जिस वस्तु (या वस्तुओं) के सापेक्ष हम दूसरे कण के विराम या गति की बात करते हैं, उसे हम निर्देश तंत्र (frame of reference) कहते हैं। जैसे, यदि हम सड़क के सापेक्ष रिक्शा, बस आदि की गति की बात कर रहे हैं तो सड़क एक निर्देश तंत्र हुआ। यदि हम रेलगाड़ी में बैठे हैं और रेलगाड़ी के सापेक्ष अन्य वस्तुओं की गति की बात कर रहे हैं, तो रेलगाड़ी एक निर्देश तंत्र हुई। रेलगाड़ी के निर्देश तंत्र के सापेक्ष ऊपर की बर्थ पर रखा सूटकेस विराम में है, पर शौचालय के लिए जाता हुआ यात्री गतिशील है। साथ ही बाहर के पेड़-पौधे, स्टेशन, सड़क आदि गतिशील हैं। रेलगाड़ी के निर्देश तंत्र में यह कहना बिलकुल उचित है कि 'लखनऊ आ रहा है' या 'हैदराबाद चला गया।
किसी निर्देश तंत्र को बताने के लिए प्रायः उसमें एक-दूसरे पर लंब तीन रेखाएँ ली जाती हैं जिन्हें x-अक्ष, y-अक्ष तथा z-अक्ष कहते हैं। समय नापने के लिए इस निर्देश तंत्र में एक घड़ी भी होनी चाहिए। किसी कण का स्थान (position) बताने के लिए उसके x-, y, z-निर्देशांक बताते हैं। यदि समय बीतने के साथ x, y, z में से कोई भी नहीं बदलता हो, तो कण इस निर्देश तंत्र के सापेक्ष स्थिर है, अर्थात विराम में है। यदि एक भी निर्देशांक समय के साथ बदल रहा हो, तो कण इस निर्देश तंत्र के सापेक्ष गतिशील है।
प्रायः हम धरती के सापेक्ष गति की बात करते हैं। सड़क, मकान आदि सब धरती से जुड़े हैं। बातचीत के संदर्भ से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि हम किस निर्देश तंत्र के सापेक्ष गति की बात कर रहे हैं। सामान्यतः हम मानकर चलते हैं कि निर्देश तंत्र चुन लिया गया है और कण उस निर्देश तंत्र के सापेक्ष एक सरल रेखा पर ही चल सकता है।
No comments:
Post a Comment