Thursday, May 20, 2021

विमुद्रीकरण क्या है What is Demonetisation | Indian Economy

जब किसी देश की सरकार किसी विशेष मुद्रा या नोट के विमुद्रीकरण, अर्थात वह मुद्रा, उत्पाद एवं सेवाओं के विनियम के लिए अर्थव्यवस्था में वैधानिक नहीं है, तब उसे विमुद्रीकरण की संज्ञा दी जाती है। 

भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में यदि विमुद्रीकरण की चर्चा की जाय तो सर्वप्रथम विमुद्रीकरण जनवरी, 1946 में हुआ था जब 1,000/- एवं 10,000/- के नोट सरकार द्वारा वापस बुला लिये गये थे। इसी प्रकार वर्ष 1954 में 1000/-, 5000/- और 10,000/- रुपयों के नये नोट जारी किये गये थे। इन नोटों का 16 जनवरी, 1978 को सरकार द्वारा विमुद्रीकरण करके वैधानिक मान्यता समाप्त कर दी गयी थी। अन्ततः 8 नवंबर, 2016 को भारत सरकार ने 500/- और 1,000/- रुपये के नोटों का प्रचलन समाप्त कर दिया और अब वे 'लीगल टेंडर' नहीं रहे। 

विमुद्रीकरण, अर्थव्यवस्था में अपनी गहरी पैठ बना चुके काला-धन, जाली करेंसी, भ्रष्टाचार एवं वर्तमान का अभिशाप आतंकवाद की फंडिंग के विरुद्ध, उठाया गया एक कठोर कदम है। यहाँ यह भी ध्यान रहना चाहिए कि विमुद्रीकरण का एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रभाव, देश की अर्थव्यवस्था पर, जो स्वभावतः प्रबल है, पड़ता है और साथ ही, इस प्रक्रिया में होने वाला भारी व्यय भी उतना ही महत्त्वपूर्ण मुद्दा है।


विमुद्रीकरण के लाभ 

काले धन पर प्रहारः 

विमुद्रीकरण का सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि इससे देश का काला धन बाहर या चलन में आया। यह धन प्रायः अवैध तरीकों से जैसे- रिश्वत, कालाबाजारी, करचोरी, हवाला कारोबार आदि से कमाया जाता है। 

आतंकवाद और नक्सलवाद को हतोत्साहनः 

विमुद्रीकरण से देश में हो रही आतंकवादी, नक्सलवादी और अन्य आपराधिक गतिविधियों में कमी आई। विमुद्रीकरण से इन लोगों तक हथियार और अन्य सामान पहुंचाने वाले संगठनों के पास नोटों का अभाव होता है, जिससे इनकी गतिविधियां ठप्प पड़ जाती हैं। ऐसा देखा गया कि 8 नवंबर, 2016 के बाद से जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाओं में कमी आ गई, क्योंकि पाकिस्तान लोगों को पैसा देता था। इसी प्रकार नोटबंदी होने से नक्सलवाद की घटनाओं में भी कमी देखी गई। 

कर संग्रह में वृद्धिः 

विमुद्रीकरण से देश में रह रहे नागरिकों को मजबूरन अपना पैसा बैंकों में जमा करवाना पड़ा, जिससे सरकार को उनकी वास्तविक आमदनी का पता चला। इससे सरकार को बड़ी मात्रा में कर प्राप्त हुए। 

कम ब्याज पर ऋणः 

विमुद्रीकरण से देश का हर नागरिक बैंकों में पैसे जमा करते हैं जिससे बैंकों में नकदी बढ़ती है जिसके परिणामस्वरूप बैंक सुचारू रूप से कम ब्याज पर लोगों को ऋण दे पाते हैं। इससे कारोबारियों को काफी लाभ होता है। 

सस्ते हो जाते हैं मकान व फ्लैटः 

जब भी कहीं पर नोटबंदी होती है रियल स्टेट की कीमतें. मकान और जमीन सस्ती हो जाती हैं। 2016 की नोटबंदी के बाद फ्लैट और जमीन के दाम गिर गए। 


विमुद्रीकरण से हानि 

रियल स्टेट पर नकारात्मक प्रभावः 

विमुद्रीकरण से रियल स्टेट की कीमतों में भारी गिरावट आती है और मकान तथा जमीन की कीमतें भी कम हो जाती हैं। लोगों के पास नकदी खत्म हो जाती है जिससे मकानों और जमीनों के दाम गिरने लगते हैं। 

लघु उद्योगों और खुदरा कारोबारियों को नुकसानः 

विमुद्रीकरण से लघु उद्योगों और खुदरा दुकानों व कारोबारियों पर नकारात्मक असर पड़ा। उनके पास दैनंदिन लेन-देन के लिए नकदी खत्म हो जाती है। ऐसे में मजदूर या गरीब वर्ग के लोग जो देहाड़ी पर रोज के हिसाब से काम करते उनका रोजगार छीन जाता है। 2016 में हजारों मजदूरों का काम अचानक से बंद हो गया था, क्योंकि मालिक के पास उन्हें देने के लिए सही मुद्रा ही नहीं थी। 

पर्यटन उद्योग को नुकसानः 

विमुद्रीकरण से देश के पर्यटन उद्योग को भी नुकसान पहुंचता है। इस दौरान देश के नागरिक बाहर घूमने नहीं जाते। विदेशों से आने वाले पर्यटक भी अपना दौरा रद्द कर देते हैं। 

किसानों और सब्जी-फल विक्रेताओं का हानिः 

नोटबंदी होने से लोगों के पास क्रयशक्ति की कमी हो जाती है। इसलिए वे सब्जी और फल आदि नहीं खरीद पाते, जिसका अंततः किसानों और विक्रेताओं को नुकसान उठाना पड़ता है। 

