Wednesday, November 24, 2021

What is INVERTED-U HYPOTHESIS विलोम U अवधारणा क्या है | Economics of Social Sector and Environment

साइमन कुजनेट्स (1955) ने कहा था कि औद्योगीकरण की प्रारंभिक अवस्था में देश में आय की विषमताओं में वृद्धि हो सकती है, किंतु, औद्योगिक प्रगति स्तर में सुधार के साथ ये 'विषमता वृद्धि प्रक्रिया में बदल जाएगी। उन्होंने अपने तर्क के समर्थन में विकसित देशों के अनुभवों का उदाहरण दिया। उनका मत था कि आर्थिक विकास स्तर तथा आय की विषमताओं के मध्य संबंध का निरूपण अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर 'U' को उलट देने से सहज ही हो जाता है। इसी विचार को "विलोम U" अवधारणा कहते हैं। इसे प्रदर्शित करने वाला रेखाचित्र “कुजनेट्स वक्र" कहलाता है। अर्थात् कुजनेट्स के अनुसार, औद्योगीकरण के प्रारंभिक चरण में अर्थव्यवस्था में एक बड़ा संरचनात्मक परिवर्तन होता है, उसी के कारण विषमताओं में वृद्धि होती है। आगे चलकर औद्योगीकरण के एक स्तर विशेष पर ये विषमता अपना चरम स्तर प्राप्त कर लेती है, जिसके बाद उसमें गिरावट आनी आरंभ हो जाती है। 


INVERTED-U HYPOTHESIS




 

कुजनेट्स वक्र आँकड़ों के अध्ययन पर आधारित है। सामान्यतः विषमता का मापन गिनी गुणांक द्वारा किया जाता है। चित्र में एक कृत्रिम "कुजनेट्स वक्र" दर्शाया गया है। जिसके आकार की एक संभावित व्याख्या निम्न है-चूँकि प्रारंभिक विकास चरणों में भौतिक पूँजी में निवेश ही "संवृद्धि का इंजन" होता है। अतः विषमता से संसाधन बचत एवं निवेशकर्ताओं की ओर उपवहन होता है। अधिक प्रगल्भित अर्थव्यवस्थाओं में संवृद्धि का प्रमुख स्रोत मानवीय पूँजी बन जाती है। वहाँ विषमता से शिक्षण का स्तर भी दुष्प्रभावित होता है, क्योंकि गरीब वर्ग अपनी शिक्षा के लिए आवश्यक वित्त नहीं जुटा पाता। 


कुजनेट्स वक्र की अवधारणा अब अनेक अन्य क्षेत्रों पर भी लागू की जा रही है। पर्यावरण उन्हीं में से एक है। कुजनेटस का पर्यावक्र विभिन्न पर्यावनति सूचकों तथा प्रति व्यक्ति आय के बीच संबंध बताता है। आर्थिक संवृद्धि के प्रारंभिक चरणों में पर्यावनति और प्रदूषण में तीव्र वृद्धि होती है, लेकिन प्रति व्यक्ति आय के किसी विशेष स्तर के पश्चात् यह संबंध विपरीत रूप धारण कर लेता है, इससे आगे उच्च आयकारी आर्थिक संवृद्धि के परिणामस्वरूप पर्या-उन्नयन होता है और पर्यावनति प्रक्रिया बदल जाती है। अन्य शब्दों में, पर्यावरणीय प्रभाव भी प्रति व्यक्ति आय के विलोम U आकार का वक्र निर्मित करते हैं। सामान्यतः इस कार्य के लिए पर्या-सूचकों के लघुगणकों को आय के लघुगणकों के वर्गीय फलन का आकार देते हैं। 


इस अवधारणा का सत्यापन सम-सामयिक एवं काल श्रेणीबद्ध आँकड़ों के आधार पर विभिन्न देशों/क्षेत्रों के बीच आय की असमानता ज्ञात करने के लिए भी किया जा सकता है। 


अनेक अध्येताओं ने विलोम U अवधारणा के प्रभावों की समीक्षा की है। पहली बात तो यह उच्च स्तरीय विषमता के कारण परम विपन्नता की वृद्धि के माध्यम से स्वास्थ्य, शिक्षा एवं पोषण आदि पर दुष्प्रभावों और मानवीय पूँजी की न्यून गुणवत्ता से जुड़ी है। दूसरे, विषमता से समाज के एक सूक्ष्म अंश मात्र का लाभान्वित होना, सामाजिक-राजनीतिक तनाव में वृद्धि करके दीर्घकालीन विकास संभावनाओं को कुंठित कर सकता है। फिर तो आर्थिक-राजनीतिक शक्तियों के "पारस्परिक" संबंधों के कारण दीर्घकालिक रूप से आय के पुनः वितरण में सहायक नीतियों की रचना करना भी कठिन हो जाता है। 


पिछले कुछ वर्षों में विकसित एवं विकासशील देशों में आय की विषमताओं में वृद्धि देखने को मिली है। अतः इस अवधारणा के कुछ नीतिगत निहित अर्थ प्रतीत होते हैं। विषमता और गरीबी मिलकर स्वास्थ्य के स्तर, पोषण और शिक्षा के साथ-साथ जीवन स्तर में भी गिरावट का कारण बन जाती हैं - ये निश्चित ही सामाजिक एवं राजनीतिक संघर्ष का आधार बन सकती हैं। इससे किसी भी देश के भावी विकास की क्षमता में बाधा पड़ सकती है। 

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