आर्थिक नीति में कृषि के महत्त्व को देखते हुए केंद्र सरकार ने नयी कृषि नीति, 2000 तैयार की है। इस नीति द्वारा कृषि क्षेत्र को एक नयी दिशा देने का प्रयास किया गया है। इस नीति के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं- .
- कृषि क्षेत्र में वार्षिक वृद्धि की दर 4% आगामी कुछ दशकों के लिए होने चाहिए।
- बागवानी, पशुपालन, मुर्गीपालन, डेयरी विकास और जलीय ऊपज पर और भी ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता महसूस की गयी है। इन क्षेत्रों से वृद्धि-दर और आम-जन की क्रय-शक्ति, दोनों में ही विस्तार होगा।
- खाद्य और पोषण-सुरक्षा, दोनों पर बल।
- जैव प्रौद्योगिकी का अधिक उपयोग, पौधों की उन्नत किस्मों का विकास एवं उनकी सुरक्षा के लिए नये कानूनों का बनाना, वैज्ञानिक विधि से कृषि-कार्य पर बल और तकनीकी-विकास।
- कृषि एवं सामाजिक वानिकी पर भरपूर ध्यान ताकि पर्यावरण संतुलन में सहायता मिले।
- 'न्यूनतम समर्थन मूल्य' के जरिये किसानों को मूल्य सुरक्षा प्रदान करना।
- देश में कृषि उत्पादों के, स्वतंत्र आवागमन के रास्ते में आने वाली अड़चनों को दूर करना।
- कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक-निवेश में वृद्धि, विशेषकर ग्रामीण विद्युतीकरण, सिंचाई परियोजनाओं और जल विभाजक (Watershed) योजनाओं में।
- खाद्य-प्रसंस्करण इकाइयों में रोजगार के अवसर उपलब्ध कराकर खेती से बाहर क्षेत्र में अवसर बढ़ाना।
- भूमि सुधार को एक निर्णायक जोर देकर आगे बढ़ाना ताकि बेहतर भू-वितरण, चकबंदी और अतिरिक्त भू-क्षेत्र का भूमिहीनों के मध्य पुनर्वितरण सुनिश्चित हो सके।
- राष्ट्रीय कृषि बीमा निगम के माध्यम से फसल खराब होने और सूखे की स्थिति में किसानों को बीमा का लाभ
- ठेके पर किसानों के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहन।
नयी कृषि नीति स्वयं में निर्देशक के रूप में है क्योंकि कृषि, राज्यों का अधिकार क्षेत्र तथा विषय है, यह राज्यों के जिम्मेदारी है कि नयी कृषि नीतियों को अमल में ले आयें। कई विशेषज्ञों एवं तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का विचार था कि भारत में एक और 'हरित क्रांति-2' की आवश्यकता है।. अब
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