जब आप विद्यालय जाने के लिए घर से निकलते हैं, तब आप सड़क पर चलते हैं, अर्थात आप गति की अवस्था में रहते हैं। जब आप स्कूल पहुँचकर अपनी कक्षा में बेंच पर बैठ जाते हैं, तब आप स्थिर हो जाते हैं, अर्थात विराम की अवस्था में आ जाते हैं। सोचिए, चल रही अवस्था और रुकी हुई अवस्था में क्या अंतर होता है। हम कब कहते हैं कि कोई वस्तु चल रही है और कब कहते हैं कि वह रुकी हुई है? आप कह सकते हैं कि यदि समय बीतने के साथ वस्तु का स्थान बदल रहा हो, तो वह चल रही है और यदि उसका स्थान नहीं बदल रहा हो, तो वह विराम में है। पर, इस परिभाषा में थोड़ी सावधानी की आवश्यकता है। मान लें आप रिक्शा पर बैठे हैं और रिक्शाचालक रिक्शा चला रहा है। थोड़ी देर में आप घर से विद्यालय पहुँच गए। इस अवधि में आप रुके हुए थे या चल रहे थे? रिक्शा की गद्दी से या उसके पायदान से आपकी दूरी नहीं बदल रही है। यदि कोई प्राणी सिर्फ रिक्शे को ही देखे, तो उसके अनुसार आपका स्थान नहीं बदल रहा है, आप जहाँ बैठे थे, वहीं बैठे हैं। हम कहते हैं कि आप 'रिक्शा के सापेक्ष विराम' में हैं। परंतु, जमीन पर लगे पेड़ों, दुकानों आदि से आपकी दूरी लगातार बदल रही है। अर्थात, आप जमीन के सापेक्ष चल रहे हैं, अर्थात गतिशील हैं।
आपके टेबुल पर एक पुस्तक पड़ी है। वह विराम में है (रुकी हुई है) या गतिशील है (चल रही है)? टेबुल के सापेक्ष वह विराम में है। परंतु सूरज के सापेक्ष पूरी धरती, साथ में टेबुल और पुस्तक भी गतिशील है। अर्थात, एक ही वस्तु एक ही समय में विराम में भी कही जा सकती है और गति में भी। विराम या गति की बात किसी अन्य वस्तु या वस्तुओं के सापेक्ष ही की जा सकती है, अर्थात विराम या गति हमेशा सापेक्ष होती है।
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