Sunday, May 23, 2021

इंद्रधनुष कैसे बनता है How does the rainbow form | Physics

यदा-कदा वर्षाऋतु में आकाश में बना सतरंगा इंद्रधनुष अत्यंत ही मोहक दृश्य उपस्थित करता है। प्रकृति की यह अद्भुत कलाकृति और कुछ नहीं, हवा में लटकी पानी की बूंदों द्वारा सूर्य के प्रकाश के वर्ण- विक्षेपण से उत्पन्न स्पेक्ट्रम ही है। 

चित्र में पानी की एक बूंद द्वारा किसी एक तरंगदैर्घ्य की प्रकाश-किरणों का परावर्तन व अपवर्तन दिखाया गया है। सूर्य प्रेक्षक की पीठ की ओर है और इससे आती एक किरण AB बूंद पर आपतित होती है। चित्र में बूंद को गोलाकार मान गया है। B बिंदु पर उसका एक भाग BC दिशा में अपवर्तित हो जाता है और एक भाग परावर्तित होकर पुनः हवा में चला जाता है। BC किरण पुनः बूँद की सतह पर आपतित होती है और C बिंदु पर इसका एक भाग परावर्तित होकर CD दिशा में चलता है जबकि बाकी भाग अपवर्तित होकर हवा में चला जाता है। किरण CD का एक भाग परावर्तित होकर DE दिशा में चलता है जबकि दूसरा भाग अपवर्तित होकर हवा में DF दिशा में आता है। यही DF दिशा में आता हुआ प्रकाश प्रेक्षक की आँखों में पहुंचता है। इस प्रकाश ने दो अपवर्तन तथा एक परावर्तन किया है। 



सूर्य से आते प्रकाश की दिशा से किरण DF कोण Ⲑ बनाती है। यह कोण पानी के अपवर्तनांक के अलावा इस बात पर भी निर्भर करता है कि प्रारंभिक किरण AB बूँद के केंद्र से कितनी ऊँचाई पर पड़ी। चूँकि सूर्य का प्रकाश पूरी बूंद पर समानांतर बीम की तरह पड़ता है, इसलिए अलग-अलग कोणों पर बहुत-सी DF सरीखी किरणें एक परावर्तन तथा दो अपवर्तन कर आ रही होंगी। परंतु, थोड़ा और गणित करने से पता चलता है कि किसी एक विशेष कोण Ⲑ पर आनेवाले प्रकाश की तीव्रता अन्य कोणों के सापेक्ष काफी अधिक होती है। यह विशेष कोण बूंद पर पड़ती उन किरणों के लिए होता है, जिनके लिए कुल विचलन का कोण अधिकतम होता है। चित्र में यह विचलन कोण Ⳝ दिखाया गया है। अधिकतम तीव्रता के संगत का कोण Ⲑ बूंद में स्थित पानी के अपवर्तनांक पर निर्भर करता है और यह अपवर्तनांक प्रकाश के तरंगदैर्ध्य पर निर्भर करता है। लाल रंग के प्रकाश के लिए गोलाकार बूँद से अधिकतम विचलन का कोण Ⳝ = 137.8° होता है और इसलिए Ⲑ =180°-137.8° = 42.2° होता है। बैंगनी रंग के लिए Ⲑ का मान 40.6° आता है। बाकी के रंगों के लिए Ⲑ का मान 40.6° से 42.2° के बीच होता है। 



अब स्थान P पर खड़े (P पर आँख वाले) एक व्यक्ति के बारे में सोचें [चित्र 35.6(b)]। सूर्य की किरणें Px दिशा के समानांतर आ रही हैं। एक शंकु (cone) की सतह की कल्पना करें जिसका अक्ष PX हो तथा अर्धशीर्ष कोण (semivertical angle) 42.2° हो। इस सतह पर स्थित सभी बूंदें P बिंदु पर Ⲑ = 42.2° का कोण बनाती हुई प्रकाश की किरणें भेजेंगी। यह प्रकाश मुख्य रूप से लाल रंग का होगा। अतः, व्यक्ति को लाल रंग का प्रकाश एक वृत्त से आता हुआ प्रतीत होगा, जिसकी त्रिज्या आँख पर 42.2° का कोण बना रही होगी। इसी प्रकार, बैंगनी रंग का प्रकाश उसे एक वृत्त से आता हुआ दिखाई देगा जिसकी त्रिज्या आँख पर 40.6° का कोण बना रही होगी। बाकी के सारे रंगों के लिए भी 40.6° से 42.6° के बीच में वृत्त दिखेंगे। याद रखिए, हम दूर की वस्तुओं की गहराई का अनुभव नहीं करते हैं और इसलिए शंकु हमें वृत्त जैसा ही दिखता है। 

धरती से प्रायः हमें इंद्रधनुष पूरा वृत्ताकार न दिखकर वृत्ताकार चाप के रूप में दिखता है। ऐसा इसलिए है कि हम जमीन पर खड़े रहकर शंकु की पूरी सतह की बूंदो को देख नहीं पाते हैं। यदि हम वायुयान से ऊँचाई पर चले जाएँ तो फिर हम PX के नीचे की बूंदों को भी देख सकते हैं और इंद्रधनुष पूर्ण वृत्ताकार होकर और भी लुभावना हो सकता है। 

कभी-कभी आकाश में इंद्रधनुष के ऊपर एक और कम तीव्रता वाला इंद्रधनुष दिखता है जिसमें रंगों के क्रम भी उलटे होते हैं। यह इंद्रधनुष 50.4° (लाल) तथा 54° (बैंगनी) के बीच बनता है। इसे द्वितीयक इंद्रधनुष (secondary rainbow) कहते हैं। 40.6°, 42.2° वाले इंद्रधनुष को प्राथमिक इंद्रधनुष (primary rainbow) कहते हैं। द्वितीयक इंद्रधनुष बनने की प्रक्रिया चित्र 35.7 में दी गई हैं। जो किरणें बूंद के निचले आधे हिस्से पर पड़ती हैं वे दो परावर्तन व दो अपवर्तनों के बाद आँखों तक पहुँचती हैं, और द्वितीयक इंद्रधनुष बनाती हैं। 



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