Wednesday, May 19, 2021

वेतन संहिता 2019 क्या है What is Code on Wages 2019 | Indian Economy

 वेतन संहिता (Code on Wages) विधेयक 30 जुलाई, 2019 को लोकसभा से और 2 अगस्त, 2019 को राज्यसभा से पारित हुआ। 8 अगस्त, 2019 को इस पर राष्ट्रपति ने अपनी मंजूरी दे दी। इसके बाद केंद्र सरकार की ओर से अधिसूचना जारी होने के बाद ये देशभर में लागू हो गया। इस अधिनियम का उद्देश्य श्रम कानूनों में सुधार करने के साथ ही देश के तमाम श्रमिकों के जीवन स्तर को ऊपर उठाना है। इससे देश के करीब 50 करोड़ मजदूरों को एकसमान न्यूनतम वेतन मिलने का रास्ता साफ हो गया है। श्रम सुधारों की दिशा में इसे बहुत बड़ा कदम बताया जा रहा है। इसके लागू होने के बाद देश के तमाम मजदूरों के एक निश्चित न्यूनतम वेतन से कम वेतन देना अपराध माना जाएगा, साथ ही एक समान काम के बदले एक जैसा वेतन देना भी जरूरी होगा। ये नया कानून पुराने श्रम कानूनों की जगह लेगा। 

