'मानव विकास" से हम क्या समझते हैं? हम पहले देख चुके हैं कि भारत का उत्पादन (GDP) विश्व की दसवीं बड़ी श्रेणी में आता है या भारत, चीन के बाद सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है और साथ ही भारत, चीन के बाद सबसे बड़ा बाजार है। अवश्य है, और यह सब उसी सत्य की उद्घोषणा है।
हालांकि प्रतिव्यक्ति GDP में भारत का रैंक नीचे है। आधुनिक अर्थशास्त्र में मानव विकास को, समग्र संवृद्धि प्रक्रिया (Overall growth process) में मापने का कोई स्टैंडर्ड पैमाना नहीं है, इस तथ्य को ध्यान में रखकर एशिया के दो सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों, डॉ. महबूब उल हक (पाकिस्तान) और प्रो. अमर्त्य सेन (भारत) ने, “मानव विकास सूची" की अवधारणा विकसित की जिसे वर्ष 1990 के दशक में HDI नाम से जाना गया। HDI के आधार पर, अर्थव्यवस्थाओं का पहला तुलनात्मक अध्ययन वर्ष 1990 में किया गया।
यह सूची जटिल न होकर साधारण है, पूर्णतया निष्पक्ष है और इसके माध्यम से सरकार द्वारा “बेसिक" मानव विकास के प्रयासों का मापन किया जा सकता है, जिसके आधार पर देशों का वर्गीकरण हो सकता है। यह सूची विश्व में सर्वमान्य है और संयुक्त राष्ट्र की संस्था UNDP द्वारा जारी "मानव विकास रिपोर्ट", इसी आधार पर तैयार की जाती है।
इस सूची में केवल तीन परिसीमाएँ (Parameters) इस्तेमाल की जाती हैं। ये परिसीमाएँ, इनकी सापेक्ष भारत और अधिकतम -न्यूनतम मूल्य, नीचे दिया गया है-
मूल्य अथवा सूची 'शून्य से एक' की रेंज में होती है और इसे दशमलव के आगे, तीन अंकों तक लिया जाता है। मूल्य 1 के निकटतम अंक को मानव-विकास के लिए अच्छा प्रयास माना जाता है और यही मूल्य (values) यदि 0.500 से नीचे है तो इसे असंतोषप्रद माना जायेगा। इसकी कार्यविधि और कसौटी में 2010 में कुछ मामूली परिवर्तन किया गया है ताकि इसे और वैज्ञानिक बनाया जा सके। इस संशोधन के अनुसार तीनों परिसीमाओं को पहले अलग-अलग अनुसूची के रूप में परिवर्तित किया जाता है। दूसरा, प्रौढ़ शिक्षा और सकल नामांकन अनुपात में सुधार करके, शिक्षा सूचकांक (Education Index) बनाया गया है, जिसमें-
(क) स्कूली शिक्षा का औसत वर्ष (25 वर्ष आयु के व्यक्ति ने स्कूल में शिक्षा के लिए कितने वर्ष बिताये)
(ख) स्कूली शिक्षा के अनुमानित वर्ष (5 वर्ष का बच्चा) स्कूल से शिक्षा लेने में, अपने जीवन के कितने वर्ष बितायेगा (Expected Years of Schooling - EYS)|
संयुक्त मानव विकास सूची, (Composite HDI), इन तीनों तत्वों का "हरात्मक माध्य" (Harmonic mean) होगा (अर्थात् तीनों का गुणित करके cube-root निकालना।
भारत का HDI, विश्व के अन्य देशों की तुलना में कितना है? वर्ष 2019 में UNDP द्वारा 189 देशों की रैंकिंग में भारत 129वें स्थान पर है। नार्वे प्रथम स्थान पर है और चीन, श्रीलंका, इंडोनेशिया, और मलेशिया का स्थान भारत से ऊंचा है। भारत की सूची, मध्यम श्रेणी (0.640) में है।
उपरोक्त तथ्यों से क्या निष्कर्ष निकलता है? जैसे कि कुछ पहले भी कहा जा चुका है, भारत के उत्पादन का विस्तार, विश्व रैंकिंग में भले ही ऊपर हो, घरेलू स्तर पर यह अपर्याप्त है और इससे बेसिक मानव विकास पूरी तरह नहीं हो सकता।
विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका की जनसंख्या, भारत में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाली जनसंख्या से भी कम है। पूरी जनसंख्या की तो बात ही छोड़ दीजिए। यहां क्या, यह कहा जा सकता है कि भारत की जनसंख्या, चीन की जनसंख्या के बाद, मानव-विकास सूची में निचली रैंकिंग के लिए जिम्मेदार है?
