समाज के सदस्यों के बीच आय के बँटवारे में गैर-बराबरी को ही विषमता कहा जाता है। आय की विषमता आर्थिक समस्या से कहीं अधिक एक सामाजिक समस्या है। यह गरीबी निवारण में बाधक होकर आर्थिक संवृद्धि की प्रक्रिया को ही धीमी कर देती है। आय क्रम के निम्न पायदान के परिवार शिक्षा एवं स्वास्थ्य में उपयुक्त स्तर पर निवेश नहीं कर पाते, इससे उनके आय अर्जन सामर्थ्य में समुचित वृद्धि नहीं हो पाती। समाज उनकी मानवीय पूँजी में सुधार के लाभों से वंचित रह जाता है। इतना ही नहीं, विषमता के कारण राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप देश का संस्थागत ढाँचा भी कमजोर पड़ सकता है।
गरीबी की ही भाँति विषमता के भी आयाम होते हैं-अवसर और परिणाम। अतः सार्वजनिक नीति निर्धारण की दृष्टि से अवसरों की विषमता का परिणामों की विषमता से पृथक् निरूपण करना अनिवार्य हो जाता है। व्यक्ति के अपने नियंत्रण से बाहरी कारणों (लिंग, जाति, अभिभावकों की शिक्षा के स्तर आदि) के आधार पर अवसरों की विषमता का जन्म होता है। ये विषमताएँ समाज के संस्थागत ढाँचे की त्रुटियों का परिणाम होती हैं और इनका निवारण भी सकारात्मक नीति उपागमों से ही संभव है। परिणाम की विषमता मूलतः अवसरों का लाभ उठा पाने में मानवीय प्रयासों की विषमता है। कुछ विषमता तो बाजार प्रणाली की स्वाभाविक कार्य पद्धति का परिणाम हो सकती है किंतु विषमता का एक बड़ा घटक तो अवसरों की विषमता द्वारा ही निर्मित होता है। उदाहरण के लिए, यदि बच्चे के माता-पिता गरीब एवं अशिक्षित हैं. तो वे अपनी संतान को भी शिक्षित कर पाने में असमर्थ रह सकते हैं।
अवसरों की विषमताओं के निवारण की सकारात्मक नीतियाँ रचकर सरकार विभिन्न क्षेत्रकों, क्षेत्रों, स्थानों, लिंगों एवं सामाजिक वर्गों की विषमताओं के निवारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। ऐसी नीतियों का ध्येय संवृद्धि प्रक्रिया को अधिक समाहनकारी एवं रोजगारोन्मुखी बनाते हुए मानवीय पूँजी के निर्माण का लक्ष्य बनाना होगा। समाज के सीमांत वर्गों के मानवीय पूँजी आधार को उनके शिक्षा-स्वास्थ्य के स्तर में वृद्धि के लिए अधिक निवेश द्वारा, प्रभावी सामाजिक सुरक्षा प्रदान करते हुए और उत्पादक आय एवं रोजगार के अवसरों की रचना द्वारा सुदृढ़ किया जा सकता है।
विषमता मापन की विधियाँ Methods of Inequality Measurement
विषमता भी गरीबी की भाँति एक बहुआयामी संकल्पना है और इसके विभिन्न आयाम भी आपस में संबंधित हैं। उदाहरण के लिए, किसी आय और धन की विषमता उसके सदस्यों के बीच जीवन स्तर, आहार एवं पोषण, आवास, मूलभूत सुविधाओं तक पहुँच, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं भौतिक कुशल मंगल आदि की विषमताओं का सृजन कर सकती है। आय की विषमता किसी निश्चित आय आबंटन में विभिन्न परिवारों की सापेक्ष अवस्थिति' की जानकारी देती है। परम गरीबी के मापक की भाँति विषमता का मापक परिवारों की संख्या से प्रभावित नहीं होता क्योंकि यह तो एक आबंटन विशेष में किसी परिवार की सापेक्ष स्थिति का मापन करता है। उच्च आय वर्ग से निम्न आय वर्ग को आय का अंतरण विषमता का निवारण कर सकता है। विषमता के कुछ महत्त्वपूर्ण मापक निम्नलिखित हैं-
(1) लॉरेंज वक्र Lorenz Curve
आय असमानता मापने के लिए लॉरेंज वक्र का उपयोग किया जाता है। प्रो. लॉरेंज ने इस वक्र का प्रतिपादन किया था, इसलिए उन्हीं के नाम पर इसको लॉरेंज बहुत ही समूह में व्याप्त वक्र की संज्ञा दी गई।
