Tuesday, May 18, 2021

अवमूल्यन क्या है What is Devaluation | Indian Economy

अर्थव्यवस्था Economy के उत्पाद Product में मशीन एवं उपकरण भी, जो कि हर साल इस्तेमाल कर किए जाते हैं, शामिल हैं। इसे मशीनों का अवमूल्यन कहते हैं। इस प्रकार की मशीनों का उत्पादन प्रायः पुरानी मशीनों को बदलने के लिए किया जाता है और इन मशीनों के उत्पाद पर या अर्थव्यवस्था के पूँजी-स्टाक पर ज्यादा असर नहीं पड़ता।



मान लेते हैं कि एक अर्थव्यवस्था में मोटर-कारों का उत्पादन हो रहा है तो वही कारों का अवमूल्यन भी होगा क्योंकि गाड़ियों के इस्तेमाल के निश्चित समय के बाद उनकी "उपयोग-अवधि" (Shift Life) समाप्त हो जाती है। उदाहरणस्वरूप एक तीन लाख की कार की उपयोग-अवधि 10 वर्ष है। अवस्था में प्रतिवर्ष कार की अवमूल्यन राशि तीस हजार होगी। इस प्रकार यदि एक अर्थव्यवस्था अपने मशीनों के अवमूल्यन की परवाह नहीं करती है तो उसे "सकल" (Gross) अवधारणा कहते हैं। यदि इस अवमूल्यनको अपने खाते में गणना की जाती है तो उसे "शुद्ध" अवधारणा कहते हैं।

तदनुसार, 'सकल राष्ट्रीय उत्पाद' (GNP) एवं 'सकल घरेलू उत्पाद' (GDP) की अवधारणा बनती है। इस प्रकार -

सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) - अवमूल्यन  = शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP)

सकल घरेलू उत्पाद (GDP) - अवमूल्यन  = शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDP)

इस प्रकार अर्थव्यवस्था में उत्पाद की चार अवधारणायें बनती हैं। सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP), सकल घरेलू उत्पाद (GDP), शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP) एवं शुद्ध घरेलू उत्पाद। (NDP) अब हम समझने की कोशिश करते हैं कि तकनीकी रूप से कौन-सी प्रणाली वृद्धि को मापने में सर्वोत्तम है। स्पष्टत: यह “शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद" (NNP) प्रणाली होगी क्योंकि इसमें सर्वप्रथम राष्ट्र के सभी नागरिकों को शामिल किया जाता है और अवमूल्यन के पश्चात् शुद्ध बढ़ोतरी को मापा जाता है। इसे अर्थव्यवस्था के "राष्ट्रीय आय" के नाम से भी जाना जाता है।

परंतु, धीरे-धीरे शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP) एवं सकल राष्ट्रीय उत्पाद अपना महत्त्व खोते जा रहे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि बहुधा देखा गया है कि राष्ट्रों के ऊपर भारी विदेशी ऋण लदा हुआ है जिनकी भरपाई आंतरिक संसाधनों से करनी पड़ती है और इस प्रकार संसाधनों का बहिर्गमन बढ़ जाता है। इस बढ़े बहिर्गमन से राष्ट्र का सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) कम हो जाता है, साथ ही सकल घरेलू उत्पाद (GDP) अप्रभावी रहता है। इसी प्रकार अपने परिसंपत्ति की बिक्री विदेशी संस्थानों को करने की स्थिति का प्रभाव पूर्व-कथन जैसा ही रहेगा। वर्तमान में भारत जैसे देश में विदेशों से भेजी हुई रकम महत्त्वपूर्ण है और इससे 'सकल राष्ट्रीय उत्पाद' प्रभावित होने लगा है जोकि अर्थव्यवस्था के उत्पाद को मापने का सही तरीका नहीं है।


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