Wednesday, May 19, 2021

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम क्या है What is National Food Security Act | Indian Economy

लक्ष्यांकित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) में सर्वाधिक पात्रों को शामिल करना एक बड़ी चुनौती रही है। सरकार ने वितरण प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन के प्रयास किये हैं और इस प्रणाली की मूल 'शामिल करो' की जगह “कितने लोग वंचित हैं" पर ध्यान देना शुरू किया हैं। दूसरे शब्दों में, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की पात्रता वाली जनसंख्या का अधिकाधिक भाग, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के अंतर्गत, शामिल हो, यह प्रयास प्रारंभ किया है। 

लोकसभा द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013, 03 जुलाई, 2013 को पारित किया गया। यह अधिनियम भारत की कुछ आबादी (1.2 बिलियन) का 67% जनसंख्या को रियायती दर पर खाद्यान्न सुलभ होने का अधिकार देता है और इसमें ढिलाई बरतने वाले प्रशासनिक अधिकारियों के विरुद्ध दंड का भी प्रावधान हैं। यूपीए-2 सरकार द्वारा लिये गये इस ऐतिहासिक फैसले से 1.3 ट्रिलियन रुपयों (22 बिलियन डॉलर) की महत्त्वाकांक्षी कल्याणकारी योजना, एक अध्यादेश द्वारा प्रारंभ की गयी जिसके माध्यम से देश की सैकड़ों मिलियन निर्धन जनता को रियायती दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध हो सकेगा।

यह अध्यादेश 10 सितंबर, 2013 को लोकसभा द्वारा मंजूर किया गया जिसका उद्देश्य मानव जीवनचक्र में खाद्यान्न और पोषण की सुरक्षा की जा सकेगी। इसमें यह सुनिश्चित किया जायेगा कि निर्धन जनता को उचित और रियायती मूल्य पर सम्मानपूर्वक जीवन निर्वाह के लिए पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराया जाय। यह कानून ग्रामीण क्षेत्र में लगभग 75% और शहरी क्षेत्र की लगभग 50% आबादी को, लक्ष्यांकित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) के तहत, रियायती दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराया जा सके। इस प्रकार, लगभग दो तिहाई जनसंख्या को इस योजना के तहत कवर किया गया है। 

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के विशेष प्रावधान इस प्रकार हैं- 

1. ग्रामीण क्षेत्र में तीन चौथाई आबादी और शहरी क्षेत्र में लगभग आधी आबादी को पाँच किग्रा. अनाज 'रियायती दर पर (चावल 3रु. प्रति किलो, गेहूं 2रु. प्रति किलो और मोटा अनाज 1रु. प्रति किलो) उपलब्ध होगा। 

2. अत्यंत निर्धन परिवार 'अंत्योदय अन्न योजना' के अंतर्गत 35 कि.ग्रा. अनाज प्रति माह, रियायती दरों पर प्राप्त करते रहेंगे। 

3. गर्भवती महिलाएँ और शिशु को स्तनपान कराने वाली महिलाओं को जननी-लाभ के रूप में छः हजार रुपये मिलेंगे। 

4. छः माह से चौदह वर्ष आयु के बच्चों को या तो घर ले जाने के लिए राशन या पका खाना प्राप्त होगा। 

5. सरकार खाद्यान्न को परिवहन से ढुलाई और उसके प्रबंधन के लिए सहायता प्रदान करेगी। 

6. महिलाओं को घर चलाने के लिए अधिक अधिकार देने के उद्देश्य से, वरिष्ठ गृहणी को घर के मुखिया के हैसियत से, राशन कार्ड उसके नाम से जारी होगा। 

खाद्य सुरक्षा विधेयक से जुड़े मुद्दे

खाद्य सुरक्षा की परिकल्पना 'मूलभूत पोषण की वस्तुओं की एक टोकरी' पर आधारित होनी चाहिए जिसका उद्देश्य कुपोषण समाप्त करना हो और जनसंख्या के लिए 'पोषण सुरक्षा' निश्चित की जा सके। मात्र मोटे अनाज को इस पैकेज में रखने से आम जन के लिए पोषण-सुरक्षा नहीं मिल जायेगी। कई अंतर्राष्ट्रीय अध्ययनों की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि भारत के लिए भुखमरी और कुपोषण की समस्या से निजात पाना सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। 

कुपोषण और भूख, दोनों ही समस्याओं के लिए भारत की गणना बहुत नीचे है। अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्था की रेटिंग के अनुसार भारत वैश्विक भूख सूचकांक (Global Hunger Index 2019) में 117 देशों में 102वें स्थान पर है। 

भारत जैसे विशाल देश में इतने बड़े पैमाने पर खाद्य सुरक्षा नीति का क्रियान्वयन, वितरण-पद्धति की खामियों को दूर किये बिना और राज्यों की सापेक्षिक योग्यता, दोनों ही कारणों से गरीबों तक अन्न पहुँचाने की योजना असफल हो सकती है। 

इस योजना के लिए इतनी विशाल मात्रा में खाद्यान्नों की सरकारी खरीद, भंडारण क्षमता को मजबूत करने के साथ ही, अतिरिक्त क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता भी पैदा करती है। इसके लिए भारत को उन खाद्यान्नों का आयात करना पड़ सकता है जो अंतर्राष्ट्रीय बाजार और भारत में भी कीमतें प्रभावित करते हैं। 

इस प्रक्रिया के कारण, प्रश्न भारी-भरकम सरकारी रियायतों के केवल मुहैय्या करने और वार्षिक बजट में प्रावधान तक ही सीमित नहीं है। यह प्रत्येक चुनी सरकार के लिए शाश्वत और निरंतर जारी रहने वाली जिम्मेदारी है। प्रश्न यह है कि भविष्य में इसका कब तक निर्वाह किया जा सकता है? क्या इस प्रकार की योजनाएं जनमानस को अत्यधिक संतोषी और निकम्मा बनने की ओर प्रेरित तो नहीं कर रही हैं? क्योंकि यह योजना उन्हें खाद्यान्न की उपलब्धि की गारंटी, इसके लिए काम किये बगैर दे रही है। 

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