निर्वात (vacuum) में प्रकाश की चाल भौतिकी के मूल स्थिरांकों में से एक है। इस चाल के बारे में सबसे रोचक तथ्य यह है कि इसे किसी भी जड़त्वीय फ्रेम से नापें, इसका मान एक ही रहता है। भले ही दो फ्रेम एक-दूसरे के सापेक्ष चल रहे हों, प्रकाश की किसी तरंग की चाल दोनों ही फ्रेमों में एक ही होगी। यही नहीं, किसी भी पदार्थ को या किसी भी सूचना को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने की चाल निर्वात में प्रकाश की चाल से अधिक नहीं हो सकती। प्रकाश की चाल के इन विशेष गुणों ने स्थान (space) एवं समय की हमारी समझ को पूरी तरह से बदल दिया है और आइंस्टाइन द्वारा प्रतिपादित विशिष्ट सापेक्षता के सिद्धांत प्रकाश की चाल की इन्हीं विशेषताओं पर आधारित है।
वर्ष 1983 में प्रकाश की चाल को एक मूलभूत स्थिरांक के रूप में स्वीकार किया गया और इसका मान 299,792,458 m/s निर्धारित कर दिया गया। साधारणतः इस स्थिरांक को 'c' संकेत द्वारा लिखा जाता है। वस्तुतः, अब लंबाई की परिभाषा इस चाल के पदों में दी जाती है। प्रकाश 1/299,792,458 सेकंड में निर्वात में जितनी दूरी चलता है, उसे ही आधिकारिक रूप से 1 मीटर (m) कहते हैं। अतः, यदि हम एक बिंदु A से चलकर दूसरे बिंदु B तक पहुँचने में प्रकाश द्वारा लिए गए समय का मापन करते हैं, तो हम प्रकाश की चाल नहीं निकाल रहे होते, बल्कि A से B तक की दूरी नाप रहे होते हैं।
परंतु, वर्ष 1983 के पहले ऐसा कुछ नहीं था। सत्रहवीं शताब्दी में जब न्यूटन, गैलीलियो जैसे वैज्ञानिकों ने गति-संबंधी तमाम नियमों की खोज की, तो दूरी, समय आदि आज की तरह अत्यंत शुद्धता से परिभाषित भी नहीं थे और न ही इसकी आवश्यकता थी, क्योंकि मापन करने के उपकरण स्वयं भी बहुत शुद्ध परिमाण नहीं दे सकते थे। फिर भी वैज्ञानिकों ने प्रकाश की चाल नापने के गंभीर प्रयास प्रारंभ कर दिए थे।
प्राचीन सभ्यताओं में विज्ञान की अनेक जानकारियाँ धर्मशास्त्रों में वर्णित सूत्रों में छुपी मिलती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि अनेक सहस्राब्दियों पूर्व भारत में प्रकाश की चाल की जानकारी यहाँ के विद्वानों को थी। ऋग्वेद के एक श्लोक (I, 50-4) की व्याख्या करते हुए व्याख्याकार आचार्य सायण (14वीं शताब्दी) ने लिखा है
“योजनानाम् सहस्र द्वै द्वै शते द्वै च योजने,
ऐकेन निमिषार्द्धन क्रमण नमोस्तुते।"
उपर्युक्त श्लोक में उसके प्रति अपनी श्रद्धा एवं नमन प्रस्तुत किया गया है जो आधे निमिष में दो हजार दो सौ दो योजन चलता है। योजन प्राचीन भारत में लंबाई की एक सामान्य व्यावहारिक इकाई हुआ करती थी। एक योजन = 4 कोस तथा 1 कोस = 8000 गज और 1 गज = 0.9144 मीटर (m)। योजन एवं कोस अभी भी भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलन में हैं। निमिष की परिभाषा भी कई ग्रंथों में मिलती है। श्रीमद्भागवत महापुराण (II, 11-3 से 10) में दिए गए वर्णन के अनुसार 15 निमिष = 1काष्ठ, 15 काष्ठ = 1 लघु, 30 लघु = 1 मुहूर्त और 30 