लघु वित्तीय बैंक [Small Finance Bank, (SFB)] एक निजी वित्तीय संस्था है जिनका उद्देश्य, वित्तीय समावेशन को और अधिक वित्तीय बनाना है। इसके लिए उन्हें बैंकिंग की मूलभूत क्रियाएँ जैसे खाते में धन-जमा, समाज के उन वर्गों जो बैंकिंग व्यवस्था से अछूते हैं तथा लघु उद्यम इकाइयों को ऋण की सुविधा देना, छोटे और सीमांत किसानों, सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों एवं असंगठित क्षेत्र को अपनी सेवाएँ प्रदान करना परंतु इस प्रक्रिया में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अथवा स्थानीय बैंकों द्वारा लागू उनके आपरेशन-क्षेत्र में बैंकिंग को बढ़ावा देना है।
लघु वित्तीय बैंक, केंद्रीय बजट, 2014-15 की घोषणानुसार (10 जुलाई, 2014) स्थापित होने दे। इसके लिए रिजर्व बैंक ने 27 नवंबर, 2014 को लाइसेंस देने के लिए तथा नियमन संबंधी दिशा-निर्देश जारी किये। 16 सितंबर, 2015 को रिजर्व बैंक ने 10 आवेदकों को सिद्धांततः स्वीकृति प्रदान करके लघु वित्तीय बैंकों की स्थापना का मार्ग सुलभ कर दिया ताकि वित्तीय समावेशन का एजेंडा और आगे प्रतिबंधों से मुक्त, बढ़ाया जा सके।
जिन 10 संस्थाओं को लघु बैंकों के लाइसेंस प्रदान किये गये उनमें शामिल है- ऐ. यू. फाइनेंसियर्स (जयपुर), कैपिटल लोकल एरिया बैंक (जालंधर), दिशा माइक्रो फिन (अहमदाबाद), इक्विटास होल्डिंग्स (चेन्नई) ई एस ए एफ माइक्रो फाइनेंस एण्ड इन्वेस्टमेंट्स (चेन्नई), जनलक्ष्मी फाइनेंशियल सर्विसेज़ (बैंगलुरु) आर जी वी एन (उत्तरपूर्व) माइक्रो फाइनेंस (गुवाहाटी) सूर्योदय माइक्रो फाइनेंस (नवी मुंबई), उज्जीवन फाइनेंशियल सर्विसेज (बैंगलुरु) और उत्कर्ष माइक्रो फाइनेंस (वाराणसी)।
उपरोक्त बैंकों का चयन 72 आवेदकों के बीच में से हुआ। लघु वित्तीय बैंक, अपने ग्राहकों से धन जमा कर सकेंगे और पेमेंट बैंक के विपरीत, लघु वित्तीय बैंक, लोगों को ऋण की सुविधा भी देंगे।
अधिकतर उपक्रम, जिन्हें सिद्धांततः स्वीकृति प्रदान की गयी है, अति-सूक्ष्म वित्तीय संस्थानों की श्रेणी में आते हैं। इसका आशय है कि लघु वित्तीय बैंकों के अधिकतर ग्राहक, छोटे व्यवसाय, छोटे एवं मध्यम उद्योगों से जुड़े लोग हैं। इन बैंकों द्वारा सुरक्षित एव वैधानिक कर्ज, मध्यम और लघु उपक्रमों को दिया जा सकेगा और उन्हें वित्तीय अवस्था का हिस्सा बनाया जा सकेगा।
लघु वित्तीय बैंकों की अनुमति, बैंक-व्यवस्था से वंचित आबादी को बैंकिंग के दायरे में लाने के लिए उठाया गया एक और कदम है। ये बैंक, अपनी सेवाएँ देश के उस वर्ग तक पहुँचाने का प्रयत्न करेंगे जो कि अभी तक इससे वंचित हैं या बैंकिंग की न्यूनतम सेवाओं के दायरे में ही आ पाया है। इस श्रेणी में लघु एवं सीमांत कृषक, अति-सूक्ष्म (micro) एवं लघु उद्योग एवं संगठित क्षेत्र के अन्य उपक्रम आते हैं जिन्हें वहन करने योग्य खर्च पर लघु वित्तीय बैंक अपनी सुविधाएँ देंगे।
