कल्पना करें कि सबेरे का समय है और आप एक खुले मैदान में व्यायाम कर रहे हैं। आपका चेहरा कभी पश्चिम, तो कभी उत्तर की ओर घूमता है, कभी आप ऊपर की ओर देखते हैं, तो कभी जमीन की ओर। आपका रुख किधर भी हो आपको कुछ-न-कुछ तो जरूर दीखता है। आपकी आँखों में Light तो आ रहा है। निश्चित ही इस Light का स्रोत सूर्य ही है। सूर्य के उदय होने के पहले ही उजाला हो जाता है और हमें हर तरफ की चीजें स्पष्ट दीखने लगती हैं। सूर्योदय होने के बाद भी, हो सकता है हमारे कमरे में धूप न आ रही हो, हो सकता है पूर्व की ओर हमारे कमरे में कोई खिड़की या दरवाजा न हो, फिर भी हमें कमरे की हर वस्तु स्पष्ट दीखती है। सूर्य से चला Light, सभी दिशाओं से कैसे मिलता है?
यह वस्तुतः धरती के वायुमंडल में स्थित विभिन्न अणुओं व कणों के कारण होता है। Light के विद्युतीय क्षेत्र के कारण ऐसे कण अपने ऊपर पड़ती Light की ऊर्जा के एक भाग को अवशोषित कर लेते हैं और उन कणों के कुछ इलेक्ट्रॉन इस विद्युतीय क्षेत्र की आवृत्ति के साथ कंपन करने लगते हैं। इस कारण ये कण विभिन्न दिशाओं में Light उत्सर्जित करते हैं और पूर्व दिशा से आते Light का एक भाग हमें अन्य सभी दिशाओं से आता हुआ प्राप्त होता है।
पदार्थों के कणों द्वारा Light के एक भाग का अवशोषण (absorption) तथा विभिन्न दिशाओं में इसका पुनः उत्सर्जन (emission), यह प्रक्रिया Scattering या scattering कहलाती है और इस प्रकार आता Light प्रकीर्णित (scattered) Light कहलाता है।
जब Light को प्रकीर्णित करनेवाले कणों का आकार (size) उनके तरंगदैर्घ्य की तुलना में काफी कम हो, तो ऐसे Scattering को Rayleigh Scattering कहते हैं। इस प्रकार के Scattering के लिए Light ऊर्जा का जो भाग Scattering के कारण आपतित Light से अलग हो जाता है, उसकी दर
होती है, जहाँ D कणों का औसत व्यास तथा λ Light का तरंगदैर्घ्य है।
गैसों से होकर चलते Light का Scattering इसी सूत्र के अनुसार होता है, क्योंकि गैसों के अणुओं के आकार तरंगदैर्घ्य से बहुत कम होते हैं। तरंगदैर्घ्य पर निर्भरता से स्पष्ट है कि दृश्य Light (visible light) में लाल रंग का Scattering सबसे कम तथा बैंगनी रंग का Scattering सबसे अधिक होगा। खतरे के सिग्नल बहुधा लाल रंग के बनाए जाते हैं ताकि Scattering के कारण Light-ऊर्जा का क्षय न्यूनतम हो और इनका Light दूर तक जा सके।
दिन में आसमान का नीला दिखना भी Rayleigh Scattering के नियम से समझा जा सकता है। जब हम आसमान की ओर देखते हैं, तो ज्यादातर वायुमंडल की हवा के अणुओं द्वारा प्रकीर्णित Light ही हमारी आँखों तक पहुँचता है। इस प्रकीर्णित Light में लाल, नारंगी आदि का अंश कम रहता है और हरे-नीले बैंगनी Light का अधिक। इन सबका संयोजन आसमान को इसका विशिष्ट नीला-सा रंग देता है।
सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूरज का सिंदूरी दिखना भी Rayleigh Scattering के कारण है। यदि हम सूर्य की ओर देखते हैं (अधिक देर तक सूर्य को देखना उचित नहीं है), तो सूर्य से आते सीधे Light को देखते हैं। सूर्योदय या सूर्यास्त के समय सूर्य के Light को वायुमंडल में अधिक दूर चलना पड़ता है। लाल रंग का Scattering सबसे कम होने के कारण इसका अधिकांश भाग हमारी आँखों तक पहुँच जाता है जबकि कम तरंगदैर्घ्य वाले हरे-नीले-बैंगनी आदि रंग के Light का अधिकांश भाग इधर-उधर प्रकीर्णित हो जाता है।
Rayleigh Scattering का ध्रुवण (polarisation) से भी संबंध है। यदि अध्रुवित Light कणों से प्रकीर्णित होता है, तो विशिष्ट दिशाओं में प्रकीर्णित Light आंशिक रूप से ध्रुवित हो जाता है।
यदि धरती पर वायुमंडल न होता, तो सूर्य के Light का Scattering भी न होता। आसमान पूरी तरह काला नजर आता और दिन में तारे दिखने का मुहावरा यथार्थ रूप में चरितार्थ होता। वस्तुतः, धरती की सतह से 20 km या अधिक ऊँचाई पर चले जाएँ तो हवा का घनत्व काफी कम हो जाता है और दिन में तारे दिखते हैं।
जब आप आसमान में बादलों को देखते हैं, तो वे नीले दिखाई नहीं देते, बल्कि सफेद या मटमैले रंग के दिखते हैं। ऐसा इसलिए कि बादलों में पानी के कण होते हैं जो बहुधा Light के तरंगदैर्घ्य से बड़े होते हैं। यहाँ Rayleigh के सिद्धांत के अनुसार Scattering नहीं होता। सभी तरंगदैर्यों के Light लगभग बराबर अंश में प्रकीर्णित होते हैं। बड़े-बड़े शहरों में बहुत सारे वाहन वायुमंडल में धुआँ डालते रहते हैं, कारखाने आदि भी वायुमंडल में तरह-तरह के कण उत्सर्जित करते हैं, इसलिए आसमान सुंदर नीलवर्ण का नहीं दिखकर मटमैला-सा दिखता है। इस प्रकार का प्रक्रीर्णन Mie Scattering कहलाता है।
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