हाल के दिनों में, म्युचुअल फंड कंपनियों और जीवन बीमा कंपनियों ने स्टॉक मार्केट में निवेश के साथ जीवन-बीमा भी जोड़ दिया है, जिसे ULIP कहा जाता है। देश में जीवन बीमा कंपनियों की जनसंख्या में पहुँच काफी कम है और इसीलिए ULIP जैसी योजनाओं की आवश्यकता पड़ी। भारत में जीवन-बीमा के प्रति लोगों का रुझान, अन्य देशों की तुलना में काफी कम होने का एक कारण, जागरूकता का अभाव भी है।
अभी तक भारत में जीवन-बीमा का कारोबार, मात्र एक सरकारी कंपनी, भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा होता था। आर. एन. मल्होत्रा कमेटी की सिफारिशों के आधार पर बीमा-क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोल दिया गया।
यद्यपि बीमा क्षेत्र की निजी और विदेशी कंपनियों के लिए खोल दिया गया है, फिर भी विदेशी कंपनियों के लिए इक्विटी की सीमा 26% निर्धारित की गयी है अर्थात् विदेशी कंपनियों का प्रवेश, इस क्षेत्र में सिर्फ संयुक्त उद्यम के रूप में किसी भारतीय कंपनी के साथ ही हो सकता है। देश में बीमा क्षेत्र को खुली प्रतिस्पर्धा की अनुमति के बावजूद, अर्थव्यवस्था में जीवन-बीमा का प्रवेश अपर्याप्त है।
म्युचुअल फंड और बीमा कंपनियों को अपना आधार और विस्तृत करने के उद्देश्य से ULIP योजना को अनछुए क्षेत्रों को काफी आकर्षित करने वाली योजना माना गया। लोगों में यह धारणा बनी कि ऐसी योजना में निवेश करें कि बीमा उत्पाद के साथ कुछ आय भी प्राप्त हो सके।
लोगों की उपरोक्त अवधारणा में एक आधारभूत दोष यह है कि म्युचुअल फंड और जीवन-बीमा में दो अलग उद्देश्यों के लिए है। जीवन बीमा को लाभ बढ़ाने वाला निवेश नहीं मान सकते। यह तो परिवार के सदस्यों के लिए, असमय मृत्यु या किसी अनहोनी के विरुद्ध एक सुरक्षा-कवर है। इस सुरक्षा-कवर को लाभ की तुलना में वरीयता मिलनी चाहिए।
सभी बीमा कंपनियाँ, इस प्रकार की पॉलिसी बनाती हैं, जिसमें प्रीमियम बहुत कम होता है, परंतु कोई लाभ नहीं प्राप्त होता, सिवाय जीवन सुरक्षा के लिए की गयी बीमा-राशि ही प्राप्त होने के। इसे बंदोबस्ती-बीमा (Endowment Insurance) कहते हैं। इसका एक अन्य पहलू, जो अमूमन नहीं समझा जाता, वह यह कि कम उम्र में बीमा करने पर प्रीमियम भी कम देना पड़ता है जबकि अधिक उम्र में बीमा कराने पर उतनी ही बीमा राशि के लिए प्रीमियम राशि भी अधिक देनी पड़ती है। कम उम्र में 'बंदोबस्ती बीमा' कराने पर बहुत ही कम प्रीमियम देना पड़ता है |
इस प्रकार जीवन बीमा कंपनियाँ, बजाय इसके कि आम जनता को इसके बारे में शिक्षित करें, उन्होंने जीवन सुरक्षा निवेश के साथ दूसरे प्रकार का निवेश भी जोड़ दिया है और इस कारण, जीवन-बीमा कराने वालों को अधिक प्रीमियम देना पड़ता है। अतः सामान्य निवेश द्वारा प्राप्त होने वाला लाभ, अधिकतम नहीं हो पाता और साथ ही जीवन बीमा की राशि भी पर्याप्त नहीं होने पाती।
उपरोक्त परिस्थिति में, निगरानी एवं नियंत्रण व्यवस्था के नियमन में टकराव की स्थिति पैदा हो गयी है। बीमा कंपनियाँ, बीमा नियमनों के अंदर काम करने के लिए उत्तरदायी हैं और इनका नियंत्रण "बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (Insurance Regulatory Development Authority, (IRDA) के माध्यम से होता है जबकि म्युचुअल फंड का नियामक SEBI है। काफी बड़ी संख्या में बीमा कंपनियाँ, इस प्रकार म्युचुअल फंड में निवेश करके IRDA और SEBI, दोनों के नियंत्रण-दायरे से बाहर हैं निवेश, और सिर्फ निवेशकों के लिए उत्तरदायी हैं। अतः निवेशकों के हितों की रक्षा, SEBI के अधिकार क्षेत्र से बाहर हो जाता है और IRDA, मात्र बीमा नियामक की भूमिका में होने कारण म्युचुअल फंड का नियामक नहीं बन सकता।
नियामकों के इस असमंजस की स्थिति में यह ज्यादा आवश्यक है कि जनता में जीवन बीमा के प्रति जागरूकता पैदा की जाय ताकि वे अपनी आय का कुछ हिस्सा, जीवन-बीमा के लिए अलग रखें और इसे संकट के समय का सुरक्षा चक्र समझें। इससे लाभांश की अपेक्षा रखना ठीक नहीं।
व्यक्ति की आय और उसकी पारिवारिक आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए, कुछ धनराशि लाभ प्राप्ति के लिए निवेश किया जा सकता है। इससे जीवन-बीमा और लाभ प्राप्ति के लिए निवेश, दो अलग-अलग प्रावधान होंगे जोकि ज्यादा तर्कसंगत हैं, न कि ULIP जैसी योजना, जो दो योजनाओं का सम्मिश्रण है।
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