Wednesday, May 19, 2021

भारतीय कृषि के दस नये विचार Ten new ideas of Indian agriculture | Indian Economy

भारतीय कृषि क्षेत्र के महत्त्व को देखते हुए परंपरागत तरीकों से हटकर कुछ नया सोचने की आवश्यकता है। 

  • सर्वप्रथम, भारत के भविष्य के लिए वैज्ञानिक आनुवंशिक अभियांत्रिकी कृषि (Genetic Engineered Farming) इस समय की सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। 
  • दूसरे, किसानों के लिए बाजार का स्वरूप बिगड़ा हुआ है जिससे उन्हें श्रेष्ठ कीमतें नहीं मिल पाती है। अतः आवश्यकता है कि किसानों को सीधे बाजार से जोड़ा जाए। 
  • वर्तमान में कृषि उत्पादों की बिक्री, कृषि उत्पादन, विपणन समितियों के माध्यम से होता है। आज तकनीकी और इंटरनेट जैसी सुविधाएं घरेलू ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय बाजारों तक पहुंच की सुविधा देती हैं। किसानों को इन बाजारों के बारे में संवेदनशील बनाना होगा, जहां उन्हें बेहतर कीमतें प्राप्त हो सकती हैं। इससे किसानों और बाजारों के बीच फैले अक्षम बिचौलिओं के जाल से छुटकारा मिलेगा, जिनका कृषि उपज में कोई योगदान नहीं है; सिवाय, जमाखोरी, मुनाफाखोरी और इसी प्रकार की अन्य कदाचार करने के। तीसरा, ठेके पर कृषि, जिसके माध्यम से किसान सीधे बाजार से जुड़ सकता है। इस योजना के अंतर्गत भूमि, किसान की ही रहेगी परंतु फसल का उत्पादन एक 'ठेके' के अंतर्गत होगा जिसकी लागत एक उद्यमी द्वारा लगायी जायेगी और तैयार फसल को खरीदा भी उद्यमी द्वारा ही जायेगा। उपरोक्त व्यवस्था के क्रियान्वयन के लिए सरकार की ओर से दो महत्त्वपूर्ण सहयोग चाहिए- 
            -   राज्य सरकारों की कृषि उत्पाद विपणन समिति कानून में संशोधन। 
            -   इस प्रकार का कानून बनाना कि किसानों के हितों की पर्याप्त सुरक्षा हो सके। 
  • चौथा, उद्योग जगत् द्वारा कृषि कार्य में प्रवेश की अवधारणा पर गंभीर विचार की आवश्यकता है। यह कहना सही नहीं होगा कि उद्योग जगत् के प्रवेश करने से लघु और सीमांत कृषक और भी हाशिये पर चले जायेंगे और उनका शोषण होगा। इस अवधारणा का बड़ा लाभ यह होगा कि उत्पादकता बढ़ेगी, कृषि का व्यवसायीकरण हो सकेगा, कृषि क्षेत्र में विविधता आयेगी, कृषि का आर्थिक महत्त्व बढ़ेगा, कृषि भूमि का ज्यादा और सक्षम उपयोग संभव होगा, एक सक्षम आपूर्ति शृंखला विकसित हो सकेगी और आधुनिक तकनीकों का प्रयोग होने लगेगा और निवेश में भी वृद्धि होगी। खाद्य उत्पादों का लगभग 40%, एक सक्षम आपूर्ति श्रृंखला के अनुपस्थित होने के कारण उत्पादन स्थान पर ही नष्ट हो जाता है। उद्योग जगत् को कृषि क्षेत्र में भागीदारी से यह आपूर्ति श्रृंखला आसानी से प्रभावी बन सकती है जिससे खाद्य पदार्थों की बाजार में आवश्यकता बढ़ेगी और मूल्य भी कम होंगे। 
  • पाँचवां, आज पूरे देश में चारों ओर कृषि भूमि के मानचित्रण की आवश्यकता है जिस पर पूर्व की जलवायु, वर्षा, फसलें उगाने का इतिहास आदि अध्यारोपित (Superimposed) करके अनुकूल फसल उगाने का एक साँचा (Pattern) तैयार किया जा सके। आज मृदा, जलवायु आधारित कृषि पद्धति के लिए तकनीकि जानकारी उपलब्ध है। 