भारतीय रिजर्व बैंक ने छोटे बैंक और अन्य विविधता-बैंकों (Differentiated Banks) की लाइसेंस प्रणाली का एक ढांचा तैयार किया है। विविधता-बैंक, एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र या जनसंख्या के विशिष्ट हिस्से को बैंकिंग सुविधाएँ प्रदान करने के लिए हैं। इसके अतिरिक्त स्थानीय क्षेत्र बैंक, पेमेंट बैंक आदि के माध्यम से लघु उद्योग एवं असंगठित क्षेत्रों, कम आय वालों, किसानों तथा घुमंतू श्रमिकों की क्रेडिट और धन प्रेषण आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास किया जायेगा।
लघु वित्तीय बैंकों के लिए रिजर्व बैंक के नियमन (RBI Regulations For Small Finance Banks)
एक प्रकार से लघु वित्तीय बैंक, वाणिज्यिक बैंक की तरह ही हैं, क्योंकि दोनों ही बचत एवं ऋण सुविधाएँ प्रदान करते हैं। फिर भी लघु बैंकों को रिजर्व बैंक द्वारा प्रस्तावित निम्न कड़ी शर्तों का पालन करना पड़ेगा-
- प्रत्येक लघु वित्तीय बैंक अपने नाम में प्रमुखता से 'लघु- वित्तीय बैंक'- लिखेंगे।
- वे अपने लिए सहायक (Subsidiaries) व्यवस्थाएँ, गैर बैंकिंग वित्तीय सेवाओं के लिए नहीं स्थापित कर सकते।
- समायोजित निवल बैंक ऋण (Adjusted net bank credit) का 75%, रिजर्व बैंक द्वारा घोषित प्राथमिकता क्षेत्र में जारी किया जायेगा।
- ऋण का अधिकतम आकार, अकेले व्यक्तियों के लिए पूँजी का 10% और समूहों के लिए 15% से अधिक नहीं होना चाहिए।
- बैंक द्वारा दिये गये ऋण का 50%, कर्ज और एडवांस के रूप में 25 लाख रुपये तक का होना चाहिए।
- लघु बैंक वित्तीय सेवाएं जैसे कि, म्युचुअल फंड यूनिट्स का वितरण, बीमा उत्पाद, पेंशन उत्पाद एवं इसी प्रकार की अन्य सेवाएँ, भारतीय रिजर्व बैंक की पूर्वानुमति से, चला सकते हैं।
- लघु वित्तीय बैंक रिजर्व बैंक के सभी प्रकार के विवेकपूर्ण मानदंडों और नियमन, जोकि व्यावसायिक बैंकों के लिए लागू हैं, उनका पालन करेंगे। इनमें शामिल है, आरक्षित नकदी निधि अनुपात (Cash Reserve Ratio-CRR) अथवा जमा नगद राशि का वह प्रतिशत जो रिजर्व के तौर पर रखा जाय, सांविधिक तरलता-अनुपात (Statutory Liquidity Ratio - SLR) अथवा जमा धनराशि का वह भाग जो सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश हो।
- इन बैंकों की न्यूनतम चुकता पूँजी (Minimum Paid up Capital) 100 करोड़ रुपयों की होगी।
- लघु बैंकों के प्रोत्साहक (Promotors) का पेड अप इक्विटी कैपिटल में योगदान, शुरू में कम-से-कम 40% होगा और धीरे-धीरे इसे बैंक के प्रारंभ होने से 12 वर्षों के अंदर 26% तक ला दिया जायेगा।
- लघु वित्तीय बैंक, पूर्ण रूप से व्यावसायिक बैंक, रिजर्व बैंक की पूर्वानुमति से बन सकते हैं।
- इसके लिए एक मूलभूत आवश्यकता है कि लघु बैंक की शाखाएँ, गैर बैंकिंग इलाकों में कम-से-कम 25% संख्या में हो।
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