हरित सकल घरेलू उत्पाद (Green GDP) का आशय एक ऐसी राष्ट्रीय संगणना विधि से है, जिसमें किसी भी देश के गैर-अक्षय प्राकृतिक संपदा के प्रयोग का आकलन हो सके और इसे अब संपोषित विकास के एक हिस्से के रूप में देखा जा रहा है। इसका उद्देश्य राष्ट्रीय संसाधनों का अनुकूलतम, सक्षम और प्रभावी तरीके से इस्तेमाल करते हुए अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना है और साथ ही उसके अभाव की कीमत के बारे में जागरुक होना है। ऐसा विश्वास है कि इस प्रकार की संगणना विधि से और भी ज्यादा अनुसंधान को प्रोत्साहन मिलेगा और तेजी से घट रहे गैर-अक्षय-प्राकृतिक-संपदा (Non- Renewable Natural Resources) के स्थान पर व्यावहारिक हल ढूंढा जा सकेगा।
स्पष्टतः यहां पर सबसे बड़ी समस्या गरीबी को समाप्त करने की है, इसके पहले कि सतत विकास के वृहद् स्वरूप पर चर्चा हो। यहां यह कहने का आशय बिल्कुल नहीं है कि भारत को सतत विकास के मुद्दे पर विचार-विमर्श नहीं करना चाहिए, परंतु गरीबी की समस्या नि:संदेह ही एक बड़ी समस्या है, जहां पर गरीबों की जीविका के साधन और एक स्वच्छ तथा न्यूनतम जीवन-निर्वाह का स्तर सुनिश्चित करना बड़ी प्राथमिकता है।
इस प्रकार समग्र विकास, सतत विकास और हरित सकल घरेलू उत्पाद तीन विभिन्न शब्दावलियाँ हैं, जिनका अर्थ स्वयं में एक-दूसरे से भिन्न जरूर है, परंतु इन्हें आपस में स्वतंत्र नहीं कहा जा सकता, बल्कि इनके प्रभावों को आपस में अंतर्सबंधित कहा जा सकता है।
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