भारत में कृषि एवं सहायक गतिविधियों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए बहुत सी क्रांतियों का विवरण निम्नवत है:
1. कृषि क्रांतिः
हरित क्रांति को बीज-जल-उर्वरक- कीटनाशक तकनीकि को 1965 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने "हरित क्रांति" के नाम से संकल्पित किया जो कि 1967-1778 के काल में पंजाब और हरियाणा में गेहूं और चावल का उत्पादन बढ़ाने के लिए लागू किया गया।
2. श्वेत क्रांति:
वर्ष 1970 में आपरेशन फ्लड के रूप में एक कार्यक्रम राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) की सुपरवाइजरी में प्रारम्भ की गई, जिसने भारत को दुनिया के नक्शे पर दुग्ध का सबसे बड़ा उत्पादक बना दिया। आपरेशन फ्लड तीन चरणों में पूरा किया गयाः
प्रथम चरण (1970 - 79)
द्वितीय चरण (1981 - 1985)
तृतीय चरण (1985 - 1996)
3. पीत क्रांतिः
तिलहन क्रांति लोक शक्ति क्रांति (Power Revolution) के रूप में जानी जाती है। पीत क्रांति 1983-1986 में फिलीपींस में किये गये श्रृंखलाबद्ध प्रदर्शनों का परिणाम था।
4. नीली क्रांतिः
नीली क्रांति देश में मछली पालन के विकास से संबंधित है।
5. भूरी क्रांतिः
चमड़ा/गैर परपंरागत/ कोको उत्पादन और टमाटर उत्पादन के लिए जानी जाती है। भूरी क्रांति विशाखापत्तनम जिले के जनजाती क्षेत्रों में हुई। जहां जनजातीय लोग को सिर्फ शिक्षित ही नहीं बल्कि प्रोत्साहित भी किया जाता है।
6. काली क्रांतिः
पेट्रोलियम उत्पादन से संबंधित है।
7. ग्रे क्रांतिः
उर्वरक उत्पादन से संबंधित है।
8. स्वर्ण क्रांतिः
स्वर्ण क्रांति का काल 1991-2003 के मध्य है।
9. गोल्डन फाइबर क्रांतिः
जूट उत्पादन से संबंधित है।
10. गुलाबी क्रांति:
प्याज उत्पादन/ औषध/ झींगा उत्पादन से संबंधित है।
11.लाल क्रांतिः
मांस उत्पादन से संबंधित है।
12. गोल क्रांतिः
आलू उत्पादन से संबंधित है।
13. रजत क्रांतिः
अण्डा/ मुर्गी पालन से संबंधित है।
14.सिल्वर फाइबर क्रांतिः
कॉटन उत्पादन से संबंधित है।
15. बादाम क्रांति:
मसाला उत्पादन से संबंधित है।
16. एवरग्रीन क्रांतिः
कृषि के सम्पूर्ण विकास से संबंधित है।
हाल में ही इंद्रधनुषीय क्रांति (Rainbow Revolution) में भी प्रयास किया जा रहा है। इसके अंतर्गत बागवानी उत्पाद जैसे फल, सब्जियाँ, फूल, पौधे, मसाले इत्यादि को शामिल किया गया है।
कृषि कार्य में लगी भूमि और क्षेत्रफल की उत्पादकता के अनुपात से भारत कृषि उत्पादन में विश्व के बड़े उत्पादक देशों में से एक है। परंतु इसकी मुख्य फसलों का उत्पादन घरेलू आवश्यकता पूरी करने में असफल रहा है और इसका प्रमाण, समय-समय पर खाद्यान्नों की बढ़ती कीमतें हैं। यहां इस बात से संतोष कर लेना ठीक नहीं है कि भारत दालें, नारियल, अदरक, हल्दी, काली-मिर्च, दूध का सबसे बड़ा उत्पादन करने वाला देश है; यह गेहूं, चावल, मूंगफली, फल एवं सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। इसे देश की सापेक्ष माँग उत्पादकता के संदर्भ में देखा जाना चाहिए ना कि सिर्फ उत्पादन से।
भारत का विशाल भू-क्षेत्र एक वरदान है। दूसरी तरफ चीन में, भारत की अपेक्षा कम कृषि योग्य जमीन है, परंतु फिर भी चीन का कृषि उत्पादन भारत से दोगुना है। स्पष्टतः भारत-चीन के बीच उत्पादकता ही तुलना का मुख्य आधार है।
एक और चिंता का विषय है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से कृषि उत्पादन की वृद्धि-दर 2.5% ही रही है। कृषि उत्पादन में वृद्धि, शेष अर्थव्यवस्था को कई गुना बढ़ावा देने वाला गुणक है। इससे खाद्य आपूर्ति बढ़ती है और बाजार में मूल्यों में स्थिरता आती है। इससे किसानों की आय में भी वृद्धि होती है और गैर कृषि उत्पादों की माँग बढ़ जाती है। इस प्रक्रिया से उद्योगों को भी अपनी उत्पादकता बढ़ाने की प्रेरणा मिलती है।
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