प्रायः वस्तुओं की सतहें आँखों से देखने पर समतल दिखाई देती हैं, परंतु यदि उसे शक्तिशाली सूक्ष्मदर्शी से देखा जाए, वह काफी ऊबड़-खाबड़ नजर आती है। जब एक वस्तु A पर दूसरी वस्तु B रखी जाती है, तो ऊबड़-खाबड़ होने के कारण वास्तविक संपर्क कहीं-कहीं ही हो पाता है।
ऊपर की वस्तु के भार के कारण सतहें थोड़ी विकृत (deformed) भी हो जाती हैं और वास्तविक संपर्क क्षेत्र बनाने में इनका भी प्रभाव होता है। चूंकि वस्तु B का सारा भार इन्हीं थोड़ी-सी जगहों पर संतुलित होता है, यहाँ पर दोनों सतहें काफी बड़ा बल लगाती हैं। इस कारण इन संपर्क स्थानों के दोनों ओर के अणु एक-दूसरे के इतने नजदीक आ जाते हैं कि वे आपस में इलेक्ट्रॉनों का आदान-प्रदान कर रासायनिक बंधन (chemical bonds) बना लेते हैं। जिस तरह वस्तु A में आसपास के अणु बंधन बनाकर जुड़े रहते हैं (इसलिए वह एक ठोस वस्तु के रूप में रहती है, उसी तरह संपर्क स्थान के दोनों तरफ के अणु जुड़ जाते हैं। ऐसी हालत में वस्तुओं को एक-दूसरे पर फिसलाने के लिए इन बंधनों को तोड़ना पड़ता है और इसलिए एक अतिरिक्त बल लगाना पड़ता है। यदि वस्तुएँ एक-दूसरे पर फिसल रही हों, तो ऐसे बंधन टूटते रहते हैं और नए बंधन बनते रहते हैं। बंधन टूटने-बनने की प्रक्रिया में वस्तु में कंपन पैदा होते हैं, जो अन्य अणुओं को अपनी ऊर्जा प्रदान करते हैं। इस तरह ऊष्मा का निर्माण होता है। समीकरण f = uN भौतिकी के बड़े मौलिक नियमों जैसे नहीं हैं। ये लोगों द्वारा किए गए प्रयोगों से प्राप्त किए गए हैं। इटली के Leonardo da Vinci, जिन्हें कुशल पेंटर, संगीतकार, गणितज्ञ, इंजीनियर, भूगर्भशास्त्री, लेखक और न जाने क्या-क्या उपमाएँ दी जा सकती हैं, ने करीब 500 वर्ष पहले क्षैतिज सतह पर एक ठोस गुटके को फिसलाकर घर्षण के बारे में बहुत-सी सूचनाएँ जुटाई थीं। वर्ष 1866 में फ्रांस के Guillaume Amontons ने अपने प्रयोगों से घर्षण का अध्ययन किया और उन्हें नियम या समीकरण का रूप दिया। आवेशों के बीच बलों के नियम के प्रणेता फ्रांस के ही Charles-Augustin de Coulomb ने भी घर्षण पर अनेक प्रयोग कर वर्ष 1781 में अपने शोध प्रकाशित किए। स्थितिज एवं गतिज घर्षण के अंतर को ये प्रमुखता से सामने लाए। यद्यपि घर्षण के नियम प्रयोगों के परिणामों से प्राप्त किए गए हैं, हम घर्षण को ऊपर दी गई व्याख्या के आधार पर समझ सकते हैं। यदि एक टेबुल पर एक बॉक्स रखा हो, तो बॉक्स के भार के कारण सतहें कुछ-कुछ जगह पर वास्तविक संपर्क बनाती हैं और यहाँ आणविक बंधन बनते हैं। अब यदि हम बॉक्स पर कुछ और भार रख दें, तो बढ़े हुए भार के कारण सतहों में थोड़ी और विकृति आ जाती है और नए वास्तविक संपर्क बनते हैं। इन नए आणविक बंधनों के कारण घर्षण बल भी बढ़ जाता है। ठोसों में बलों के लगने से उत्पन्न विकृति के नियमों के आधार पर विश्लेषण करने से F अनुक्रमनुपाती न को और भी अच्छी तरह समझा जा सकता है।
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