अति सूक्ष्न वस्तुओं को देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी, अर्थात माइक्रोस्कोप का उपयोग किया जाता है। इसमें वस्तु को सूक्ष्मदर्शी के काफी पास रखते हैं जिससे आँख पर उसका बड़ा प्रतिबिंब बनता है। धरती पर खड़े रहकर चंद्रमा की सतह पर बने गड्ढों को देखने के लिए हम सूक्ष्मदर्शी का उपयोग नहीं कर सकते। इस प्रकार की दूरस्थ वस्तुओं को स्पष्टता के साथ देखने के लिए हमें लेंसों के अलग किस्म के संयोजन की आवश्यकता होती है जिसे हग टेलीरकोप, दूरदर्शी या दूरबीन कहते हैं। यों तो दूरबीन अनेक प्रकार की होती है, पर हम यहाँ तीन विशिष्ट प्रकार की दूरबीनों का वर्णन करेंगे।
(a) खगोलीय दूरबीन (Astronomical telescope)
ये दूरबीन सामान्यतः आकाशीय पिंडों को देखने के लिए उपयोग में लाई जाती है। ये पिंड वैसे तो आकार में बहुत बड़े होते हैं, लेकिन धरती से बहुत दूर होने के कारण आँख पर इनके द्वारा बननेवाला कोण बहुत छोट होता है और हम इन पिंडों की बारीकियों को स्पष्ट रूप से नहीं देख पाते हैं।
चित्र में खगोलीय दूरबीन द्वारा प्रतिबिंब बनने की प्रक्रिया दिखाई गई है। इसमे भी दो लेंस-समूह होते हैं। वस्तु की ओर के लेंस-सगृह को अभिदृश्यक तथा आँख की ओर के लेंस-समूह को नेत्रिका कहते है। चित्र में इन दोनों लेंस-समूहों के अक्ष एक ही रेख पर दिखाए गए हैं। चित्र में अभिदृश्यक तथा नेत्रिका एक-एक उत्तल लेंस के रूप में दिखाए गए है। अभिदृश्यक का आकार बड़ा लिया जाता है ताकि यह दूरस्थ वस्तु से आते प्रकाश के बड़े भाग को दूरबीन में भेज सके। नेत्रिका का आकार अपेक्षाकृत काफी छोटा होता है। अभिदृश्यक की फोकस-दूरी भी नेत्रिका को फोकस-दूरी से कई गुना अधिक होती है। अभिदृश्यक एक चौड़ी नली के अंदर उसके एक किनारे पर लगा होता है। नेत्रिका लेंस एक दूसरी नली में फिट होता है। यह नली पेचों की सहायता से अभिदृश्यक की नली के अंदर आगे-पीछे खिसकाई जा सकती है ताकि अभिदृश्यक तथा नविका के बीच की दूरी को बदला जा सके।
मान लें, दूरबीन को एक दूर की वस्तु PQ की ओर घुमाकर रखा गया है। मान लें बिंदु P टेलीस्कोप के अक्ष पर है तथा बिंदु अक्ष से ऊपर कुछ ऊँचाई पर है। बिंदु P से आनेवाली किरणें अक्ष के समानांतर होंगी और आभदृश्यक के फोकस P' पर संसृत होंगी। इस तरह उस बड़े, किंतु टूरस्थ पिंड का वास्तविक तथा उलटा प्रतिबिंब P'Q' बनेगा। नेत्रिका इस प्रतिबिंब P'Q' का बड़ा व आभासी प्रतिबिंब बनाती है जो आँखों द्वारा देखा जाता है।
सामान्य समायोजन की स्थिति में नेत्रिका को ऐसी जगह रखते हैं ताकि P'Q' इसके फोकस तल में बने। ऐसी स्थिति में PQ के किसी बिंदु से आती प्रकाश की किरणें नेत्रिका से गुजरकर पुनः समानांतर हो जाएँगी। आँख इन किरणों को रेटिना पर संसृत कर लेगी। इस समय सिलियरी मांसपेशियाँ न्यूनतम संपीडन की अवस्था में रहती हैं। नेत्रिका को प्रथम प्रतिबिंब P'Q' की ओर थोड़ा खिसकाने से अंतिम प्रतिबिंब P"Q" को आँखों के और नजदीक लाया जा सकता है। अधिक कोणीय आवर्धन के लिए P"Q" को स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी D पर बनना चाहिए।
(b) पार्थिव दूरबीन (Terrestrial telescope)
