सरकार 23 मुख्य फसलों के लिए, उनकी कटाई से पहले न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP: Minimum Support Price) की घोषणा करती है अर्थात् खुले बाजार में अनाज के मूल्य न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम नहीं होगा। इन 23 फसलों में 7 प्रकार के अनाज (धान, गेहूं, मक्का, ज्वार, बाजरा, जौ और रागी), 5 प्रकार की दालें (चना, तूर, मूंग, उड़द, मसूर), 7 प्रकार की तिलहन (मूंगफली, रेपसीड-सरसों, सोयाबिन, सीस्मम, सूर्यमुखी, नाइजर सीड) तथा 4 प्रकार की वाणिज्यिक फसलें (कोपरा, गन्ना, कपास एवं पटसन) शामिल हैं। विभिन्न फसलों के लिए घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधार पर, जैसा कि पिछले अध्याय में बात कही गयी है, भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से सरकार गेहूं और चावल की खरीद 'बफर-स्टॉक' बनाने के लिए करती है। इसके अतिरिक्त, इस खरीद का उद्देश्य सरकार द्वारा गरीबों के लिए चलायी जा रही विभिन्न योजनाओं के माध्यम से गरीबों तक राशन पहुंचाना है। बाकी फसलों के लिए, सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य, बाजार भाव से हमेशा ऊंचा रखने का प्रयास होगा।
फल और सब्जियाँ, राज्य सरकारों द्वारा संचालित कृषि उत्पाद विपणन समितियों (Agriculture Produce Marketing Corporation) को बेचा जाता है और यही सापेक्ष-मूल्य किसानों को उनके माल की अधिक कीमत मिल सके, इन बातों को ध्यान में रख कर मूल्य-निर्धारण किया जाता है।
कृषि उपज को उपभोक्ता तक पहुंचाने मध्यस्थता की भूमिका निभाने वाली श्रृंखला जमाखोरी के माध्यम से बाजार में वस्तुओं का मूल्य बढ़ा देती है। बड़ी मात्रा में जमाखोरी से बढ़ी कीमतों का लाभ किसानों तक कभी नहीं पहुंच पाता। न्यूनतम समर्थन मूल्य तय होने के कारण किसानों को अनाज की कुल कितनी कीमत मिलने वाली है इसका अनुमान हो जाता है। परंतु यह भी माना जाता है कि इस व्यवस्था का लाभ मुख्यतः बड़े किसानों को होता है। इसके अतिरिक्त न्यूनतम समर्थन मूल्य के कारण कृषि क्षेत्र में विविधता बाधित हुई है। कई आलोचकों ने 'न्यूनतम समर्थन मूल्य' की प्रथा को समाप्त करने की बात कही है, परन्तु यह ध्यान रखना होगा कि लघु और सीमांत किसानों का बड़ा वर्ग भी इस व्यवस्था ये लाभान्वित हो रहा है हालांकि इसमें बड़ा हिस्सा समृद्ध किसानों का है। बहरहाल भारत के लिए बाजार मूल्यों पर अनाज की उपलब्धि को ओर बढ़ना वर्तमान परिस्थियों में जल्दबाजी कहा जायेगा।
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