  • यह नया अधिनियम मजदूरी भुगतान कानून 1936, न्यूनतम मजदूरी कानून 1948, बोनस भुगतान कानून 1965 और समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 की जगह लेगा। 
  • विभिन्न श्रम कानूनों में वेतन की 12 परिभाषाएं हैं, जिन्हें लागू करने में कठिनाइयों के अलावा मुकदमेबाजी को भी बढ़ावा मिलता है। इस परिभाषा को सरल बनाया गया है, जिससे मुकदमेबाजी कम होने और एक नियोक्ता के लिए इसका अनुपालन सरलता करने की उम्मीद है। इससे प्रतिष्ठान भी लाभान्वित होंगे, क्योंकि रजिस्टरों की संख्या, रिटर्न और फॉर्म आदि न केवल इलेक्ट्रॉनिक रूप से भरे जा सकेंगे और उनका रख-रखाव किया जा सकेगा, बल्कि यह भी कल्पना की गई है कि कानूनों के माध्यम से एक से अधिक नमूना निर्धारित नहीं किया जाएगा। 
  • न्यूनतम वेतनः वर्तमान में अधिकांश राज्यों में विविध न्यूनतम वेतन हैं। वेतन पर कोड के माध्यम से । न्यूनतम वेतन निर्धारण की प्रणाली को सरल और युक्तिसंगत बनाया गया है। रोजगार के विभिन्न प्रकारों को अलग करके न्यूनतम वेतन के निर्धारण के लिए एक ही मानदंड निर्धारित किया गया है। न्यूनतम वेतन निर्धारण मुख्य रूप से स्थान और कौशल पर आधारित होगा। इससे देश में मौजूद 2000 न्यूनतम वेतन दरों में कटौती होगी और न्यूनतम वेतन की दरों की संख्या कम होगी। 
  • निरीक्षण प्रक्रिया में अनेक परिवर्तन किए गए हैं। इनमें वेब आधारित रैंडम कम्प्यूटरीकृत निरीक्षण योजना, अधिकार क्षेत्र मुक्त निरीक्षण, निरीक्षण के लिए इलेक्टॉनिक रूप से जानकारी मांगना और जुर्मानों का संयोजन आदि शामिल हैं। इन सभी परिवर्तनों से पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ श्रम कानूनों को लागू करने में सहायता मिलेगी। 
  • कामगारों के दावों की समयावधिः ऐसे अनेक उदाहरण थे कि कम समयावधि के कारण कामगारों के दावों को आगे नहीं बढ़ाया जा सका। अब सीमा अवधि को बढ़ाकर 3 वर्ष किया गया है और न्यूनतम वेतन, बोनस, समान वेतन आदि के दावे दाखिल करने को एक समान बनाया गया है। फिलहाल दावों की अवधि 6 महीने से 2 वर्ष के बीच है। 
  • कवरेज क्षेत्रः इस विधेयक के दायरे में निजी, सरकारी, संगठित और गैर-संगठित सभी तरह के क्षेत्रों में करने वाले कर्मचारी आएंगे। रेलवे, खदान, ऑयल जैसे क्षेत्रों से जुड़े कर्मचारियों के वेतन से जुड़े फैसले केंद्र सरकार लेगी। वहीं अन्य कर्मचारियों के मामलों में फैसले राज्य सरकारें लेंगी। मजदूरी में वेतन, भत्ते और मुद्रा के रूप में बताए गए सभी घटक शामिल रहेंगे। इसमें कर्मचारी को मिलने वाला बोनस या कोई यात्रा भत्ता शामिल नहीं होगा। 
  • हर 5 वर्ष में समीक्षा का प्रावधानः अधिनियम के मुताबिक हर पांच वर्ष या उससे कम वक्त में केंद्र या राज्य सरकार त्रिपक्षीय समिति के माध्यम से न्यूनतम मजदूरी की समीक्षा और पुनर्निधारण किया जाएगा। इसे तय करने के दौरान कर्मचारी की कार्यकुशलता और काम की मुश्किलों जैसी बातों को भी ध्यान में रखा जाएगा। 
  • ओवरटाइम: केंद्र या राज्य सरकार सामान्य कार्य दिवस के लिए काम के घंटे तय कर सकती है। सामान्य कार्य दिवस के दौरान अगर कर्मचारी तय घंटों से ज्यादा काम करता है तो वह ओवरटाइम मजदूरी का हकदार होगा। अतिरिक्त कार्य के लिए उसे मिलने वाली मजदूरी की दर, आम दर के मुकाबले कम से कम दोगुनी होगी। 
  • विधेयक में यह भी सुनिश्चित किया गया है कि मासिक वेतन पाने वाले कर्मचारियों को अगले महीने की 7 तारीख तक वेतन मिलेगा, साथ ही जो लोग साप्ताहिक आधार पर काम कर रहे हैं उन्हें हफ्ते के आखिरी दिन और दैनिक कामगारों को उसी दिन पारिश्रमिक मिलना सुनिश्चित होगा। 
  • वेतन में कटौती: नए अधिनियम में कर्मचारी को दिए जाने वाले वेतन में निम्न आधार पर कटौती का प्रावधान भी रखा गया है, जिसमें जुर्माना, ड्यूटी से अनुपस्थित रहना, नियोक्ता द्वारा दिए गए रहने के स्थान या कर्मचारी को दिए गए एडवांस के आधार पर वेतन कटौती की जा सकती है। हालांकि ये कटौती कर्मचारी के कुल वेतन के 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकती। 
  • लैंगिक भेदभावः इस अधिनियम के जरिए लैंगिक आधार पर एक समान कार्य या एक प्रकृति वाले काम के लिए वेतन और भर्ती के मामले में लैंगिक भेदभाव को खत्म कर दिया गया है। अब एक जैसे काम के लिए महिलाओं को भी उतना ही वेतन मिलेगा जितना एक पुरुष को दिया • जाता है। 
  • सजा का प्रावधानः इस अधिनियम में नियमों का उल्लंघन करने वाले नियोक्ताओं के लिए जुर्माने तथा सजा का प्रावधान भी रखा गया है। न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी देने या अधिनियम के अन्य किसी अन्य प्रावधान का उल्लंघन करने पर उस पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगेगा। यदि पांच साल के दौरान वो दोबारा ऐसा करता है तो उसे 3 माह तक का कारावास और 1 लाख रुपये तक जुर्माना या दोनों तरह की सजा दी जा सकेगी। 
न्यूनतम वेतन के वैधानिक संरक्षण करने को सुनिश्चित करने तथा देश 50 करोड़ कामगारों को समय पर वेतन भुगतान मिलने के लिए यह एक ऐतिहासिक कदम है। यह कदम जीवन सरल बनाने और व्यापार को ज्यादा आसान बनाने के लिए भी वेतन संहिता के माध्यम से उठाया गया है। 

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