जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, सूक्ष्मदर्शी (microscope) एक ऐसा प्रकाशीय उपकरण है जिसकी सहायता से हम बहुत छोटी वस्तुओं को भी स्पष्टता से देख सकते हैं। वैज्ञानिक कई प्रकार के जीवाणुओं को देखने के लिए इस प्रकार के उपकरणों का उपयोग करते हैं। यहाँ हम दो प्रकार के सूक्ष्मदर्शियों का वर्णन करेंगे।
(a) सरल सूक्ष्मदर्शी (Simple microscope)
यदि आपको किसी छोटी वस्तु को देखना हो, तो आप उसे अपनी आँखों के नजदीक लाना पसंद करेंगे, ताकि रेटिना पर उसका प्रतिबिंब बड़ा बन सके और आप वस्तु की बारीकियों को भी स्पष्ट रूप से देख सकें। परंतु, आप वस्तु को अपनी आँख के निकट-बिंदु से और नजदीक नहीं ला सकते, क्योंकि तब प्रतिबिंब रेटिना पर बनेगा ही नहीं। यदि स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी D हो और वस्तु की लंबाई h हो, तो वस्तु को नजदीक लाकर जो अधिकतम कोण आप आँख पर बना सकते हैं, वह है
θ₀ = h/D
इस कोण को और भी बड़ा किया जा सकता है और वह भी रेटिना पर ही प्रतिबिंब को बनाकर, यदि आप एक उत्तल लेंस को आँखों के ठीक सामने आँख के लेंस के बिल्कुल नजदीक ले जाएँ। सोने के गहनों पर बारीक मीनाकारी करनेवाले कारीगर प्रायः अपनी आँख के आगे ऐसा ही छोटा-सा उत्तल लेंस लगाए रहते हैं। आपने जासूसी धारावाहिकों में जासूस को भी एक उत्तल लेंस लगाकर सबूतों को परखते देखा होगा। जब उत्तल लेंस का प्रयोग आँखों पर बने कोण को बढ़ाने के लिए किया जाता है तब उसे सरल सूक्ष्मदर्शी कहते हैं। सरल सूक्ष्मदर्शी को आवर्धक लेंस (magnifying glass) भी कहते हैं।
(b) संयुक्त सूक्ष्मदर्शी (Compound microscope)
प्रयोगशालाओं में काम आनेवाले सूक्ष्मदर्शी समान्यतः दो या दो से अधिक लेंस-समूहों से बने होते हैं। प्रथम लेंस-समूह उस छोटी वस्तु से आती प्रकाश की किरणों को संग्रहित करता है और उसका एक उलटा प्रतिबिंब बनाता है। दूसरे लेंस-समूह से आँख को सटाकर रखा जाता है और यह पहले प्रतिबिंब को आवर्धित कर रेटिना पर प्रतिबिंब बनाता है। वस्तु के पास वाले लेंस-समूह को अभिदृश्यक (objective) कहते हैं तथा आँख के पास वाले लेंस-समूह को नेत्रिका (eyepiece या ocular) कहते हैं। अभिदृश्यक तथा नेत्रिका से बने सूक्ष्मदर्शी को संयुक्त सूक्ष्मदर्शी कहते हैं।
आपने प्रयोगशालाओं में संयुक्त सूक्ष्मदर्शी देखा होगा। सामान्यतः इसका स्वरूप चित्र में दिखाई आकृति जैसा होता है। ऊपर की नली में नेत्रिका फिट होती है, जबकि बीच में आप अभिदृश्यक की नली देख रहे हैं। एक प्लैटफॉर्म पर उस वस्तु को रखते हैं जिसे आवर्धित कर देखना होता है। जीवविज्ञान की प्रयोगशालाओं में प्रायः काँच की स्लाइड पर ऐसी वस्तु को स्थापित करते हैं और उसे प्लैटफॉर्म पर रखते हैं। इस यंत्र में पेंच लगे होते हैं जिनकी सहायता से आप अभिदृश्यक नली को ऊपर नीचे खिसकाकर स्पष्ट व आवर्द्धित प्रतिबिंब प्राप्त कर सकते हैं।