  • छठा, संवृद्धि की सतत् आवश्यकता के कारण नये क्षेत्रों में विशेष आर्थिक जोन खुलेंगे, उनकी जरूरतों के मुताबिक नये बिजली घर बनाने होंगे, भवनों, सड़कों आदि के निर्माण के लिए अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता बढ़ती जायेगी। फलस्वरूप कृषि कार्य के लिए भविष्य में उपलब्ध जमीन का दायरा सिकुड़ता जायेगा। भारत सरकार के विभाग नेशनल ब्यूरो ऑफ स्वायल सर्वे एंड लैंड की एक रिपोर्ट के अनुसार गैर-कृषि कार्यों के लिए इस्तेमाल की जा रही भूमि 1950-51 में कुल उपलब्ध भूमि का 3 प्रतिशत थी जो आज बढ़कर 11 प्रतिशत हो चुकी है। कारण से कृषि ऊपज में वृद्धि न केवल आवश्यक है, बल्कि अनिवार्य हो गयी है। 
  • सातवाँ, किसानों के बीच यह भावना घर करती जा रही है कि उपज-लागत में वृद्धि से कृषि एक अलाभकारी उद्यम बन चुका है और वे अपनी कृषि योग्य जमीन उद्योगों को बेचते जा रहे हैं। हाल के समय में सरकार भी बड़े भू-क्षेत्रों को गैर-कृषि योग्य जमीन घोषित करती जा रही है जिससे औद्योगीकरण को बढ़ावा मिल सके। यहां पर कृषि एवं उद्योग दोनों की आवश्यकताओं का संतुलन, एक बड़ी चुनौती इस बात को पुनर्स्थापित करने में है कि खेती अभी भी एक मुनाफा दे उपक्रम है। 
  • आठवाँ, भूमि सुधार, स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् सभी सरकारों की दृढ़ प्रतिज्ञा रही है, परंतु इस क्षेत्र में बहुत ही कम काम हुआ है और उससे भी कम समाज को हासिल हुआ है। राज्य सरकारों द्वारा भी इसे वरीयता देने की आवश्यकता है। सम्पूर्ण भूमि संबंधी लेखा-जोखा कम्प्यूटर और इंटरनेट में आना चाहिए; इस दिशा में कर्नाटक राज्य का "भूमि" प्रोजेक्ट एवं आसाम का "धात्रि" प्रोजेक्ट उल्लेखनीय है। भारत में काफी भू-क्षेत्र बंजर है जिसे भूमिहीनों में मुफ्त बांटा जा सकता है और उसमें खेती और वानिकी का एकीकरण सकता है। इस व्यवस्था से बंजर भूमि के उपयोग का उद्देश्य भी पूरा होगा और भूमिहीन किसानों को जीवनयापन का एक सहारा भी मिल सकेगा। 
  • नौवाँ, वर्तमान में कृषि क्षेत्र में निवेश का अभाव। इस क्षेत्र में जी.डी.पी. का 0.3% हिस्सा ही आता अतः ग्रामीण क्षेत्रों में सिंचाई परियोजनाओं, सड़क, बिजली और स्वास्थ्य सेवाओं में तत्काल सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा निवेश की आवश्यकता है।
  • और अंतिम बिंदु यह है कि कृषि क्षेत्र के विकास की रणनीति के अंतर्गत कृषि क्षेत्र को अंतिम इकाई तक परिभाषित करना होगा अर्थात् ग्राम स्तर तक या जिला स्तर पर परियोजनाओं का क्रियान्वयन होना चाहिए। प्रत्येक जिले की अपनी समस्याएं हैं, जिन्हें चिन्हित करके वरीयता क्रम में निर्धारित करके हल ढूंढ़ना चाहिए। कृषि क्षेत्र को एक और हरित या इन्द्रधनुष या सदाहरित क्रांति की आवश्यकता नहीं है बल्कि एक पुनर्जागरण की जो कृषि क्षेत्र का नये सिरे से निर्माण कर सके। 

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