Wednesday, November 24, 2021

What is Poverty : Absolute Poverty and Relative Poverty | गरीबी क्या है : परम गरीबी और सापेक्ष गरीबी | Economics of Social Sector and Environment

जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं को संतुष्ट करने की अयोग्यता (inability) को गरीबी कहा जाता है। गरीबी को लेकर दो संकल्पनाएँ हैं-'परम' एवं 'सापेक्ष'। परम गरीबी न्यूनतम मानवीय आवश्यकताओं के विचार से जुड़ी है अर्थात् इसका तात्पर्य भोजन और पोषण, वस्त्र, निवास स्थान, रोगव्याधि से बचाव-निदान आदि ऐसी सुविधाएँ प्राप्त करने में असमर्थता से है जो जीवन धारण और शारीरिक स्वस्थता के लिए आवश्यक मानी जाती हैं। इसी कारण से भारत जैसे विकासशील देशों में सापेक्ष गरीबी की अपेक्षा परम गरीबी की संकल्पना सहज . ही नीति निर्माताओं का ध्यान आकर्षित कर लेती है। इस विधि में एक न्यूनतम जीवन स्तर की परिभाषा की जाती है और उस स्तर को पाने में विफल रहे लोगों को गरीब माना जाता है। इस जीवन स्तर को पाने के लिए आवश्यक आय के स्तर को ही गरीबी रेखा कहा जाता है। इस रेखा से निम्न आय पाने वाले गरीब वर्ग का हिस्सा होते हैं, दूसरे शब्दों में, निर्वाह व्यय का स्तर बताने वाली रेखा से नीचे रह गए लोगों को गरीब तथा अन्य को गैर-गरीब के रूप में परिभाषित किया जाता है। भारत में ग्रामीण क्षेत्र में प्रतिव्यक्ति दैनिक कैलोरी उपभोग का स्तर 2400 तथा शहरी क्षेत्र में 2100 को गरीबी रेखा माना गया है। जिस परिवार का मासिक प्रतिव्यक्ति उपभोग व्यय इतनी कैलोरियों की व्यवस्था कर पाने में असमर्थ होता है तो उस परिवार को गरीबी रेखा से नीचे का परिवार माना जाता है। 


गरीबी का सही आंकलन करने के लिए आय के स्थान पर उपभोग को अधिक उपयुक्त माना गया है क्योंकि उपभोग केवल वर्तमान आय नहीं बल्कि पिछली बचतों, संकलित परिसंपत्तियों और ऋणों पर भी निर्भर रहता है किंतु यह न्यूनतम कैलोरी आवश्यकता स्थिर नहीं रहती-यह व्यक्ति के कार्य की प्रकृति के अनुसार बदलती रहती है। उदाहरण के लिए, हाल ही में योजना आयोग द्वारा गठित विशेषज्ञ दल (तेंदुलकर समिति, 2004) ने गरीबी रेखा का निर्धारण, न्यूनतम कैलोरी उपभोग पर करने का सुझाव दिया है। इसका मानना है कि अब व्यक्तियों को पहले की अपेक्षा कम शारीरिक श्रम करना पड़ता है। बाद में बनाए गए एक अन्य अध्ययन दल-रंगराजन विशेषज्ञ दल, 2012 ने गरीबी के निर्धारण हेतु शिक्षा, स्वास्थ्य, निवास और वाहन आदि पर अनिवार्य व्यय को भी गरीबी आंकलन में स्थान देने का आग्रह किया है। इस दल के अनुसार गरीबी अनुपात, पिछले दल के अनुमान से कहीं उच्चतर हो गया था। इस प्रकार, परम गरीबी का तात्पर्य भोजन, स्वास्थ्य, आवास, शिक्षा एवं अन्य मूलभूत सुविधाओं की सुलभता के अभाव से है। 


परम गरीबी का आंकलन अल्प एवं मध्यम कालिक अवधियों के लिए अधिक उपयुक्त रहता है जबकि दीर्घकाल में सापेक्ष गरीबी के विचार का प्रयोग अधिक सार्थक, रहता है। परम गरीबी समाज में आय या उपभोग के आबंटन पर निर्भर नहीं होती, जबकि सापेक्ष गरीबी की संकल्पना इस पर निर्भर रहती है। 


एक सापेक्ष गरीबी रेखा किसी मानक आय के स्थिर अंश के रूप में आय के वितरण का एक स्पष्ट फलन होती है। यह समाज में प्रचलित मानकों के अनुसार गरीबी की व्याख्या करती है। अतः आय के स्तरों के साथ-साथ वह कसौटी या आय सीमा भी बदलती रहती है जिससे नीचे रह गए परिवारों को गरीब माना जाता है। उदाहरण के लिए, हम सापेक्ष गरीबी की कसौटी समाज की माध्यिका आय या फिर औसत आय के 40 प्रतिशत को मान सकते हैं। इस प्रकार के निर्णायक अनुपात में समय के साथ-साथ अंतर आ सकते हैं - किसी एक आय आबंटन विशेष में कसौटी अनुपात किसी अन्य वितरण की कसौटी से नीचे रह सकता है। अत: कहा जाता है कि जिन विकसित देशों में परम रूप से गरीबी का अनुपात नगण्य रह गया हो, उन देशों में सापेक्ष गरीबी का विचार अधिक मान्य होगा। 

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