Thursday, May 20, 2021

बंद अर्थव्यवस्था क्या है What is a closed economy | Indian Economy

विकास के प्रारंभिक वर्षों में ज्यादातर अर्थव्यवस्थाएँ अंतर्मुखी (बंद अर्थव्यवस्था-Closed Economy) होती हैं। इनमें घरेलू माँग, घरेलू जनसंख्या, घरेलू संसाधन और अर्थव्यवस्था की आधारभूत आवश्यकताओं पर मजबूती से ध्यान केंद्रित किया जाता है। इन अर्थव्यवस्थाओं की यह विशेषता होती है कि ये दुनिया से बिल्कुल अलग-थलग, किसी देश से कोई भी व्यापार नहीं और इनका आयात सिर्फ अति आवश्यक वस्तुओं तक सीमित होता है जिनका उत्पादन ऐसी अर्थव्यवस्था में नहीं हो पा रहा है और निर्यात, सिर्फ उन्हीं उत्पादों का, जो घरेलू माँग की आवश्यकता से अधिक हो। 

ऐसी अर्थव्यवस्थाओं की सरकार में बड़ी भूमिका होती है क्योंकि इनसे उत्पाद और सेवा क्षेत्र सीधा जुड़ा होता है और ये अत्यधिक नियमन के तहत् कार्य करती हैं (भारत, 1991 के पूर्व, एक उदाहरण है)। इन अर्थव्यवस्थाओं का केंद्र-बिंदु आत्मनिर्भरता है और आयात को न्यूनतम रखने के लिए उसके स्थानापन्न की तलाश करना है, परंतु जब अर्थव्यवस्था विकास की सीढ़ियों पर ऊपर चढ़ने लगती है तब गैर-लचीलापन, ऊंचे स्तर के नियंत्रण, तुलनात्मक असमता और ऊंची वेतन दरें अपना प्रभाव अर्थव्यवस्था पर डालना शुरू कर देती हैं और एक, दम घोंटने वाली स्थिति आ जाती है। 

यह स्थिति और भी जटिल हो जाती है जब ऐसी अर्थव्यवस्थाओं की तुलनात्मक अयोग्यता, संवृद्धि और आय बढ़ाने में असफल रहती है। ऐसा इसलिए होता है कि संसाधन अपर्याप्त हों और उनका ठीक प्रकार से आवंटन नहीं किया जा सके, साथ ही टेक्नोलॉजी और ज्ञान, दोनों ही अपर्याप्त हों। इन सबके अलावा वस्तुओं का आयात, घरेलू आवश्यकताओं के कारण बढ़ जाता है। अंतर्मुखी अर्थव्यवस्था की ये विशेषताएँ देश के ऊपर भार-स्वरूप होती हैं और विवश होकर, न कि स्वेच्छा से, उन्हें बहिर्मुखी बनना पड़ता है अर्थात् 'बहिर्मुखी' होकर, अपनी अर्थव्यवस्था की 'अंतर्मुखी' अथवा घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति करनी पड़ती है। 

पिछले दो दशकों में वैश्विक स्तर पर तेजी से हो रहे विकास के कारण, वैश्विक अर्थव्यवस्थाएँ अपने बदले दृष्टिकोण से सह या सुविधाप्रदाता (Facilitator) की भूमिका में आ गयी हैं और अंतर्मुखी से बहिर्मुखी हस्तांतरण को उन्होंने एक त्रुटिहीन, प्राकृतिक प्रक्रिया बना दिया है।

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