दूरबीन एवं सूक्ष्मदर्शी किसी वस्तु का बड़ा प्रतिबिंब आँखों को दिखाते हैं। प्रतिबिंब के बड़ा होने मात्र से ही वस्तु की छोटी-छोटी रचनाएँ साफ दिखें यह आवश्यक नहीं है। आप जानते हैं कि विवर्तन (diffraction) के कारण उत्तल लेंस द्वारा एक बिंदुस्रोत का प्रतिबिंब बिंदु के आकार का नहीं बनकर एक डिस्क के आकार का बनता है जिसकी त्रिज्या,
r = 1.22 λ.v/D
होती है, जहाँ λ प्रकाश का तरंगदैर्घ्य, D लेंस का व्यास तथा v प्रतिबिंब की लेंस से दूरी है।
यदि वस्तु के दो बिंदु इतने पास-पास हों कि उनके विवर्तन डिस्क एक-दूसरे पर काफी कुछ आच्छादित (overlap) हों, तो हम उन बिंदुओं को अलग-अलग नहीं देख सकते। दूरबीन या सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता यह बताती है कि हम कितनी कम दूरी पर स्थित बिंदुओं को अलग-अलग देख सकते हैं।
दूरबीन या दूरदर्शी की विभेदन क्षमता
दूरबीन से प्रायः खगोलीय पिंडों को देखा जाता है। ये पिंड एक- दूसरे से करोड़ों मील दूर हो सकते हैं, लेकिन इनसे आनेवाले प्रकाश की दिशा लगभग एक ही हो सकती है। चित्र में दो तारे S₁ तथा S₂ दिखाए गए हैं, जिन्हें एक दूरबीन द्वारा देखने का प्रयास किया जा रहा है। इन दोनों के प्रथम प्रतिबिंब अभिदृश्यक के फोकस तल पर बन रहे हैं। ये प्रतिबिंब विवर्तन डिस्क के रूप में हैं। S₁ से आते प्रकाश की दिशा तथा S₂ से आते प्रकाश की दिशा आपस में dθ कोण बनाती है। प्रेक्षक के लिए इन तारों के बीच dθ का कोणीय अंतराल (angular separation) है। यदि इनके विवर्तन डिस्कों के केंद्र एक-दूसरे से x दूरी पर हों, तो चित्र से,
इस विवर्तन डिस्कों की त्रिज्या,
r = 1.22λf/a
जहाँ λ प्रकाश का तरंगदैर्घ्य तथा a अभिदृश्यक का व्यास है। ये डिस्कें अलग-अलग दिख सकती हैं यदि x >r हो, अर्थात
fdθ>1.22λf/a
या dθ>1.22λ/a
कोणीय अंतराल के इस न्यूनतम मान को दूरबीन की विभेदन सीमा (resolution limit or resolution) कहते हैं तथा इसके व्युत्क्रम को विभेदन क्षमता (resolving power) कहते हैं। अतः
विभेदन क्षमता = a/1.22λ
दूरबीन की विभेदक क्षमता मुख्यतः अभिदृश्यक के व्यास पर ही निर्भर करती है। व्यास को बड़ा रखने पर विभेदन क्षमता भी अधिक होती है। साथ ही व्यास अधिक होने से अभिदृश्यक अधिक प्रकाश को भी ले पाता है और प्रतिबिंब अधिक तीव्रता का (brighter) बनता है।
विभेदन क्षमता तरंगदैर्घ्य के व्युत्क्रमानुपाती होता है, अर्थात कम तरंगदैर्घ्य के प्रकाश का प्रयोग करने से अधिक विभेदन क्षमता प्राप्त होगी।
सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता
सूक्ष्मदर्शी से हम उसके काफी पास रखी (फोकस-दूरी से थोड़ा अधिक) वस्तु को बारीकी से देखना चाहते हैं। यहाँ विभेदन सीमा Δd वस्तु के दो बिंदुओं के बीच की न्यूनतम दूरी को कहते हैं, जिसे सूक्ष्मदर्शी अलग-अलग दिखा सकता है। यहाँ भी अभिदृश्यक का व्यास बढ़ाने से विभेदन सीमा घटती है और विभेदन क्षमता बढ़ती है, अर्थात आप कम दूरी के बिंदुओं में विभेद कर पाते हैं। इसी प्रकार तरंगदैर्घ्य को घटाने से विभेदन क्षमता बढ़ जाती है।
सूक्ष्मदर्शी में तरंगदैर्घ्य घटाने का एक तरीका है कि वस्तु तथा अभिदृश्यक के बीच कोई पारदर्शी पदार्थ भर दिया जाए। इस काम के लिए विशेष प्रकार के तेल आते हैं जिनका अपवर्तनांक 1.52 तक होता है। आप जानते हैं कि निर्वात या हवा में जिस प्रकाश का तरंगदैर्घ्य λ होता है, n अपवर्तनांक वाले माध्यम में उसी का तरंगदैर्घ्य λ/n होता है।
यदि लेंस की त्रिज्या वस्तु पर कोण बनाए , प्रकाश का निर्वात में तरंगदैर्घ्य λ हो और वह n अपवर्तनांक वाले माध्यम में डुबाया हुआ हो, तो विभेदन सीमा,
Δd = λ/(2n sinθ)
होती है। विभेदन क्षमता इसके व्युत्क्रम को कहते हैं। अतः,
विभेदन क्षमता = 2n sinθ/λ
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