जीडीपी पर नकारात्मक प्रभाव: 

आर्थिक गतिविधियों के मंद पड़ जाने के कारण देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है। 2016 के निर्णय के बाद देश की अर्थव्यवस्था में मंदी का दौर देखने को मिला। 

अन्य नुकसान: 

भारत में 2016 में विमुद्रीकरण के कारण उपजी अफरा-तफरी, घंटों लाइन में लगे रहने, कई होने वाली शादियों में आई दिक्कतों आदि की वजह से 200 लोगों की जान चली गई। बहुत से लोग अस्पताल में अपना इलाज नहीं करवा पाए। 


विमुद्रीकरण की सफलता (Ensuring the Success of Demonetisation) 

सरकार को, विमुद्रीकरण को सफल बनाने के लिए निम्न पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए- 

1. काले-धन का, अर्थव्यवस्था में वृत्ताकार बहाव का लगभग अनुमान लगाना। 

2. अर्थव्यवस्था में कितनी मात्रा में जाली करेंसी, प्रयोग में है, इसका लगभग अनुमान लगाना। 

3. इसी प्रकार अर्थव्यवस्था में अनुमानता कितना धन आतंकवाद के लिए उपयोग हो रहा है। 

4. विमुद्रीकरण से प्रभावित जनंसख्या, विशेषकर मध्याम एवं उससे नीचे के आय-वर्ग के लोगों के बारे में अनुमानित गणना। 

5. अर्थव्यवस्था में आर्थिक-समावेश (financial inclusion) किस सीमा तक हो पाया है, इसे सुनिश्चित करना। 

6. औपचारिक बैंकिंग संस्थाओं के संदर्भ में, वित्तीय बिचौलियों के नेटवर्क की जानकारी सुनिश्चित 

7. अर्थव्यवस्था में इन वित्तीय-बिचौलियों की स्थानापन्न व्यवस्था करने में समय और मानव-संसाधन की आवश्यकता का सही आकलन। 

8. दूसरे चैनल जैसे सुपर-मार्केट आदि की पहचान, जिनके माध्यम से नयी घोषणा वाले करेंसी नोटों की अदला-बदली की जा सके। 

9. नयी करेंसी का सक्षमतापूर्वक, आम जनता के बीच वितरण की व्यवस्था जिसके उसके दैनिक काम-काज पर विशेष प्रभाव न पड़ सके। 

10. नये करेंसी नोटों के वितरण में शामिल मानव-संसाधन, अपना कर्त्तव्य-निर्वाह कुशलता, सक्षमता एवं भ्रष्टाचार रहित तरीके से करें, यह सुनिश्चित करना। 

11. आम आदमी को पुरानी करेंसी जमा करने एवं उसके बदले नयी करेंसी प्राप्त करने के लिए पर्याप्त समय देना तथा सरकारी आउटलेट्स जैसे पोस्ट-आफिस इत्यादि एवं वित्तीय संस्थाएँ जैसे कि बैंक आदि पर पर्याप्त सुविधाएँ प्रदान करना। 

12. ए टी एम की सुविधा, जहाँ से नयी करेंसी प्राप्त हो सके और पर्याप्त बैंक-काउंटर जहाँ प्रतिबंधित करेंसी जमा की जा सके। 

13. व्यक्तिगत बैंक एकाउंट्स में प्रतिबंधित मुद्रा जमा करने की उपरी सीमा से संबंधित विज्ञाप्ति न जारी करना जिससे लोग अधिकतम मुद्रा जमा करने के लिए प्रोत्साहित हों। यहाँ ध्यान में रखना पड़ेगा कि वित्त मंत्रालय और केंद्रीय बैंक, आगे चलकर, जरूरी शासनादेश निकाल सकते हैं और घोषित आय से अधिक जमा धन को, जाँच-पड़ताल के बाद जब्त भी किया जा सकता है या उस पर भारी जुर्माना लग सकता है। 

14. उपरोक्त बिंदुओं पर कार्यवाही सुनिश्चित करके सरकार गरीब जनता की आर्थिक दशा सुधारने के 2 लिए एक प्रभावी कार्य योजना तैयार कर सकती है। 

15. सरकार को यह सुनिश्चित करना पड़ेगा कि अर्थव्यवस्था में नयी करेंसी, आम लोगों के लिए पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। यहाँ एक और बात का ध्यान रखना पड़ेगा कि अर्थव्यवस्था में छोटे नोट की भरपूर उपलब्धता है। 

16. विमुद्रीकरण की प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण बात है नये वैधानिक करेंसी के प्रचलन में होने वाली व भारी लागत। यह लागत मात्र करेंसी छापने में ही नहीं लागू है, बल्कि इसमें शामिल है व्यवसाय पर प्रभाव, व्यापारिक लेन-देन में कमी, क्रय-विक्रय का आगे टलना, श्रम-घंटों की उत्पादकता का नुकसान, जल्दी खराब होने वाले उत्पादों का नुकसान, धन की कमी से कृषि कार्यों में होने वाला विलंब, अदायगियों में देरी, लोगों द्वारा सामाजिक संस्कारों, उत्सवों में धन अनुपलब्ध होने के कारण, - मितव्ययिता से काम चलाने से संबद्ध व्यवसाय में नुकसान इत्यादि। 

17. धार्मिक रीति-रिवाजों के पालन के लिए, जैसे कि विवाह आदि, लोगों के लिए विशेष प्रावधान करना, इसी प्रकार जिन्हें अस्पतालों में इलाज के लिए भर्ती होना हो, चिकित्सकीय सेवायें लेनी हो और विदेशी सैलानियों के लिए भी समुचित प्रावधान आवश्यक हैं। 

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