लॉरेंज वक्र बनाने के लिए जनसंख्या को विभिन्न आय-वर्गों में बाँटते हैं, इसके लिए प्रत्येक आय वर्ग में सम्मिलित व्यक्तियों का कुल जनसंख्या में प्रतिशत ज्ञात कर लिया जाता है। इसके पश्चात् इन प्रतिशतों की संचयी आवृत्ति (Cumulative Frequency) ज्ञात कर ली जाती है। आय वर्ग के संचयी प्रतिशत तथा जनसंख्या के संचयी प्रतिशत को लेकर वक्र का निर्माण किया जाता है, जिसे लॉरेंज वक्र कहते हैं। यह एक प्रकार से क्रमित व्यक्तियों के संचयी अनुपात का उनकी आय के संचयी अनुपातों के साथ प्रेक्षण दर्शाने वाला फलन है। आय-वर्ग के कुल प्रतिशत, अर्थात् 100 प्रतिशत तथा जनसंख्या के कुल प्रतिशत को मिलाकर जो रेखा बनती है उसे समान वितरण रेखा (Line of Equal Distribution) कहते हैं। यह रेखा बताती है कि वितरण में कोई असमानता नहीं है। लॉरेंज वक्र समान वितरण रेखा से जितनी अधिक दूरी पर स्थित होगा, यह उतना ही अधिक असमानता को प्रकट करेगा।
(2) गिनी गुणांक Gini Coefficient
सांख्यिकी आधार पर आय की असमानता की सही डिग्री का माप गिनी गुणांक द्वारा किया जाता है। असमानता के इस माप का प्रतिपादन इटली के G. Gini ने सन् 1912 में किया था। इसका मान 0 से 1 के बीच रहता है। यदि गिनी गुणांक मान 'शून्य' है, तो समाज के सभी व्यक्तियों की आय समान मानी जाएगी। इसके विपरीत यदि गिनी गुणांक का मान 1 है तो इसका अर्थ है कि समाज के किसी वर्ग विशेष के पास देश की समस्त आय केंद्रित है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि गिनी गुणांक का मान जितना ज्यादा एक के करीब होगा समाज में आर्थिक असमानता उतनी अधिक होगी और इसके विपरीत गिनी गुणांक का मान जितना ज्यादा शून्य के करीब होगा समाज में आर्थिक असमानता उतनी ही कम होगी अर्थात् व्यक्तियों की आय में काफी समानता होगी। इस प्रकार गिनी गुणांक हमारे लॉरेंज वक्र की जानकारी को एक निश्चित अंक द्वारा अभिव्यक्त कर देता है।
विषमता मापको के पांच आवश्यक गुण Axioms of Inequality Measures
(1) अंतरण का सिद्धांत Principle of Transfers
इस सिद्धांत को पौगू-डाल्टन अंतरण सिद्धांत के नाम से भी उत्तर- विषमता मापकों के पाँच आवश्यक गुण बताए गए हैं, जो निम्नलिखित हैं- जाना जाता है। इसके अनुसार प्रगतिशील स्वरूप के अंतरण से विषमता मापक के मान में कमी आनी चाहिए और विपरीत अर्थात् प्रतिगामी अंतराल से इस मापक के मान में वृद्धि होनी चाहिए अर्थात् अमीर से गरीब की तरफ आय के अंतरण से विषमता में कमी आती है तथा गरीब से अमीर की तरफ आय के अंतरण से विषमता अधिक गंभीर रूप प्राप्त कर लेती है।
(2) जनसंख्या या समष्टि का सिद्धांत Principle of Population
यह सिद्धांत आग्रह करता है कि यदि मूल जनसंख्या के सभी अभिलक्षणों को अपरिवर्तित रखते हुए उसे बहुगुणित करें तो विषमता का मापक अपरिवर्तित रहेगा।
(3) पैमाने की स्थिरता का सिद्धांत Principle of Scale Invariance
इस सिद्धांत का तात्पर्य है कि सभी परिवारों की आय में एक ही अनुपात में परिवर्तन से विषमता मापक के मान पर कोई प्रभाव नहीं होगा। इससे सुनिश्चित होता है कि विषमता विशुद्ध रूप से एक सापेक्ष विचार है जो वितरण के आकार से निरपेक्ष रहती है।
(4) विभाज्यता का सिद्धांत Principle of Translation Invariance
यह सिद्धांत सुनिश्चित करता है कि विषमता का समष्टि के समूहों, आय के स्रोतों या फिर किसी अन्य आयाम के अनुसार विभाजन संभव होगा। इसका अर्थ है कि समग्र स्तर की विषमता और उसके घटकों के बीच संबंध संगतिपूर्ण होते हैं।
(5) अनुवृत्ति स्थिरता का सिद्धांत Principle of Decomposability
इस सिद्धांत के अनुसार सभी परिवारों की आय में एक समान आय का योग या घटा करने अर्थात् आय मानों के उद्गम बिंदु को परिवर्तित करने का भी विषमतामापी पर कोई प्रभाव नहीं होगा। उदाहरण के लिए, प्रत्येक परिवार की आय में ₹100 की वृद्धि (या कमी) से उस समाज में विषमता का सूचक पूर्ववत् बना रहेगा।
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