न्यूटन के प्रथम गति-नियम को हम निम्नलिखित रूप में लिख सकते हैं।
यदि किसी वस्तु पर लगता हुआ कुल परिणामी बल शून्य हो, तब और केवल तभी, उस वस्तु का त्वरण शून्य होगा।
कुल परिणामी बल शून्य होने के लिए एक तरीका यह हो सकता है कि उस वस्तु पर कोई बल ही न लगे। ऐसी परिस्थिति का होना थोड़ा कठिन है, क्योंकि वस्तु धरती की सतह के आसपास हो, तो धरती उसपर आकर्षण का बल mg लगाएगी ही। यदि धरती से दूर भी ले जाएँ तो भी यह बल शून्य तो नहीं होगा। दूसरा तरीका है कि वस्तु पर दो या दो से अधिक बल लगे हों, पर उन्हें सदिश नियमों के अनुसार जोड़ने पर परिणामी शून्य हो जाए। जैसे बराबर परिमाण के दो बल यदि ठीक विपरीत दिशा में लगे हों, तो उसका परिणामी शून्य हो जाता है। टेबुल पर रखी किताब इसी कारण स्थिर रहती है। किताब पर दो बल लगते हैं, एक तो पृथ्वी के द्वारा नीचे की ओर (गुरुत्वाकर्षण) और दूसरा टेबुल के द्वारा ऊपर की ओर (अभिलंब बल)। ये दोनों बल परिमाण में बराबर, परंतु एक-दूसरे की विपरीत दिशाओं में होते हैं। अतः, उनका योग या परिणामी शून्य हो जाता है।
त्वरण शून्य होने का अर्थ है वस्तु के वेग में कोई परिवर्तन नहीं होना। यदि वेग अभी शून्य है, तो शून्य ही बना रहेगा, अर्थात यदि वस्तु स्थिर है, तो स्थिर ही रहेगी। यदि वेग अभी 2 m/s है, तो वह 2 m/s ही बना रहेगा और उसकी दिशा भी नहीं बदलेगी, अर्थात वस्तु एकसमान वेग से एक सरल रेखा पर चलती रहेगी। न्यूटन के प्रथम नियम को हम ऐसे भी कह सकते हैं कि यदि किसी वस्तु पर लगता कुल परिणामी बल 'शून्य' हो, तो वह या तो स्थिर रहेगी या एकसमान वेग से एक सरल रेखा पर चलती रहेगी। जब किसी वस्तु का त्वरण शून्य होता है, तो वह साम्यावस्था (equilibrium) में कही जाती है।
No comments:
Post a Comment