प्रयोगशालाओं में कुछ विशेष दूरियों को अधिक शुद्धता से नापने के लिए एक अलग रचना के सूक्ष्मदर्शी का उपयोग करते हैं जिसे travelling microscope कहते हैं। यह एक सीधी नली में अभिदृश्य व नेत्रिका को फिट करके बनाया जाता है। इस पूरी नली को नीचे-ऊपर या दाएँ-बाएँ खिसकाने के लिए पेंच बने होते हैं। दोनों प्रकार के विस्थापनों को नापने के लिए वर्नियर स्केल लगे होते हैं, जिनसे आप मिलीमीटर के पचासवें या सौवें हिस्से तक के विस्थापन नाप सकते हैं।
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की कार्यप्रणाली को समझने के लिए अब हम अभिदृश्यक लेंस-समूह के स्थान पर एक उत्तल लेंस तथा नेत्रिका लेंस-समूह के स्थान पर एक दूसरा उत्तल लेंस लेकर इसका वर्णन करेंगे। चित्र में संयुक्त सूक्ष्मदर्शी के इस सरल रूप द्वारा एक छोटी वस्तु के प्रतिबिंब बनने की प्रक्रिया दिखाई गई है। ऊँचाई की एक वस्तु के पास f₀ फोकस-दूरी का उत्तल लेंस है जो अभिदृश्यक का काम कर रहा है। आँख के पास f₀ फोकस-दूरी का एक उत्तल लेंस है जो नेत्रिका का काम कर रहा है। दोनों लेंसों के मुख्य अक्ष एक ही रेखा पर हैं।
अभिदृश्यक तथा नेत्रिका विशेष नलियों में लगी होती हैं और इनके बीच की दूरी उपयुक्त पेंचों की सहायता से बदली जा सकती है। सूक्ष्मदर्शी से देखी जानेवाली छोटी वस्तु को अभिदृश्यक से u₀ दूरी पर रखा जाता है जो इसकी फोकस-दूरी से थोड़ा ही अधिक है। अभिदृश्यक द्वारा वस्तु का वास्तविक, उलटा तथा बड़ा प्रतिबिंब अभिदृश्यक की दूसरी ओर बनता है। नेत्रिका लेंस इस प्रतिबिंब से थोड़ा पीछे होता है। यह पहला प्रतिबिंब नेत्रिका लेंस के लिए वस्तु का कार्य करता है। इस प्रतिबिंब को बनानेवाली किरणें अब नेत्रिका लेंस पर पड़ती हैं।
सामान्य समायोजन के लिए नेत्रिका के स्थान को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाता है कि अभिदृश्यक द्वारा बना प्रतिबिंब नेत्रिका के फोकस तल में आ जाए। ऐसा होने पर वस्तु के किसी बिंदु से चलनेवाली किरणें नेत्रिका से निकलने के बाद आँखों में समानांतर पुंज के रूप में प्रवेश करती हैं और सिलियरी मांसपेशियों की तनाव रहित, अर्थात न्यूनतम संपीडन की परिस्थिति में रेटिना पर प्रतिबिंब बनाती हैं। नेत्रिका द्वारा बना प्रतिबिंब प्रथम प्रतिबिंब की तुलना में सीधा बनता है और इसलिए वस्तु के सापेक्ष आँख उलटा प्रतिबिंब देखती है।
नेत्रिका और अभिदृश्यक के बीच की दूरी को इस प्रकार भी व्यवस्थित किया जा सकता है कि अंतिम प्रतिबिंब आँख से स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बने। चित्र इसी परिस्थिति के लिए बनाया गया है।
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी द्वारा उत्पन्न कोणीय आवर्धन दो चरणों की प्रक्रिया के रूप में समझा जा सकता है। प्रथम चरण में अभिदृश्यक कुछ आवर्धन पैदा कर एक बड़ा प्रतिबिंब बनाता है और दूसरे चरण में नेत्रिका सरल सूक्ष्मदर्शी की तरह इसमें कोणीय आवर्धन उत्पन्न करती है। संयुक्त सूक्ष्मदर्शी द्वारा उत्पन्न कुल कोणीय आवर्धन इन दोनों का गुणनफल होता है।
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