खगोलीय दूरबीन में अंतिम प्रतिबिंब वस्तु के सापेक्ष उलटा बनता है। खगोलीय पिंडों को देखने में उलटा प्रतिबिंब विशेष कठिनाई उत्पन्न नहीं करता है, परंतु यदि आप धरती पर ही दूर की वस्तुओं को आवर्धित करके देखना चाहते हैं, तो प्रतिबिंब का उलटा होना कठिनाई उत्पन्न कर सकता है। कल्पना करें कि आप दर्शक दीर्घा में बैठकर दूरबीन की सहायता से क्रिकेट मैच देख रहे हों और दूरबीन उलटे प्रतिबिंब बना रही हो। आवर्धन के कारण आप गेंद के टर्न और ब्रेक को तो अच्छी तरह देख पाएँगे, लेकिन खिलाड़ी मैदान पर खड़े होने के बजाय मैदान से उलटे लटके हुए नजर आएँगे। इस कठिनाई से बचने के लिए धरती पर दूर की वस्तुओं को देखने के लिए पार्थिव दूरबीन का उपयोग किया जाता है। खगोलीय दूरबीन तथा पार्थिव दूरबीन में सिर्फ एक ही उत्तल लेंस का फर्क है, जो इसके अभिदृश्यक तथा नेत्रिका के बीच रखा जाता है।
चित्र में एक पार्थिव दूरबीन द्वारा दूर की वस्तु के प्रतिबिंब बनने की प्रक्रिया दिखाई गई है। अभिदृश्यक तथा नेत्रिका के बीच f फोकस-दूरी का एक उत्तल लेंस L लगाया गया है। अभिदृश्यक से इसकी दूरी इतनी रखी जाती है कि अभिदृश्यक का फोकस तल इससे 2f दूरी पर हो। दूर की वस्तु PQ का प्रथम प्रतिबिंब P'Q' इस लेंस L से 2f दूरी पर बनता है जो इस लेंस के लिए वस्तु का काम करता है। लेंस L, P'Q' का वास्तविक, तथा बराबर आकार का प्रतिबिंब P"Q" बनाता है। इस तरह P"Q" वस्तु PQ की तुलना में सीधा हो जाता है। नेत्रिका को उपयुक्त स्थान पर रखकर P"Q" का आवर्धित एवं अंतिम प्रतिबिंब P'"Q'" बनाया जाता है जिसे आँखों द्वारा देखा जाता है।
बीच के लेंस L का काम सिर्फ प्रथम प्रतिबिंब P'Q' को उलटा कर उतना ही बड़ा दूसरा प्रतिबिंब P"Q" बनाना है। अतः, इसके द्वारा उत्पन्न आवर्धन को हम -1 कह सकते हैं।
(c) गैलीलीय दूरबीन (Galilean telescope)
आकाशीय पिंडों का दूरबीनों द्वारा अध्ययन आधुनिक विज्ञान की प्रमुख विधाओं में से एक है। इस परंपरा का प्रारंभ संभवतः गैलीलियो ने स्वनिर्मित दूरबीन के साथ लगभग 400 वर्ष पहले किया था। यद्यपि गैलीलियो की दूरबीन की आवर्धन क्षमता एवं गुणवत्ता आज की दूरबीनों की तुलना में बहुत ही कम थी, परंतु उससे प्राप्त आकाशीय पिंडों की जानकारी ने विज्ञान एवं धर्म दोनों जगतों में भारी उथल-पुथल मचा दी थी।
गैलीलियो की दूरबीन तथा ऊपर वर्णित खगोलीय दूरबीन की रचना में मुख्य अंतर नेत्रिका लेंस का है। गैलीलीय दूरबीन में यह लेंस उत्तल नहीं होकर अवतल होता है।
चित्र में एक गैलीलीय दूरबीन द्वारा दूर की वस्तु के प्रतिबिंब के बनने की प्रक्रिया को दिखाया गया है। इसमें अभिदृश्यक के रूप में एक उत्तल लेंस तथा नेत्रिका लेंस के रूप में एक अवतल लेंस को दिखाया गया है। दोनों लेंसों के अक्ष एक ही हैं। दूरबीन को दूर की एक वस्तु PQ की ओर घुमाकर रखा गया है। बिंदु P अक्ष पर है जबकि Q उससे ऊपर है। अभिदृश्यक द्वारा PQ का प्रतिबिंब P'Q' अभिदृश्यक के फोकस तल में बनता है, परंतु P'Q' के पहले ही ये किरणें नेत्रिका लेंस (अवतल) पर पड़ती हैं और अंतिम प्रतिबिंब P"Q" बनाती हैं। इस लेंस का स्थान इस तरह व्यवस्थित किया जाता है ताकि अंतिम प्रतिबिंब अपेक्षित स्थान पर बने। सामान्य समायोजन के लिए अंतिम प्रतिबिंब अनंत पर बनता है। यदि यह अंतिम प्रतिबिंब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बनाया जाए, तो कोणीय आवर्धन अधिकतम होता है।
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