रखना चाहिए । 

जहाँ पर सम्भव हो भोजन पकाने में, भोज्य पदार्थों के सुखाने में, पानी को गर्म करने में सौर ऊर्जा का ही प्रयोग करना चाहिए। 

सोलर कुकर से भोजन पकाने पर आवश्यक तत्व भी सुरक्षित रहते हैं। 

प्रकाश उत्पन्न करने के लिए टयूब लाइट,सोडियम वाष्प लैम्प / मरकरी वाष्प लैंप का प्रयोग घरों में तथा सड़क पर करना चाहिए। 

भोजन पकाने के लिए प्रेशर कुकर का प्रयोग करना चाहिए, इससे ऊर्जा की बचत होती है। 

खाना पकाने में मिट्टी के तेल का प्रयोग करते समय अच्छे किस्म के स्टोव का प्रयोग करना उचित है। 

आस-पास के स्थानों के आने जाने के लिए पेट्रोल/डीजल के वाहनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। 

व्यक्तिगत वाहनों के प्रयोग के स्थान पर यात्रा रेलगाड़ी /बस जैसे सार्वजनिक वाहनों से करनी चाहिए। ऐसा करने पर ईधन की बचत होगी। 

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