मुहूर्त = 1 दिवारात्रि (24 घंटे)। इन संख्याओं की सहायता से जब 2202 योजन प्रति आधे निमिष को SI मात्रकों में बदलेंगे तो दो सार्थक अंकों तक इसका मान 3.0 x 10° m/s बनता है जो वर्तमान काल में स्वीकृत प्रकाश के वेग के (दो अंकों तक) बिलकुल बराबर है। यह शुद्ध संयोग है या किसी वैज्ञानिक शोध द्वारा प्राचीन भारत में प्रकाश की चाल बड़ी शुद्धता के साथ प्राप्त की गई थी, वह विद्वानों के द्वारा खोज का विषय है। इस श्लोक का उल्लेख जी. वी. राघवराव, सुभाष काक आदि अनेक विद्वानों ने अपनी पुस्तकों एवं शोध लेखों में किया है।
आधुनिक युग में उपलब्ध जानकारी के अनुसार, प्रकाश की चाल नापने का प्रयास गैलीलियो ने वर्ष 1638 में किया था। उनकी विधि बिलकुल सरल थी। गैलीलियो एवं उनके एक सहायक एक-एक लालटेन लेकर दो पहाड़ियों पर खड़े हो गए। प्रारंभ में दोनों ने अपनी-अपनी लालटेन पर पर्दा लगाकर उनकी रोशनी को रोक रखा था। प्रयोग की योजना के अनुसार, गैलीलियो अपनी लालटेन से पर्दा हटाते और उसी के साथ अपनी घड़ी (पानी की घड़ी) चालू कर देते। जैसे ही उनका सहायक इस लालटेन की रोशनी को देखता, वह अपनी लालटेन से पर्दा हटा देता। इस लालटेन की रोशनी जैसे ही गैलीलियो को दिखती, वे अपनी घड़ी से समय की गणना कर लेते। इतने में प्रकाश ने गैलीलियो से सहायक तक तथा सहायक से गैलीलियो तक की दूरी तय की होती। इस दूरी तथा मापे गए समय से गैलीलियो प्रकाश की चाल निकालना चाहते थे।
परंतु, यह पूरी योजना कामयाब नहीं हो सकी। प्रकाश की चाल इतनी अधिक है कि एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी तक रोशनी को जाने में शायद एक सेकंड के एक लाखवें हिस्से या उससे भी कम समय लगे। इतने कम समय में लालटेन को खोलने और ढंकने जैसी क्रियाएँ मनुष्य के लिए संभव नहीं है।
प्रकाश की चाल के पहले सफल मापन का श्रेय डेनमार्क के खगोलशास्त्री Ole Christensen Roemer को दिया जाता है। उन्होंने यह मापन वर्ष 1675 में वृहस्पति ग्रह के चंद्रमाओं के अध्ययन के आधार पर किया था। अपनी गणनाओं में उन्होंने प्रकाश की चाल 2.1 x 10 m/s प्राप्त की जो अपने समय का काफी हद तक अच्छा मापन कहा जा सकता है। वर्ष 1728 में ब्रिटिश खगोलशास्त्री James Brodley ने पृथ्वी की गति के कारण तारों की स्थिति में आभासी परिवर्तन के आधार पर प्रकाश की चाल की गणना की और बहुत ही नजदीकी मान 301,000 km/s प्राप्त किया।
शुद्ध रूप से पार्थिव उपकरणों के बीच प्रकाश को चलाकर उसकी चाल मापने का सफल प्रयोग सर्वप्रथम फ्रेंच वैज्ञानिक Armand Hippolyte Louis Fizeau ने वर्ष 1849 में किया। फ्रांस के ही वैज्ञानिक JB Leon Foucault ने मूलरूप से इसी सिद्धांत का प्रयोग करते हुए उपकरणों में उचित परिवर्तन कर प्रकाश की चाल का और शुद्ध मान वर्ष 1862 में प्राप्त किया। प्रयोगशाला में प्रकाश की चाल नापने की एक अन्य विधि अमेरिका के Albert A Michelson ने विकसित की।
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