दृष्टिवैषम्य से ग्रसित आँख अनेक दिशाओं में रखी वस्तुओं को एक साथ स्पष्ट नहीं देख सकती। ऐसी आँख से यदि ग्राफ-पेपर को देखें, तो हो सकता है कि क्षैतिज रेखाएँ साफ दिखे, पर ऊर्ध्वाधर रेखाएँ साफ नहीं दिखे या इसका उलटा दिखे।
यह दोष साधारणतः तब उत्पन्न होता है जब कॉर्निया ठीक-ठीक गोलीय सतह के आकार की नहीं होती। यदि आप एक बेलन की सतह के बारे में सोचें, तो अक्ष की समानांतर दिशा में सतह पर की रेखा सरल रेखा होती है, अर्थात इस दिशा में वक्रता है ही नहीं (वक्रता त्रिज्या = अनंत); परंतु इसकी लंब दिशा यह वृत्ताकार है, अर्थात वक्रता त्रिज्या बेलन की त्रिज्या के बराबर है। दृष्टिवैषम्य वाली आँख की कॉर्निया में सभी दिशाओं में वक्रता समान नहीं होती है। इसलिए किसी भी दूरी पर रखी वस्तु ठीक प्रकार से नहीं दिखती है। ऐसे में यदि किसी खास दिशा में लंबी-सी कोई वस्तु हो तो वह साफ दिख सकती है, लेकिन उसी वस्तु को यदि लंब दिशा में घुमा दिया जाए तो वह साफ नहीं दिखती।
दृष्टिवैषम्य का इलाज भी लेंस में ही है। इसके लिए लेंस भी ऐसा ही बनाया जाता है जिसे आप एक गोलाकार तथा एक बेलनाकार सतहों का अध्यारोपण मान सकते हैं। कॉर्निया की वक्रता के परिवर्तन के प्रभाव को लेंस की वक्रता के परिवर्तन से समाप्त किया जाता है।
आधुनिक काल में सर्जरी द्वारा आँखों का पावर सही करने की तकनीक विकसित हो गई है। इसमें कॉर्निया की सतह पर सर्जरी कर उसके आकार एवं वक्रता त्रिज्या को परिवर्तित कर दृष्टि दोष का निवारण किया जाता है जिससे चश्में की आवश्यकता लगभग खत्म हो जाती है। परंतु चश्मा अभी भी सर्वाधिक सुरक्षित एवं सुलभ उपाय है जिससे लोग अपने दृष्टि दोषों का निवारण करते हैं।
दृष्टि दोषों के निवारण के लिए हमने चश्मों की बातें की जिसमें उपयुक्त फोकस-दूरियों के लेंस लगे हों। यहाँ हमने लेंस एवं आँखों के बीच की दूरी को अनदेखा कर दिया है। वस्तुतः चश्में के लेंस आँखों से 1 cm से 2 cm तक दूर होते हैं जिससे गणना के द्वारा प्राप्त फोकस-दूरी तथा उचित फोकस-दूरी में थोड़ा अंतर हो सकता है। आपने देखा होगा कभी-कभी लोग चश्में को नाक पर आगे की ओर सरकाकर पढ़ना पसंद करते हैं। ये वस्तुतः प्रभावी फोकस-दूरी को हलका-फुलका बदलने की प्रक्रिया है। कुछ लोग, विशेषकर महिलाएँ, कॉन्टैक्ट लेंस का इस्तेमाल करती हैं जिसे कॉर्निया के ऊपर ही चिपका दिया जाता है। ऐसे में ये अशुद्धियाँ नहीं होती हैं।
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