इसका उत्तर होगा, यदि चीन, विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश, HDI रैंकिंग में बेहतर कर सकता है तो भारत क्यों नहीं?
दूसरी बात, अब परंपरागत विचारधारा में बदलाव आ रहा है जिसमें बड़ी जनसंख्या को एक बोझ समझने के बजाय उसे अच्छे रूप में देखा जाता है, इसमें संभावित बाजार, घरेलू माँग में वृद्धि और श्रम शक्ति जैसे अवसर उपलब्ध हैं। आवश्यकता है, इस श्रम शक्ति को शिक्षा कौशल विकास आदि के द्वारा मानव-पूँजी के रूप में निर्मित करने की। भारत का प्रयास इस दिशा में, अनुकूलतम रूप से अत्यंत ही कमजोर कहा जा सकता है।
तीसरे, यह समझना आवश्यक है कि जनसंख्या नियंत्रण एक लंबी अवधि तक चलते रहने वाला उपाय है जो कई दशकों तक चलाना पड़ेगा और इसके कई आर्थिक और गैर-आर्थिक पहलू हैं। विकास कार्यों की शुरुआत के पहले, जनसंख्या स्थिरता का इंतजार नहीं किया जा सकता और इससे भी गंभीर बात, प्राकृतिक आपदाओं में जन-धन की हानि के लिए इंतजार नहीं किया जा सकता।
कई देशों द्वारा किये गये जनसंख्या नियंत्रण के प्रयास का अब दुष्परिणाम बूढ़े हो रहे श्रमिकों की अर्थव्यवस्था में अधिकता के रूप में सामने आ रहा है। भारत के पास अनुकूल जनसंख्या का लाभ स्वाभाविक रूप से है। भारत की 50% जनसंख्या 25 वर्ष से कम आयु की है और विश्व के किसी भी देश में ऐसा नहीं है। अत: इस जनसंख्या के समुचित उपयोग करने की आवश्यकता है ।
अंततः, भारत को वैश्विक तुलना के स्थान पर अपनी घरेलू आवश्यकताओं/ प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, सामाजिक क्षेत्र की आवश्यकताएं, मानव विकास एवं प्रशासनिक कुशलता आदि पर ज्यादा जोर देना चाहिए। पहले अपनी घरेलू आवश्यकता का आकलन करके इच्छित उत्पादन - स्तर के हासिल करने का प्रयास करना चाहिए।
मानव विकास सूची, (HDI) सरकार द्वारा मानव विकास के लिए किये जा रहे प्रयासों का प्रतिबिंब है और इसमें नीचे की रैंकिंग, सरकार की आलोचना के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था का स्वरूप बहुत बड़ा है। इसे सरकार के लिए सचेत होने का सिग्नल समझना चाहिए जिससे वह अपनी रणनीति पर पुनर्विचार कर सके और इसे बेसिक मानव विकास की दिशा के साथ जोड़ सके। इससे आम-जन में, खुशहाली का आभास होगा, जीवन स्तर में उन्नति होगी, अर्थव्यवस्था में संवृद्धि के साथ HDI रैंकिंग में भी सुधार होगा।
यह एक गलत अवधारणा है कि विदेशों की ओर उन्मुखता (orientation) केवल निर्यात के लिए ही है अथवा पूँजी की आवक बढ़ाने या फिर केवल धनाढ्य लोगों के लिए है। इस उन्मुखता से घरेलू प्राथमिकताओं को भी सुव्यवस्थित किया जा सकता है। इसके द्वारा शिक्षा, टेक्नोलॉजी, वैज्ञानिक अनुसंधान आदि में महत्त्वपूर्ण सहायता मिल सकती है और यह तभी संभव है जब घरेलू सीमाओं के पार दृष्टिपात किया जाय और लोगों के लिए आर्थिक बेहतरी की दिशा में प्रयास किया जाय।
इसी संदर्भ में इस पुस्तक के पीछे के अध्याय में "बाह्य परिक्षेत्र, सुदूर दृष्टिपात" पर चर्चा की गयी है। इस अनुभाग में "वैश्विक अर्थव्यवस्था एवं दृष्टिकोण" में, विश्व अर्थव्यवस्था के बाह्य सीमाओं की रूपरेखा का अवलोकन, उसके परिप्रेक्ष्य की चर्चा की गयी है क्योंकि यह सभी विषय, भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए संदर्भित है। भारतीय अर्थव्यवस्था, इस समय एक अनिश्चित उथल-पुथल और अस्थिर भविष्य की ओर बढ़ रही है।
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